पृथिवी दह्यते /prathivi dahyate shloka vairagya
पृथिवी दह्यते यत्र मेरुश्चापि विशीर्यते।
शुष्यत्यम्भोनिधिजलं शरीरे तत्र का कथा॥१०॥
जिस विधाता की सृष्टि में पृथ्वी जलकर खाक हो जाती है, सुमेरु पर्वत भी टुकड़े-टुकड़े हो जाता है, समुद्र भी सूख जाता है वहाँ शरीर की बात ही क्या है?
Bahut khubsurat
जवाब देंहटाएंRadhe radhe
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |