Sandhya Vandana lyrics /संध्योपासन-विधि

Sandhya Vandana lyrics

संध्योपासन-विधि 

Sandhya Vandana lyrics /संध्योपासन-विधि


संध्योपासन-विधि संध्योपासन द्विजमात्रके लिये बहुत ही आवश्यक कर्म है। इसके बिना पूजा आदि कार्य करनेकी योग्यता नहीं आती । अतः द्विजमात्रके लिये संध्या करना आवश्यक है।


स्नानके बाद दो वस्त्र धारणकर पूर्व, ईशानकोण या उत्तरकी ओर मुँह कर आसनपर बैठ जाय। आसनकी ग्रन्थि उत्तर-दक्षिणकी ओर हो। तुलसी, रुद्राक्ष आदिकी माला धारण कर ले। दोनों अनामिकाओंमें पवित्री धारण कर ले। गायत्री मन्त्र पढ़कर शिखा बाँधे तथा तिलक लगा ले और आचमन करे- Sandhya Vandana lyrics


आचमन-' ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः'-इन तीन मन्त्रोंसे तीन बार आचमन करके 'ॐ हृषीकेशाय नमः' इस मन्त्रको बोलकर हाथ धो ले।

sandhya vandanam pdf

पहले विनियोग पढ़ ले, तब मार्जन करे (जल छिड़के)।


१-संध्याहीनोऽशुचिर्नित्यमनर्हः सर्वकर्मसु।(दक्षस्मृति २। २७) 

निम्नलिखित स्थितिमें संध्याके लोप होनेपर पुण्यका साधन होनेके कारण दोष नहीं माना गया है

राष्ट्रक्षोभे नृपक्षोभे रोगार्ते भय आगते। 

देवाग्निद्विजभूपानां कार्ये महति संस्थिते॥ 

संध्याहानौ न दोषोऽस्ति यतस्तत् पुण्यसाधनम्॥

(जमदग्नि) 

२- जिनके पास संध्या करनेके लिये समयका अभाव हो तथा संध्याके मन्त्र भी याद न हों, वे कम-से-कम आचमन कर गायत्रीमन्त्रसे प्राणायाम तथा गायत्रीमन्त्रसे तीन बार सूर्यार्घ्य देकर करमालापर दस बार गायत्री मन्त्रका जप कर लें। न करनेकी अपेक्षा इतने मात्रसे भी संध्याकी पूर्ति हो सकती है। 

३- संध्या-पूजामें आँवलेके बराबर रुद्राक्षकी ३२ मणियोंकी माला कण्ठीरूपमें धारण करनेका भी विधान है।


मार्जन-विनियोग-मन्त्र- ॐ अपवित्रः पवित्रो वेत्यस्य वामदेव ऋषिः, विष्णुर्देवता, गायत्रीच्छन्दः हृदि पवित्रकरणे विनियोगः।' इस प्रकार विनियोग पढ़कर जल छोड़े तथा निम्नलिखित मन्त्रसे मार्जन करे (शरीर एवं सामग्रीपर जल छिड़के)।


ॐ अपवित्रः पवित्रों वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ 

तदनन्तर आगे लिखा विनियोग पढ़े-' ॐ पृथ्वीति मन्त्रस्य॑ मेरुपृष्ठ ऋषिः, सुतलं छन्दः, कूर्मो देवता आसनपवित्रकरणे विनियोगः।' फिर नीचे लिखा मन्त्र पढ़कर आसनपर जल छिड़के


ॐ पृथ्वि! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता। 

त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥


संध्याका संकल्प- इसके बाद हाथमें कुश और जल लेकर संध्याका संकल्प पढ़कर जल गिरा दे–'ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य... उपात्तदुरितक्षयपूर्वक श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं संध्योपासनं करिष्ये।'


आचमन-इसके लिये निम्नलिखित विनियोग पढ़े-

ॐ ऋतं चेति माधुच्छन्दसोऽघमर्षण ऋषिरनुष्टुप् छन्दो भाववृत्त दैवतमपामुपस्पर्शने विनियोगः। फिर नीचे लिखा मन्त्र पढ़कर आचमन करे-

ॐ ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत। ततो रात्र्यजायत। ततः समुद्रो अर्णवः।समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत।अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी।सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्।


१- विनियोग पढ़कर जल छोड़नेकी विधि शास्त्रोंमें नहीं मिलनेके कारण कुछ विद्वानोंका मत है कि विनियोगमें जल छोड़नेका प्रचलन अर्वाचीन है। मुख्यरूपसे ऋषि, देवता आदिके स्मरणका महत्त्व माना गया है। इसलिये विनियोगका पाठमात्र भी किया जा सकता है।' 

२- पृष्ठ-सं० पाँचके अनुसार संकल्प करे। ३- अग्निपुराण २१५ । ४३ ।


दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः। (ऋग्वेद १० । १९०। १)

तदनन्तर दायें हाथमें जल लेकर बायें हाथसे ढककर 'ॐ' के साथ तीन बार गायत्रीमन्त्र पढ़कर अपनी रक्षाके लिये अपने चारों ओर जलकी धारा दे। फिर प्राणायाम करे।

प्राणायामका विनियोग*—प्राणायाम करनेके पूर्व उसका विनियोग इस प्रकार पढ़े-


*शास्त्रका कथन है कि पर्वतसे निकले धातुओंका मल जैसे अग्निसे जल जाता है, वैसे प्राणायामसे आन्तरिक पाप जल जाते हैं-

यथा पर्वतधातूनां दोषान् हरति पावकः। 

एवमन्तर्गतं पापं प्राणायामेन दह्यते॥

___(प्रयोगपारिजात, अत्रिस्मृ० २। ३) 

प्राणायाम करनेवाला आगकी तरह चमक उठता है'

प्राणायामैस्त्रिभिः पूतस्तत्क्षणाज्ज्वलतेऽग्निवत्॥'

(प्रयोगपारिजात) यही बात शब्द-भेदसे अत्रिस्मृति (३। ३) में कही गयी है। भगवान्ने कहा है कि प्राणायाम सिद्ध होनेपर हजारों वर्षों की लम्बी आयु प्राप्त होती है। अत: चलते-फिरते सदा प्राणायाम किया करे-

गच्छंस्तिष्ठन् सदा कालं वायुस्वीकरणं परम्। 

सर्वकालप्रयोगेण सहस्त्रायुर्भवेन्नरः॥ 

प्राणायामकी बड़ी महिमा कही गयी है। इससे पाप-ताप तो जल ही जाते हैं, शारीरिक उन्नति भी अद्भुत ढंगसे होती है। हजारों वर्षकी लंबी आयु भी इससे मिल सकती है। सुन्दरता और स्वास्थ्यके लिये तो यह मानो वरदान ही है। यदि प्राणायामके ये लाभ बुद्धिगम्य हो जायँ तो इसके प्रति आकर्षण बढ़ जाय और तब इससे राष्ट्रका बड़ा लाभ हो।


     जब हम साँस लेते हैं, तब इसमें मिले हुए आक्सीजनसे फेफड़ोंमें पहुँचा हुआ अशुद्ध काला रक्त शुद्ध होकर लाल बन जाता है। इस शुद्ध रक्तका हृदय पंपिंग-क्रियाद्वारा शरीरमें संचार कर देता है। यह रक्त शरीरके सब घटकोंको खुराक बाँटता-बाँटता स्वयं काला पड़ जाता है। तब हृदय इस उपकारी तत्त्वको फिरसे शुद्ध होनेके लिये फेफड़ोंमें भेजता है। वहाँ साँसमें मिले प्राणवायु (आक्सीजन)-के द्वारा यह फिर सशक्त हो जाता है और फिर सारे घटकोंको खुराक बाँटकर शरीरकी जीवनी-शक्तिको बनाये रखता है। यही कारण है कि साँसके बिना पाँच मिनट भी जीना कठिन हो जाता है।

किंतु रक्तकी शोधन-क्रियामें एक बाधा पड़ती रहती है। साधारण साँस फेफड़ोंकी सूक्ष्म कणिकाओंतक पहुँच नहीं पाती। इसकी यह अनिवार्य आवश्यकता देख भगवान्ने प्रत्येक


ॐ कारस्य ब्रह्मा ऋषिर्दैवी गायत्री छन्दः अग्निः परमात्मा देवता) शुक्लो वर्णः सर्वकर्मारम्भे विनियोगः ।'

Sandhya Vandana lyrics

सत्कर्मके आरम्भमें इसका (प्राणायामका) संनिवेश कर दिया है। कभी-कभी तो सोलहसोलह प्राणायामोंका विधान कर दिया है-

द्वौ द्वौ प्रातस्तु मध्याह्ने त्रिभिः संध्यासुरार्चने। 

भोजनादौ भोजनान्ते प्राणायामास्तु षोडश॥

(देवीपुराण) किंतु भगवान्की यह व्यवस्था तो शास्त्र मानकर चलनेवाले अधिकारी पुरुषोंके लिये हुई, पर प्राणायाम सभी प्राणियोंके लिये अपेक्षित है। अत: भगवान्ने प्राणायामकी दूसरी व्यवस्था प्रकृतिके द्वारा करवायी है। हम जो खर्राटे भरते हैं, वह वस्तुतः प्रकृतिके द्वारा हमसे कराया गया प्राणायाम ही है। इस प्राणायामका नाम 'भस्त्रिका-प्राणायाम' है। 

'भस्त्रिका' का अर्थ है-'भाथी'। भाथी इस गहराईसे वायु खींचती है कि जिससे उसके प्रत्येक अवयवतक वायु पहुँच जाती है और वह पूरी फूल उठती है तथा वह इस भाँति वायु फेंकती है कि उसका प्रत्येक अवयव भलीभाँति सिकुड़ जाता है। इसी तरह भस्त्रिका-प्राणायाममें वायुको इस तरह खींचा जाता है कि फेफड़ेके प्रत्येक कणिकातक वह पहुँच जाय और छोड़ते समय प्रत्येक कणिकासे वह निकल जाय। इस प्राणायाममें 'कुम्भक' नहीं होता और न मन्त्रकी ही आवश्यकता पड़ती है। केवल ध्यानमात्र करना चाहिये-

'अगर्भो ध्यानमात्रं तु स चामन्त्रः प्रकीर्तितः॥ (देवीपुराण ११ । २० । ३४)

स्वास्थ्य और सुन्दरता बढ़ानेके लिये तथा भगवान्के सांनिध्यको प्राप्त करनेके लिये तो प्राणायाम शत-शत अनुभूत है।

भस्त्रिका-प्राणायामकी अनेक विधियाँ हैं। उनमें एक प्रयोग लिखा जाता है

प्रात: खाली पेट शवासनसे लेट जाय। मेरुदण्ड सीधा होना चाहिये। इसलिये चौकी या जमीनपर लेट जाय, फिर मुँह बंद कर नाकसे धीरे-धीरे साँस खींचे। जब खींचना बंद हो जाय, तब मुँहसे फूंकते हुए धीरे-धीरे छोड़े, रोके नहीं। भगवान्का ध्यान चलता रहे। यह प्रयोग बीस मिनटसे कम न हो। यहाँ ध्यान देनेकी बात यह है कि साँसका लेना और छोड़ना अत्यन्त धीरे-धीरे हो। इतना धीरे-धीरे कि नाकके पास हाथमें रखा हुआ सत्तू भी उड़ न सके-

न प्राणेनाप्यपानेन वेगाद् वायुं समुच्छ्वसेत्।

येन सक्तून् करस्थांश्च निःश्वासो नैव चालयेत्॥ 

* प्रणवस्य ऋषिर्ब्रह्मा गायत्री छन्द एव च। 

देवोऽग्निः परमात्मा स्याद् योगो वै सर्वकर्मसु॥

(अग्निपु० २१५। ३२)


ॐ सप्तव्याहृतीनां विश्वामित्रजमदग्निभरद्वाजगौतमात्रिवसिष्ठकश्यपा ऋषयो गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहतीपङ्क्तित्रिष्टुब्जगत्यश्छन्दांस्यग्निवाय्वादित्यबृहस्पतिवरुणेन्द्रविष्णवो देवता अनादिष्टप्रायश्चित्ते प्राणायामे विनियोगः । 

ॐ तत्सवितुरिति विश्वामित्रऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता प्राणायामे विनियोगः। 

ॐ आपो ज्योतिरिति शिरसः प्रजापतिर्ऋषिर्यजुश्छन्दो ब्रह्माग्निवायुसूर्या देवताः प्राणायामे विनियोगः ।

(क) प्राणायामके मन्त्र- फिर आँखें बंद कर नीचे लिखे मन्त्रोंका प्रत्येक प्राणायाममें तीन-तीन बार (अथवा पहले एक बारसे ही प्रारम्भ करे, धीरे-धीरे तीन-तीन बारका अभ्यास बढ़ावे) पाठ करे।


ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम्। (तै० आ० प्र० १० अ० २७)

Sandhya Vandana lyrics

१-व्याहतीनां तु सर्वासामृषिरेव प्रजापतिः। 

व्यस्ताश्चैव समस्ताश्च ब्राह्ममक्षरमोमिति॥ 

विश्वामित्रो जमदग्निर्भरद्वाजोऽथ गौतमः। 

ऋषिरत्रिर्वसिष्ठश्च कश्यपश्च यथाक्रमम्॥ 

अग्निर्वायू रविश्चैव वाक्पतिर्वरुणस्तथा। 

इन्द्रो विष्णुाहृतीनां दैवतानि यथाक्रमम्॥ 

गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् च बृहतीपंक्तिरेव च। 

त्रिष्टुप् च जगती चेतिच्छन्दांस्याहुरनुक्रमात्॥

(अग्निपुराण २१५। २३५-३८) 

२-'आपो ज्योती रस' इति गायत्र्यास्तु शिरः स्मृतम्। 

ऋषिः प्रजापतिस्तस्य छन्दोहीनं यजुर्यतः॥ 

ब्रह्माग्निवायुसूर्याश्च देवताः परिकीर्तिताः॥

(अग्निपुराण २१५। ४४-४५)


(ख) प्राणायामकी विधि-प्राणायामके तीन भेद होते हैं१. पूरक, २. कुम्भक और ३.रेचक।

sandhya vandana, sandhya vandanam, sandhya vandanam pdf, sandhya vandan kaise karen, sandhya vandan kya hai, sandhya vandan mantra, sandhya vandanam telugu, sandhya vandan vidhi, sandhya vandan pdf, sandhya vandan in hindi, sandhya vandan time, sandhya vandan meaning,


१-अँगूठेसे नाकके दाहिने छिद्रको दबाकर बायें छिद्रसे श्वासको धीरे-धीरे खींचनेको 'पूरक प्राणायाम' कहते हैं। पूरक प्राणायाम करते समय उपर्युक्त मन्त्रोंका मनसे उच्चारण करते हुए नाभिदेशमें नीलकमलके दलके समान नीलवर्ण चतुर्भुज भगवान् विष्णुका ध्यान करे।


२-जब साँस खींचना रुक जाय, तब अनामिका और कनिष्ठिका अँगुलीसे नाकके बायें छिद्रको भी दबा दे। मन्त्र जपता रहे। यह 'कुम्भक प्राणायाम' हुआ। इस अवसरपर हृदयमें कमलपर विराजमान लाल वर्णवाले चतुर्मुख ब्रह्माका ध्यान करे।

३-अंगूठेको हटाकर दाहिने छिद्रसे श्वासको धीरे-धीरे छोड़नेको 'रेचक प्राणायाम' कहते हैं। इस समय ललाटमें श्वेतवर्ण शंकरका ध्यान करना चाहिये। मनसे मन्त्र जपता रहे। (दे०भा० ११ । १६। २८-३६)

(ग) प्राणायामके बाद आचमन- (प्रात:कालका विनियोग और मन्त्र) प्रात:काल नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वीपर जल छोड़ दि -सूर्यश्च मेति नारायण ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः सूर्यो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः । पश्चात् नीचे लिखे मन्त्रको पढ़कर आचमन करे_

ॐ सूर्यश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम्। यद्रात्र्या पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना रात्रिस्तदवलुम्पतु। यत्किञ्च दुरितं मयि इदमहमापोऽमृतयोनौ सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा॥

(तै० आ० प्र० १०, अ० २५) 

मार्जन- इसके बाद मार्जनका निम्नलिखित विनियोग पढ़कर बायें हाथमें जल लेकर कुशोंसे या दाहिने हाथकी तीन अंगुलियोंसे १ से ७ तक मन्त्रोंको बोलकर सिरपर जल छिड़के। ८वें मन्त्रसे पृथ्वीपर तथा ९वेंसे फिर सिरपर जल छिड़के।

Sandhya Vandana lyrics

ॐ आपो हि ष्ठेत्यादित्र्यचस्य सिन्धुद्वीप ऋषिर्गायत्री छन्दः आपो देवता मार्जने विनियोगः ।


१-ब्रह्मोक्तयाज्ञवल्क्यसंहिता (अ० २, श्लोक ६७ के आगे) 

२-विप्रुषोऽष्टौ क्षिपेन्मूर्ध्नि अथो यस्य क्षयाय च। (व्यासस्मृति) 

३-'आपो हि ष्ठे' त्यूचोऽस्याश्च सिन्धुद्वीप ऋषिः स्मृतः॥ 

'ब्रह्मस्नानाय छन्दोऽस्य गायत्री देवता जलम्। '

मार्जने विनियोगोऽस्य ह्यावभृथके क्रतोः॥

(अग्निपु० २१५। ४१-४२) 

(योगियाज्ञवल्क्यस्मृतिमें भी इसका प्रमाण मिलता है)


१. ॐ आपो हि ष्ठा मयोभुवः। २. ॐ ता न ऊर्जे दधातन। ३. ॐ महे रणाय चक्षसे। ४. ॐ यो वः शिवतमो रसः।५. ॐ तस्य भाजयतेह नः । ६. ॐ उशतीरिव मातरः। ७. ॐ तस्मा अरं गमाम वः। ८. ॐ यस्य क्षयाय जिन्वथ। ९. ॐ आपो जनयथा च नः।

(यजु० ११। ५०-५२) 

मस्तकपर जल छिड़कनेके विनियोग और मन्त्र-निम्नलिखित विनियोग पढ़कर बायें हाथमें जल लेकर दाहिने हाथसे ढक ले और निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर सिरपर छिड़के।

विनियोग-द्रुपदादिवेत्यस्य कोकिलो राजपुत्र ऋषिरनुष्टुप् छन्दः आपो देवताः शिरस्सेके विनियोगः ।

 मन्त्र-ॐ द्रुपदादिव मुमुचानः स्विन्नः स्नातो मलादिव। _पूतं पवित्रेणेवाज्यमापः शुन्धन्तु मैनसः॥

(यजु० २०। २०) 

अघमर्षण और आचमनके विनियोग और मन्त्र- नीचे लिखा विनियोग पढ़कर दाहिने हाथमें जल लेकर उसे नाकसे लगाकर मन्त्र पढ़े और ध्यान करे कि 'समस्त पाप दाहिने नाकसे निकलकर हाथके जलमें आ गये हैं। फिर उस जलको बिना देखे बायीं ओर फेंक दे।


१-कोकिलो राजपुत्रस्तु द्रुपदाया ऋषिः स्मृतः। 

अनुष्टुप् च भवेच्छन्द आपश्चैव तु दैवतम्॥

(योगियाज्ञवल्क्य, आह्निक सूत्रावली) 

२-उद्धृत्य दक्षिणे हस्ते जलं गोकर्णवत् कृते। 

नि:श्वसन् नासिकाग्रे तु पाप्मानं पुरुषं स्मरेत्॥ 

ऋतं चेति ऋचं वापि द्रुपदां वा जपेद् ऋचम्। 

दक्षनासापुटेनैव पाप्मानमपसारयेत्। 

तज्जलं नावलोक्याथ वामभागे क्षितौ त्यजेत्॥

(प्रजापति, दे० भा० ११। १६। ४५-४७)


 अघमर्षणसूक्तस्याघमर्षण ऋषिरनुष्टुप् छन्दो भाववृत्तो देवता अघमर्षणे विनियोगः ।

मन्त्र-ॐ ऋतञ्च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत। ततो रात्र्यजायत। ततः समुद्रो अर्णवः। समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत। अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी। सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्। दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः॥

(ऋ० अ० ८ अ० ८ व० ४८) 

पुनः निम्नलिखित विनियोग करे-

अन्तश्चरसीति तिरश्चीन ऋषिरनुष्टुप् छन्दः आपो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः । 

फिर इस मन्त्रसे आचमन करे-

ॐ अन्तश्चरसि भूतेषु गुहायां विश्वतोमुखः। 

त्वं यज्ञस्त्वं वषट्कार आपो ज्योती रसोऽमृतम् ॥

___ (कात्यायन, परिशिष्ट सूत्र) 

सूर्यार्थ्य-विधि-इसके बाद निम्नलिखित विनियोगको पढ़कर अञ्जलिसे अंगूठेको अलग हटाकर गायत्री मन्त्रसे सूर्य-


१-अघमर्षणसूक्तस्य ऋषिरेवाघमर्षणम्। 

अनुष्टुप् च भवेच्छन्दो भाववृत्तस्तु दैवतम्॥

(अग्निपुराण २१५ । ४३) 

२-ब्रह्मोक्तयाज्ञवल्क्यसंहिता २। ७३ 

३-अग्निपुराणमें इस मन्त्रका पाठ इस प्रकार है

अन्तश्चरसि भूतेषु गुहायां विश्वमूर्तिषु॥ 

तपोयज्ञवषट्कार आपो ज्योती रसामृतम्।

(२१५। ४६-४७) 

४-मुक्तहस्तेन दातव्यं मुद्रां तत्र न कारयेत्। 

तर्जन्यङ्गुष्ठयोगेन राक्षसी मुद्रिका स्मृता॥ 

राक्षसीमुद्रिकायेण तत्तोयं रुधिरं भवेत्॥

(अत्रिस्मृति, देवीभा० ११ । १६। ४९)


भगवान्को जलसे अर्घ्य दे। अर्घ्य में चन्दन और फूल मिला ले। सबेरे और दोपहरको एक एड़ी उठाये हुए खड़े होकर अर्घ्य देना चाहिये। सबेरे कुछ झुककर खड़ा होवे और दोपहरको सीधे खड़ा होकर और शामको बैठकर । सबेरे और शामको तीनतीन अञ्जलि दे और दोपहरको एक अञ्जलि। सुबह और दोपहरको जलमें अञ्जलि उछाले और शामको धोकर स्वच्छ किये स्थलपर धीरेसे अञ्जलि दे। ऐसा नदीतटपर करे। अन्य जगहोंमें पवित्र स्थलपर अर्घ्य दे, जहाँ पैर न लगे। अच्छा है कि बर्तनमें अर्घ्य देकर उसे वृक्षके मूलमें डाल दिया जाय।

Sandhya Vandana lyrics

sandhya vandana, sandhya vandanam, sandhya vandanam pdf, sandhya vandan kaise karen, sandhya vandan kya hai, sandhya vandan mantra, sandhya vandanam telugu, sandhya vandan vidhi, sandhya vandan pdf, sandhya vandan in hindi, sandhya vandan time, sandhya vandan meaning,


सूर्यार्थ्यका विनियोग-सूर्यको अर्घ्य देनेके पूर्व निम्नलिखित विनियोग पढ़ें-

(क) 'ॐकारस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दः परमात्मा देवता अर्घ्यदाने विनियोगः।' 

(ख) ॐ भूर्भुवः स्वरिति महाव्याहृतीनां परमेष्ठी प्रजापतिऋषिर्गायत्र्युष्णिग नुष्टुभश्छन्दांस्यग्निवायु सूर्यादेवता: अर्घ्यदाने विनियोगः।' । 

(ग) ॐ तत्सवितुरित्यस्य विश्वामित्र ऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता सूर्यार्घ्यदाने विनियोगः।'


१-ईषन्नम्रः प्रभाते वै मध्याले दण्डवत् स्थितः। 

आसने चोपविष्टस्तु द्विजः सायं क्षिपेदपः॥

(दे० भा० ११। १६। ५२) 

२-जलेष्वयँ प्रदातव्यं जलाभावे शुचिस्थले।

सम्प्रोक्ष्य वारिणा सम्यक् ततोऽयं तु प्रदापयेत्॥ (अग्निस्मृति)


इस प्रकार विनियोग कर नीचे लिखा मन्त्र पढ़कर अर्घ्य दे'- ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।' (शुक्लयजु० ३६। ३)

इस मन्त्रको पढ़कर 'ब्रह्मस्वरूपिणे सूर्यनारायणाय नमः' कहकर अर्घ्य दे।

विशेष- यदि समय (प्रातः सूर्योदयसे तथा सूर्यास्तसे तीन घड़ी बाद) का अतिक्रमण हो जाय तो प्रायश्चित्तस्वरूप नीचे लिखे मन्त्रसे एक अर्घ्य पहले देकर तब उक्त अर्घ्य दे-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ।


उपस्थान-सूर्यके उपस्थानके लिये प्रथम नीचे लिखे विनियोगोंको पढ़े-

(क) उद्वयमित्यस्य प्रस्कण्व ऋषिरनुष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः।

(ख) उदु त्यमित्यस्य प्रस्कण्व ऋषिर्निचद्गायत्री छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः।

(ग) चित्रमित्यस्य कौत्स ऋषिस्त्रिष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः।

(घ) तच्चक्षुरित्यस्य दध्यथर्वण ऋषिरक्षरातीतपुरउष्णिक्छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः ।

sandhya vandanam pdf


१-कालातिक्रमणे चैव त्रिसंध्यमपि सर्वदा। 

चतुर्थार्घ्यं प्रकुर्वीत भानोर्व्याहृतिसम्पुटम्॥

(वसिष्ठ) 

२-शुक्लयजुर्वेद-सर्वानुक्रम। 

३-चित्रं देवेति ऋचके ऋषिः कौत्स उदाहृतः। 

त्रिष्टुप् छन्दो दैवतं च सूर्योऽस्याः परिकीर्तितम्॥

(अग्निपुराण २१५ । ४९) 

४-यजुर्वेद-सर्वानुक्रम।


इसके बाद प्रातः चित्रानुसार खड़े होकर तथा दोपहरमें दोनों हाथोंको उठाकर और सायंकाल बैठकर हाथ जोड़कर नीचे लिखे मन्त्रोंको पढ़ते हुए सूर्योपस्थान करे।

प्रातःकालीन सूर्योपस्थान

sandhya vandana, sandhya vandanam, sandhya vandanam pdf, sandhya vandan kaise karen, sandhya vandan kya hai, sandhya vandan mantra, sandhya vandanam telugu, sandhya vandan vidhi, sandhya vandan pdf, sandhya vandan in hindi, sandhya vandan time, sandhya vandan meaning,

Sandhya Vandana lyrics

सूर्योपस्थानके मन्त्र-

(क) ॐ उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम्। देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम्॥

(यजु० २०। २१) 

(ख) ॐ उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः॥ दृशे विश्वाय सूर्यम्।

(यजु० ७। ४१)


१-मध्याह्न-उपस्थान तथा सायं-उपस्थानके चित्र आगे दिये गये हैं।


(ग) ॐ चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः। 

आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्ष सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च॥

(यजु० ७। ४२) 

(घ) ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शत शृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्।

(यजु० ३६। २४) 


गायत्री-जपका विधान 

षङ्गन्यास-गायत्री-मन्त्रके जपके पूर्व षडङ्गन्यास करनेका विधान है। अतः आगे लिखे एक-एक मन्त्रको बोलते हुए चित्रके अनुसार उन-उन अंगोंका स्पर्श करे-

sandhya vandana, sandhya vandanam, sandhya vandanam pdf, sandhya vandan kaise karen, sandhya vandan kya hai, sandhya vandan mantra, sandhya vandanam telugu, sandhya vandan vidhi, sandhya vandan pdf, sandhya vandan in hindi, sandhya vandan time, sandhya vandan meaning,

sandhya vandanam pdf

(१) ॐ हृदयाय नमः (दाहिने हाथकी पाँचों अंगुलियोंसे हृदयका स्पर्श करे)। (२) ॐ भूः शिरसे स्वाहा (मस्तकका स्पर्श करे)। (३) ॐ भुवः शिखायै वषट् (शिखाका अँगूठेसे स्पर्श करे)। (४) ॐ स्वः कवचाय हुम् (दाहिने हाथकी अँगुलियोंसे बायें कंधेका और बायें हाथकी अँगुलियोंसे दायें कंधेका स्पर्श करे)। (५) ॐ भूर्भुवः स्वः नेत्राभ्यां वौषट् (नेत्रोंका स्पर्श करे)। (६) ॐ भूर्भुवः स्वः अस्त्राय फट् (बायें हाथकी हथेलीपर दायें हाथको सिरसे घुमाकर मध्यमा और तर्जनीसे ताली बजाये)। 

प्रातःकाल ब्रह्मरूपा गायत्रीमाताका ध्यान-

ॐ बालां विद्यां तु गायत्रीं लोहितां चतुराननाम्। 

रक्ताम्बरद्वयोपेतामक्षसूत्रकरां तथा॥ 

कमण्डलुधरां देवीं हंसवाहनसंस्थिताम्। 

ब्रह्माणी ब्रह्मदैवत्यां ब्रह्मलोकनिवासिनीम्॥

मन्त्रेणावाहयेद्देवीमायान्ती सूर्यमण्डलात्। 

'भगवती गायत्रीका मुख्य मन्त्रके द्वारा सूर्यमण्डलसे आते हुए इस प्रकार ध्यान करना चाहिये कि उनकी किशोरावस्था है और वे ज्ञानस्वरूपिणी हैं। वे रक्तवर्णा एवं चतुर्मुखी हैं। उनके उत्तरीय तथा मुख्य परिधान दोनों ही रक्तवर्णके हैं। उनके हाथमें रुद्राक्षकी माला है। हाथमें कमण्डलु धारण किये वे हंसपर विराजमान हैं। वे सरस्वती-स्वरूपा हैं, ब्रह्मलोकमें निवास करती हैं और ब्रह्माजी उनके पतिदेवता हैं।'


गायत्रीका आवाहन- इसके बाद गायत्रीमाताके आवाहनके लिये निम्नलिखित विनियोग करे-

तेजोऽसीति धामनामासीत्यस्य च परमेष्ठी प्रजापतिर्कषिर्यजुस्त्रिष्टुबुष्णिहौ छन्दसी आज्यं देवता गायत्र्यावाहने विनियोगः।

पश्चात् निम्नलिखित मन्त्रसे गायत्रीका आवाहन करे-

'ॐ तेजोऽसि शुक्रमस्यमृतमसि।धामनामासि प्रियं देवानामनाधृष्टं देवयजनमसि।' (यजु० १। ३१) ।

 गायत्रीदेवीका उपस्थान (प्रणाम)-आवाहन करनेपर गायत्रीदेवी आ गयी हैं, ऐसा मानकर निम्नलिखित विनियोग पढ़कर आगेके मन्त्रसे उनको प्रणाम करे-

गायत्र्यसीति विवस्वान् ऋषिः स्वराण्महापङ्क्तिश्छन्दः परमात्मा देवता गायत्र्युपस्थाने विनियोगः।

ॐ गायत्र्यस्येकपदी द्विपदी त्रिपदी चतुष्पद्यपदसि। न हि पद्यसे नमस्ते तुरीयाय दर्शताय पदाय परोरजसेऽसावदो मा प्रापत्।

(बृहदा० ५। १४। ७) 

[गायत्री-उपस्थानके बाद गायत्री-शापविमोचनका तथा गायत्रीमन्त्र-जपसे पूर्व चौबीस मुद्राओंके करनेका भी विधान है, परंतु नित्य संध्या-वन्दनमें अनिवार्य न होनेपर भी इन्हें जो विशेषरूपसे करनेके इच्छुक हैं, उनके लिये यहाँपर दिया जा रहा है।]

Sandhya Vandana lyrics

गायत्री-शापविमोचन 

ब्रह्मा, वसिष्ठ, विश्वामित्र और शुक्रके द्वारा गायत्री मन्त्र शप्त है। अतः शाप-निवृत्तिके लिये शाप-विमोचन करना चाहिये।

(१) ब्रह्म-शापविमोचन-विनियोग-ॐ अस्य श्रीब्रह्मशापविमोचनमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिर्भुक्तिमुक्तिप्रदा ब्रह्मशापविमोचनी गायत्री शक्तिर्देवता गायत्री छन्दः ब्रह्मशापविमोचने विनियोगः। 

मन्त्र-

ॐ गायत्रीं ब्रह्मेत्युपासीत यद्रूपं ब्रह्मविदो विदुः। 

तां पश्यन्ति धीराः सुमनसो वाचमग्रतः॥ 

ॐ वेदान्तनाथाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्। ॐ देवि! गायत्रि! त्वं ब्रह्मशापाद्विमुक्ता भव।

(२) वसिष्ठ-शापविमोचन-विनियोग-ॐ अस्य श्रीवसिष्ठशापविमोचनमन्त्रस्य निग्रहानुग्रहकर्ता वसिष्ठ ऋषिर्वसिष्ठानुगृहीता गायत्री शक्तिर्देवता विश्वोद्भवा गायत्री छन्दः वसिष्ठशापविमोचनार्थं जपे विनियोगः। 

मन्त्र-

ॐ सोऽहमर्कमयं ज्योतिरात्मज्योतिरहं शिवः ।

आत्मज्योतिरहं शुक्रः सर्वज्योतीरसोऽस्म्यहम्॥ 

योनिमुद्रा दिखाकर तीन बार गायत्री जपे। 

ॐ देवि! गायत्रि! त्वं वसिष्ठशापाद्विमुक्ता भव। 

(३) विश्वामित्र-शापविमोचन- विनियोग- ॐ अस्य श्रीविश्वामित्रशापविमोचनमन्त्रस्य नूतनसृष्टिकर्ता विश्वामित्रऋषिविश्वामित्रानुगृहीता गायत्री शक्तिर्देवता वाग्देहा गायत्री छन्दः विश्वामित्रशापविमोचनार्थं जपे विनियोगः। 

मन्त्र- 

ॐ गायत्रीं भजाम्यग्निमुखीं विश्वगर्भा यदुद्भवाः। 

देवाश्चक्रिरे विश्वसृष्टि तां कल्याणीमिष्टकरीं प्रपद्ये॥ 

ॐदेवि! गायत्रि! त्वं विश्वामित्रशापाद्विमुक्ता भव। 

(४) शुक्र-शापविमोचन-विनियोग-  ॐ अस्य श्रीशुक्रशापविमोचनमन्त्रस्य श्रीशुक्रऋषिः अनुष्टुप्छन्दः देवी गायत्री देवता शुक्रशापविमोचनार्थं जपे विनियोगः। मन्त्रसोऽहमर्कमयं ज्योतिरर्कज्योतिरहं शिवः। आत्मज्योतिरहं शुक्रः सर्वज्योतीरसोऽस्म्यहम्॥

ॐ देवि! गायत्रि! त्वं शुक्रशापाद्विमुक्ता भव। 

प्रार्थना-

ॐ अहो देवि महादेवि संध्ये विद्ये सरस्वति! 

अजरे अमरे चैव ब्रह्मयोनिर्नमोऽस्तु ते॥ 

ॐ देवि गायत्रि त्वं ब्रह्मशापाद्विमुक्ता भव, वसिष्ठशापाद्विमुक्ता भव, 

विश्वामित्रशापाद्विमुक्ता भव, शुक्रशापाद्विमुक्ता भव।

Sandhya Vandana lyrics

जपके पूर्वकी चौबीस मुद्राएँ 

सुमुखं सम्पुटं चैव विततं विस्तृतं तथा। 

द्विमुखं त्रिमुखं चैव चतुष्पञ्चमुखं तथा॥ 

षण्मुखाऽधोमुखं चैव व्यापकाञ्जलिकं तथा। 

शकटं यमपाशं च ग्रथितं चोन्मुखोन्मुखम्॥ 

प्रलम्बं मुष्टिकं चैव मत्स्यः कूर्मो वराहकम्। 

सिंहाक्रान्तं महाक्रान्तं मुद्गरं पल्लवं तथा॥ 

एता मुद्राश्चतुर्विंशज्जपादौ परिकीर्तिताः।

(देवीभा० ११ । १७। ९९–१०१, याज्ञवल्क्यस्मृति, आचाराध्याय, बालम्भट्टी टीका)

sandhya vandana, sandhya vandanam, sandhya vandanam pdf, sandhya vandan kaise karen, sandhya vandan kya hai, sandhya vandan mantra, sandhya vandanam telugu, sandhya vandan vidhi, sandhya vandan pdf, sandhya vandan in hindi, sandhya vandan time, sandhya vandan meaning,

sandhya vandanam pdf

(१) सुमुखम्-दोनों हाथोंकी अँगुलियोंको मोड़कर परस्पर मिलाये। (२) सम्पुटम्-दोनों हाथोंको फुलाकर मिलाये। (३) विततम्-दोनों हाथोंकी हथेलियाँ परस्पर सामने करे। (४) विस्तृतम्दोनों हाथोंकी अँगुलियाँ खोलकर दोनोंको कुछ अधिक अलग करे। (५) द्विमुखम्-दोनों हाथोंकी कनिष्ठिकासें कनिष्ठिका तथा अनामिकासे अनामिका मिलाये। (६) त्रिमुखम्-पुन: दोनों मध्यमाओंको मिलाये। (७) चतुर्मुखम्-दोनों तर्जनियाँ और मिलाये। (८) पञ्चमुखम्-दोनों अँगूठे और मिलाये। (९) षण्मुखम्-हाथ वैसे ही रखते हुए दोनों कनिष्ठिकाओंको खोले। 

(१०) अधोमुखम्उलटे हाथोंकी अँगुलियोंको मोड़े तथा मिलाकर नीचेकी ओर करे। (११) व्यापकाञ्जलिकम्-वैसे ही मिले हुए हाथोंको शरीरकी ओर घुमाकर सीधा करे। (१२) शकटम्-दोनों हाथोंको उलटाकर अँगूठेसे अँगूठा मिलाकर तर्जनियोंको सीधा रखते हुए मुट्ठी बाँधे। (१३) यमपाशम्-तर्जनीसे तर्जनी बाँधकर दोनों मुट्ठियाँ बाँधे। (१४) ग्रथितम्-दोनों हाथोंकी अंगुलियोंको परस्पर गूंथे। (१५) उन्मुखोन्मुखम्-हाथोंकी पाँचों अंगुलियोंको मिलाकर प्रथम बायेंपर दाहिना, फिर दाहिनेपर बायाँ हाथ रखे। (१६) प्रलम्बम्-अँगुलियोंको कुछ मोड़ दोनों हाथोंको उलटाकर नीचेकी ओर करे। 

(१७) मुष्टिकम्-दोनों अँगूठे ऊपर रखते हुए दोनों मुट्ठियाँ बाँधकर मिलाये। (१८) मत्स्य:-दाहिने हाथकी पीठपर बायाँ हाथ उलटा रखकर दोनों अँगूठे हिलाये। (१९) कूर्मः-सीधे बायें हाथकी मध्यमा, अनामिका तथा कनिष्ठिकाको मोड़कर उलटे दाहिने हाथकी मध्यमा, अनामिकाको उन तीनों अंगुलियोंके नीचे रखकर तर्जनीपर दाहिनी कनिष्ठिका और बायें अँगूठेपर दाहिनी तर्जनी रखे।

sandhya vandana, sandhya vandanam, sandhya vandanam pdf, sandhya vandan kaise karen, sandhya vandan kya hai, sandhya vandan mantra, sandhya vandanam telugu, sandhya vandan vidhi, sandhya vandan pdf, sandhya vandan in hindi, sandhya vandan time, sandhya vandan meaning,

sandhya vandana, sandhya vandanam, sandhya vandanam pdf, sandhya vandan kaise karen, sandhya vandan kya hai, sandhya vandan mantra, sandhya vandanam telugu, sandhya vandan vidhi, sandhya vandan pdf, sandhya vandan in hindi, sandhya vandan time, sandhya vandan meaning,


(२०) वराहकम्-दाहिनी तर्जनीको बायें अँगूठेसे मिला, दोनों हाथोंकी अँगुलियोंको परस्पर बाँधे। (२१) सिंहाक्रान्तम्-दोनों हाथोंको कानोंके समीप करे। (२२) महाक्रान्तम्-दोनों हाथोंकी अँगुलियोंको कानोंके समीप करे। (२३) मुद्गरम्-मुट्ठी बाँध, दाहिनी कुहनी बायीं हथेलीपर रखे। (२४) पल्लवम्-दाहिने हाथकी अँगुलियोंको मुखके सम्मुख हिलाये।

sandhya vandana, sandhya vandanam, sandhya vandanam pdf, sandhya vandan kaise karen, sandhya vandan kya hai, sandhya vandan mantra, sandhya vandanam telugu, sandhya vandan vidhi, sandhya vandan pdf, sandhya vandan in hindi, sandhya vandan time, sandhya vandan meaning,


गायत्री मन्त्रका विनियोग- इसके बाद गायत्री- मन्त्रके जपके लिये विनियोग पढ़े- ॐकारस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दः परमात्मा देवता, ॐ भूर्भुवः स्वरिति महाव्याहृतीनां परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिर्गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि अग्निवायुसूर्या देवताः, ॐ तत्सवितुरित्यस्य विश्वामित्रऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता जपे विनियोगः।


इसके पश्चात् गायत्री मन्त्रका १०८ बार जप करे।१०८ बार न हो सके तो कम-से-कम १० बार अवश्य जप किया जाय। संध्यामें गायत्री मन्त्रका करमालापर जप अच्छा माना जाता है*, गायत्रीमन्त्रका २४ लक्ष जप करनेसे एक पुरश्चरण होता है। जपके लिये सब मालाओंमें रुद्राक्षकी माला श्रेष्ठ है।


शक्तिमन्त्र जपनेकी करमाला- चित्र-संख्या १ के अनुसार अंक एकसे आरम्भकर दस अंकतक अंगूठेसे जप करनेसे एक करमाला होती है (दे० भा० ११ । १९ । १९) तर्जनीका मध्य तथा अग्रपर्व सुमेरु है। इस प्रकार दस करमाला जप करनेसे जप-संख्या एक सौ हो जायगी, पश्चात् चित्र-संख्या २ के अनुसार अंक १ से आरम्भ कर अंक ८ तक जप करनेसे १०८ की एक माला होती है।

sandhya vandana, sandhya vandanam, sandhya vandanam pdf, sandhya vandan kaise karen, sandhya vandan kya hai, sandhya vandan mantra, sandhya vandanam telugu, sandhya vandan vidhi, sandhya vandan pdf, sandhya vandan in hindi, sandhya vandan time, sandhya vandan meaning,


* पर्वभिस्तु जपेद् देवीं माला काम्यजपे स्मृता। 

   गायत्री वेदमूला स्याद् वेदः पर्वसु गीयते॥


गायत्री मन्त्र 

'ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।' (शु० यजु० ३६। ३)

गायत्री मन्त्रका अर्थ- भूः=सत्, भुव: चित्, स्व: आनन्दस्वरूप, सवितुः देवस्य-सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्माके, तत् वरेण्यं भर्ग:=उस प्रसिद्ध वरणीय तेजका (हम) ध्यान करते हैं, य: जो परमात्मा, न: हमारी, धियः=बुद्धिको(सत्की ओर) प्रचोदयात्-प्रेरित करे।


[गायत्रीमन्त्र-जपके बाद आठ मुद्राएँ, गायत्रीकवच तथा गायत्रीतर्पण करनेका विधान है, जिसे नित्य संध्या-वन्दनमें अनिवार्य न होनेपर भी यहाँ दिया जा रहा है] *।


* (क) जपके बादकी आठ मुद्राएँ 

सुरभिर्ज्ञानवैराग्ये योनिः शङ्खोऽथ पङ्कजम्।

लिङ्गनिर्वाणमुद्राश्च जपान्तेऽष्टौ प्रदर्शयेत्॥ 

(१) सुरभिः-दोनों हाथोंकी अँगुलियाँ गूंथकर बायें हाथकी तर्जनीसे दाहिने हाथकी मध्यमा, मध्यमासे तर्जनी, अनामिकासे कनिष्ठिका और कनिष्ठिकासे अनामिका मिलाये।

(२) ज्ञानम्-दाहिने हाथकी तर्जनीसे अँगूठा मिलाकर हृदयमें तथा इसी प्रकार बायाँ हाथ बायें घुटनेपर सीधा रखे। 

(३) वैराग्यम्-दोनों तर्जनियोंसे अंगूठे मिलाकर घुटनोंपर सीधे रखे। 

(४) योनिः-दोनों मध्यमाओंके नीचेसे बायीं तर्जनीके ऊपर दाहिनी अनामिका और दाहिनी तर्जनीपर बायीं अनामिका रख दोनों तर्जनियोंसे बाँध, दोनों मध्यमाओंको ऊपर रखे।

(५) शंख:-बायें अँगूठेको दाहिनी मुट्ठीमें बाँध, दाहिने अंगूठेसे बायीं अंगुलियोंको मिलाये। 

(६) पङ्कजम्-दोनों हाथोंके अँगूठे तथा अँगुलियोंको मिलाकर ऊपरकी ओर करे। 

(७) लिङ्गम्-दाहिने अंगूठेको सीधा रखते हुए दोनों हाथोंकी अंगुलियोंको गूंथकर बायाँ अँगूठा दाहिने अंगूठेकी जड़के ऊपर रखे। 

(८) निर्वाणम्-उलटे बायें हाथपर दाहिना हाथ सीधा रख, अँगुलियोंको परस्पर गूंथ, दोनों हाथ अपनी ओरसे घुमा, दोनों तर्जनियोंको सीधा कानके समीप करे।


सूर्य-प्रदक्षिणा-

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। 

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥ 

भगवान्को जपका अर्पण-अन्तमें भगवान्को यह वाक्य बोलते हुए जप निवेदित करे-अनेन गायत्रीजपकर्मणा सर्वान्तर्यामी भगवान् नारायणः प्रीयतां न मम।

sandhya vandana sandhya vandanam sandhya vandanam pdf sandhya vandan kaise karen sandhya vandan kya hai sandhya vandan mantra sandhya vandanam telugu sandhya vandan vidhi sandhya vandan pdf sandhya vandan in hindi sandhya vandan time sandhya vandan meaning sandhya vandana aarti sandhya vandan bhajan sandhya vandana bhakti sangeet sandhya vandan in english sandhya in english purv sandhya in english sandhya vandan geet sandhya vandan gana sandhya vandan hindi sandhya vandan hindi pdf sandhya vandan vidhi in hindi sandhya vandan mantra in hindi sandhya vandan kaise karte hain sandhya vandan meaning in hindi sandhya vandan kaise kiya jata hai sandhya vandan in kannada sandhya vandan in hindi pdf sandhya vandan image sandhya vandan kaise kare sandhya vandana ram leela sandhya vandan marathi sandhya vandan mantra lyrics sandhya vandan mahasabha संध्या वंदन mantra sandhya vandan prathna संध्या वंदन pdf ramlila sandhya vandan sandhya vandan song sandhya vandana sunaiye sandhya vandan ka samay sandhya timings today sandhya vandan video sandhya vandana youtube


गायत्री देवीका विसर्जन-निम्नलिखित विनियोगके साथ आगे बताये गये मन्त्रसे गायत्रीदेवीका विसर्जन करे-


(ख) गायत्री-कवच 

प्रथम निम्नलिखित वाक्य पढ़कर गायत्री-कवचका विनियोग करे-

ॐ अस्य श्रीगायत्रीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दो गायत्री देवता ॐ भूः बीजम्, भुवः शक्तिः, स्वः कीलकम्, गायत्रीप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः। 

निम्नलिखित मन्त्रोंसे गायत्रीमाताका ध्यान करे-

पञ्चवक्त्रां दशभुजां सूर्यकोटिसमप्रभाम्। 

सावित्री ब्रह्मवरदां चन्द्रकोटिसुशीतलाम्॥ 

त्रिनेत्रां सितवक्त्रां च मुक्ताहारविराजिताम्। 

वराभयाङ्कुशकशाहेमपात्राक्षमालिकाम् ॥ 

शङ्खचक्राब्जयुगलं कराभ्यां दधतीं वराम्। 

सितपङ्कजसंस्थां च हंसारूढां सुखस्मिताम्॥

ध्यात्वैवं मानसाम्भोजे गायत्रीकवचं जपेत्। 

तदनन्तर गायत्रीकवचका पाठ करे

ॐ ब्रह्मोवाच 

विश्वामित्र! महाप्राज्ञ! गायत्रीकवचं शृणु। 

यस्य विज्ञानमात्रेण त्रैलोक्यं वशयेत् क्षणात्॥ 

सावित्री मे शिरः पातु शिखायाममृतेश्वरी। 

ललाटं ब्रह्मदैवत्या भ्रुवौ मे पातु वैष्णवी॥ 

कर्णो मे पातु रुद्राणी सूर्या सावित्रिकाऽम्बिके। 

गायत्री वदनं पातु शारदा दशनच्छदौ॥ 

द्विजान् यज्ञप्रिया पातु रसनायां सरस्वती। 

सांख्यायनी नासिकां मे कपोलौ चन्द्रहासिनी॥ 

चिबुकं वेदगर्भा च कण्ठं पात्वघनाशिनी। 

स्तनौ मे पातु इन्द्राणी हृदयं ब्रह्मवादिनी॥ 

उदरं विश्वभोक्त्री च नाभौ पातु सुरप्रिया। 

जघनं नारसिंही च पृष्ठं ब्रह्माण्डधारिणी॥ 

पाश्वौँ मे पातु पद्माक्षी गुह्यं गोगोप्तिकाऽवतु। 

ऊर्वोरोंकाररूपा च जान्वोः संध्यात्मिकाऽवतु॥ 

जङ्घयोः पातु अक्षोभ्या गुल्फयोर्ब्रह्मशीर्षका। 

सूर्या पदद्वयं पातु चन्द्रा पादाङ्गुलीषु च॥


विनियोग-'उत्तमे शिखरे' इत्यस्य वामदेव ऋषिरनुष्टुप् छन्दः गायत्री देवता गायत्रीविसर्जने विनियोगः। 

गायत्रीके विसर्जनका मन्त्र-

ॐ उत्तमे शिखरे देवी भूम्यां पर्वतमूर्धनि।

ब्राह्मणेभ्योऽभ्यनुज्ञाता गच्छ देवि! यथासुखम्॥

(तै० आ० प्र० १० अ० १०) 

संध्योपासनकर्मका समर्पण-इसके बाद नीचे लिखा वाक्य पढ़कर इस संध्योपासनकर्मको भगवान्को समर्पित कर दे-

'अनेन संध्योपासनाख्येन कर्मणा श्रीपरमेश्वरः प्रीयतां न मम। ॐ तत्सत् श्रीब्रह्मार्पणमस्तु।' 

फिर भगवान्का स्मरण करे-

यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु। 

न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्॥ 

श्रीविष्णवे नमः, श्रीविष्णवे नमः, श्रीविष्णवे नमः॥*

श्रीविष्णुस्मरणात् परिपूर्णतास्तु।

Sandhya Vandana lyrics

सर्वाङ्गं वेदजननी पातु मे सर्वदाऽनघा। 

इत्येतत् कवचं ब्रह्मन् गायत्र्याः सर्वपावनम्। 

पुण्यं पवित्रं पापघ्नं सर्वरोगनिवारणम्॥ 

त्रिसन्ध्यं यः पठेद्विद्वान् सर्वान् कामानवाप्नुयात्। 

सर्वशास्त्रार्थतत्त्वज्ञः स भवेद्वेदवित्तमः॥ 

सर्वयज्ञफलं प्राप्य ब्रह्मान्ते समवाप्नुयात्। 

प्राप्नोति जपमात्रेण पुरुषार्थांश्चतुर्विधान्॥

॥ श्रीविश्वामित्रसंहितोक्तं गायत्रीकवचं सम्पूर्णम्॥

(ग) गायत्रीतर्पण (केवल प्रात:संध्यामें करे) 

ॐ गायत्र्या विश्वामित्र ऋषिः सविता देवता गायत्री छन्दः गायत्रीतर्पणे विनियोगः। ॐ भूः ऋग्वेदपुरुषं तर्पयामि। ॐ भुवः यजुर्वेदपुरुषं त० । ॐ स्वः सामवेदपुरुषं त०। ॐ महः अथर्ववेदपुरुषं त०। ॐ जनः इतिहासपुराणपुरुषं त०। ॐ तपः सर्वागमपुरुषं त०। ॐ सत्यं सत्यलोकपुरुषं त०। ॐ भूः भूलॊकपुरुषं त०। ॐ भुवः भुवर्लोकपुरुषं त०। ॐ स्वः स्वर्लोकपुरुषं त० । ॐ भूः एकपदां गायत्रीं त० । ॐ भुवः द्विपदां गायत्री त० । ॐ स्वः त्रिपदां गायत्रीं त० । ॐ भूर्भुवः स्वः चतुष्पदां गायत्रीं त०। ॐ उषसी त०। ० गायत्री त० । ॐ सावित्री त०। ॐ सरस्वतीं त० । ॐ वेदमातरं त०। ॐ पृथिवीं त०। 10 अजा तः। ॐ कौशिकी त०। ॐ सांकृतिं त०। ॐ सार्वजिती तर्पयामि। ॐ तत्सद्ब्रह्मार्पणमस्तु॥ (देवीभागवत)

तत्सद्ब्रह्मार्पणं कर्म कृत्वा त्रिर्विष्णुं स्मरेत्। (आचारभूषण)

sandhya vandanam pdf

संध्या समाप्त होनेपर पात्रोंमें बचा हुआ जल ऐसे स्थानमें या वृक्षकी जड़में गिरा दे जहाँ किसीका पाँव न पड़े। संध्या-समाप्तिके बाद आसनके नीचे किंचित् जल गिराकर उससे मस्तकमें तिलक करे।


मध्यान-संध्या

(प्रात:-संध्याके अनुसार करे) 

प्राणायामके बाद ॐ सूर्यश्च मेति' के विनियोग तथा आचमनमन्त्रके स्थानपर नीचे लिखा विनियोग तथा मन्त्र पढ़े।

विनियोग-ॐ आपः पुनन्त्विति ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दः आपो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः ।

आचमन-ॐ आपः पुनन्तु पृथिवीं पृथ्वी पूता पुनातु माम्। पुनन्तु ब्रह्मणस्पतिर्ब्रह्मपूता पुनातु माम्। यदुच्छिष्टमभोज्यं च यद्वा दुश्चरितं मम। सर्वं पुनन्तु मामापोऽसतां च प्रतिग्रह स्वाहा।

(तै० आ० प्र० १०, अ० २३) 

उपस्थान-चित्रके अनुसार दोनों हाथ ऊपर करे। अर्घ्य-सीधे खड़े होकर सूर्यको एक अर्घ्य दे। 

sandhya vandana sandhya vandanam sandhya vandanam pdf sandhya vandan kaise karen sandhya vandan kya hai sandhya vandan mantra sandhya vandanam telugu sandhya vandan vidhi sandhya vandan pdf sandhya vandan in hindi sandhya vandan time sandhya vandan meaning sandhya vandana aarti sandhya vandan bhajan sandhya vandana bhakti sangeet sandhya vandan in english sandhya in english purv sandhya in english sandhya vandan geet sandhya vandan gana sandhya vandan hindi sandhya vandan hindi pdf sandhya vandan vidhi in hindi sandhya vandan mantra in hindi sandhya vandan kaise karte hain sandhya vandan meaning in hindi sandhya vandan kaise kiya jata hai sandhya vandan in kannada sandhya vandan in hindi pdf sandhya vandan image sandhya vandan kaise kare sandhya vandana ram leela sandhya vandan marathi sandhya vandan mantra lyrics sandhya vandan mahasabha संध्या वंदन mantra sandhya vandan prathna संध्या वंदन pdf ramlila sandhya vandan sandhya vandan song sandhya vandana sunaiye sandhya vandan ka samay sandhya timings today sandhya vandan video sandhya vandana youtube


विष्णुरूपा गायत्रीका ध्यान-


* सायं 'अग्निश्च मे' त्युक्त्वा प्रात: सूर्येत्यप: पिबेत्॥

आपः पुनन्तु मध्याह्ने ततश्चाचमनं चरेत्॥

(भरद्वाज, ब्रह्मोक्त याज्ञवल्क्यसंहिता) 

(शब्दान्तरके साथ लघ्वाश्वलायनस्मृ० ३६-३७)


ॐ मध्याह्ने विष्णुरूपां च तार्क्ष्यस्थां पीतवाससाम्। 

क युवतीं च यजुर्वेदां सूर्यमण्डलसंस्थिताम्॥

सूर्यमण्डलमें स्थित युवावस्थावाली, पीला वस्त्र, शंख, चक्र, गदा तथा पद्म धारण कर गरुडपर बैठी हुई यजुर्वेदस्वरूपा गायत्रीका ध्यान करे।


सायं-संध्या

(प्रात:-संध्याके अनुसार करे) 

उत्तराभिमुख हो सूर्य रहते करना उत्तम है। प्राणायामके बाद 'ॐ सूर्यश्च मेति०' के विनियोग तथा आचमन-मन्त्रके स्थानपर नीचे लिखा विनियोग तथा मन्त्र पढ़कर आचमन करे।

विनियोग-ॐ अग्निश्च मेति रुद्र ऋषिः प्रकृतिश्छन्दोऽग्निर्देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः।

आचमन-ॐ अग्निश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम्। यदना पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना अहस्तदवलुम्पतु। यत्किञ्च दुरितं माय इदमहमापोऽमृतयोनौ सत्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा।

(तै० आ० प्र० १०, अ० २४) 

अर्घ्य- पश्चिमाभिमुख होकर बैठे हुए तीन अर्घ्य दे।

उपस्थान-चित्रके अनुसार दोनों हाथ बंदकर कमलके सदृश करे।


सायंकालीन सूर्योपस्थापन

sandhya vandana sandhya vandanam sandhya vandanam pdf sandhya vandan kaise karen sandhya vandan kya hai sandhya vandan mantra sandhya vandanam telugu sandhya vandan vidhi sandhya vandan pdf sandhya vandan in hindi sandhya vandan time sandhya vandan meaning sandhya vandana aarti sandhya vandan bhajan sandhya vandana bhakti sangeet sandhya vandan in english sandhya in english purv sandhya in english sandhya vandan geet sandhya vandan gana sandhya vandan hindi sandhya vandan hindi pdf sandhya vandan vidhi in hindi sandhya vandan mantra in hindi sandhya vandan kaise karte hain sandhya vandan meaning in hindi sandhya vandan kaise kiya jata hai sandhya vandan in kannada sandhya vandan in hindi pdf sandhya vandan image sandhya vandan kaise kare sandhya vandana ram leela sandhya vandan marathi sandhya vandan mantra lyrics sandhya vandan mahasabha संध्या वंदन mantra sandhya vandan prathna संध्या वंदन pdf ramlila sandhya vandan sandhya vandan song sandhya vandana sunaiye sandhya vandan ka samay sandhya timings today sandhya vandan video sandhya vandana youtube


शिवरूपा गायत्रीका ध्यान

ॐ सायाह्ने शिवरूपां च वृद्धां वृषभवाहिनीम्।

सूर्यमण्डलमध्यस्थां सामवेदसमायुताम्॥ 

सूर्यमण्डलमें स्थित वृद्धारूपा त्रिशूल, डमरू, पाश तथा पात्र लिये वृषभपर बैठी हुई सामवेदस्वरूपा गायत्रीका ध्यान करे।

Sandhya Vandana lyrics

1/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

एक टिप्पणी भेजें

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close