भागवत कथानक भूमिका
[ भूमिका ]
भागवत महापुराण भूमिका = अनंतकोटी ब्रम्हांड नायक अचिंत्य कल्याण गुणगण निधान सर्वेश्वर सर्वाधि पति अकारण करुणा वरुणालय , अकारण करुणा कारक सकल जन कल्यशाप हारक परात्परपरब्रह्म , अनंत कोटी कंदर्प दर्प दलन पटियान निर्गुण निराकार सगुण साकार , जगदैक बन्धु करुणैक सिन्धु सच्चिदानंद घन परमात्मा श्री कृष्ण एवं श्री राधा रानी जी के युगल चरण अरविंदो में दास का बारंबार प्रणाम | समुपस्थित भगवत भक्त भागवत कथा अनुरागी सज्जनों भक्तिमई मातृशक्ति भगनी बांधवो|
भगवतः इदं स्वरूपम् भागवतम् | जो भगवान का स्वरूप है उसे भागवत कहते हैं | तेनतेनेयम् वाड़मयी मूर्तिः प्रत्यक्षः कृष्ण एवहि|यह श्रीमद् भागवत भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्यक्ष शब्द मई मूर्ति है | भगवत: प्रोक्तं भागवतम्|भगवान ने जिसका उपदेश किया है उसे भागवत कहते हैं |भागवतः चरितम् यस्मिन् तद् भागवतम्| जिसमें भगवान के परम पवित्र चरित्र का वर्णन किया है उसे भागवत कहते हैं | भगवत्याः श्री राधायाः गुप्त चरितम् यस्मिन तद् भागवतम्|जिसमें श्री राधा रानी के गुप्त चरित्र का वर्णन किया गया है उसे भागवत कहते हैं | भगवतोःश्री राधा कृष्णयोःइदम् स्वरूपम् भागवतम्| जिसमें श्री राधा कृष्ण के पावन चरित्र का वर्णन किया गया है जो राधा कृष्ण के युगल स्वरूप है उसे भागवत कहते हैं |
भक्ति ज्ञान विरागाणाम् तत्त्वं यस्मिन तद् भागवतम्| जिसमें भक्ति ज्ञान वैराग्य के तत्व का वर्णन किया गया है उसे भागवत कहते हैं|
अथवा भागवत में चार अक्षर है भा, ग, व और त
भा= भाष्यते सर्व वेदेषु
ग=गीयते नारदादिभिः|
व=वदन्ति त्रिषु लोकेष
व=वदन्ति त्रिषु लोकेष
त=तरन्ति भवसागरः|
जिससे समस्त देवता प्रकाशित होते हैं जिस का गान नारदादि ऋषि तीनों लोकों में करते हैं और जो भवसागर से तारने वाली है उसे भागवत कहते हैं |
भा कीर्तिवाचको शब्दः गकारः ज्ञान वाचकः |
वंशाय चरितं चैव पुराणम् पंच लक्षणम् ||
भागवत में भ अक्षर कीर्ति प्रदान करने वाला है गा अक्षर ज्ञान देने वाला है व अक्षर वैराग्य देने वाला है और त संसार सागर से तारने वाला है |
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वशों मनवन्तराणि च |
वंशाय चरितम् चैव पुराणं पंच लक्षणम् ||
यहां सूक्ष्म सृष्टि स्थूल सृष्टि सूर्य चंद्र आदि के वंश का वर्णन मन्वंतर में होने वाले राजा तथा भगवान के भक्तों के वंश का वर्णन किया गया है ऐसे 5 लक्षणों से युक्त ग्रंथ को पुराण कहते हैं परंतु इस श्रीमद्भागवत में 10 लक्षण इसलिए यह महापुराण है श्रीमद्भागवत के प्रारंभ में महात्म का वर्णन किया गया है |महात्म्य का अर्थ होता है महिमा
महात्म्य ज्ञान पूर्वकं श्रद्धा भवति|
महिमा के ज्ञान के पश्चात ही श्रद्धा उत्पन्न होती है |परम पूज्य गोस्वामी श्री तुलसीदास जी कहते हैं
जाने बिनु ना होत परतीती, बिनु परतीति होत नहीं प्रीती |
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मित्रों यह थी भागवत की भूमिका इसके बाद महात्म्य शुरू होगा मंगलाचरण से |
भागवत कथा के सभी भागों कि लिस्ट देखें
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नोट - अगर आपने भागवत कथानक के सभी भागों पढ़ लिया है तो इसे भी पढ़े श्री जीयर स्वामी जी महराज की यह भागवत कथा हमारी दूसरी वेबसाइट पर अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुकी है
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Radhe Radhe
जवाब देंहटाएंATI Sundar
जवाब देंहटाएंAapka bahut bahut abhar
जवाब देंहटाएंSahi h
जवाब देंहटाएंBahut achha likhte ho aap
जवाब देंहटाएंधन्यवाद:
हटाएंATI sundr prayas
जवाब देंहटाएंधन्यवाद:
हटाएंBahut achha LGA hme
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आप लोगों को अच्छा लगना ही,,, हमारा लिखना सार्थक है |
हटाएंJay shri Krishna
जवाब देंहटाएंराधे राधे महाराज पंचम स्कंध भाग 1 से आगे का भाग नहीं मिल रहा आप की पोस्ट पर कब तक आ जाएगा
जवाब देंहटाएंमहोदय सभी भाग उपलब्ध हैं | भागवत के हर भाग के नीचे सभी भागों की लिस्ट दी गई है आप वहीं से अपने मनपसंद भाग को पढ़ सकते हैं |
हटाएंJay Shri Krishna
जवाब देंहटाएंJay Shri Krishna
जवाब देंहटाएंआप अपना सम्पर्क सूत्र कृपया इस नंबर पर देने की कृपा करें 9837919224
जवाब देंहटाएंराधे-राधे गुरु जी के बाजार में आपके भागवत कथा उपलब्ध है
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