पृथिवी दह्यते /prathivi dahyate shloka vairagya

 पृथिवी दह्यते /prathivi dahyate shloka vairagya

पृथिवी दह्यते /prathivi dahyate shloka vairagya


पृथिवी दह्यते यत्र मेरुश्चापि विशीर्यते।

शुष्यत्यम्भोनिधिजलं शरीरे तत्र का कथा॥१०॥

जिस विधाता की सृष्टि में पृथ्वी जलकर खाक हो जाती है, सुमेरु पर्वत भी टुकड़े-टुकड़े हो जाता है, समुद्र भी सूख जाता है वहाँ शरीर की बात ही क्या है?

वैराग्य शतक के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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 पृथिवी दह्यते /prathivi dahyate shloka vairagya

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