श्री भक्तमाल
अपने पुत्र को विश देने वाली भक्ति मति नारियां
एक राजा बड़ा भक्त था, उसके यहां बहुत से साधु-संत आते रहते थे | राजा उनकी प्रेम से सेवा करता था एक बार एक महान संत अपने साथियों सहित पधारे, राजा का सत्संग के कारण उनसे बड़ा प्रेम हो गया, वह संत राजा के यहां से नित्य ही चलने के लिए तैयार होते परंतु राजा एक ना एक बात ( उत्सव आदि ).कहकर प्रार्थना कर के उन्हें रोकता और कहता की प्रभु आज रुक जाइए कल चले जाइएगा , इस प्रकार--
उनको एक वर्ष और कुछ माह बीत गए |
एक दिन उन संतों ने निश्चय कर लिया कि हम कल अवश्य ही चले जाएंगे , राजा के रोकने पर किसी भी प्रकार से नहीं रुकेंगे यह जानकर राजा की आशा टूट गई वह इस प्रकार व्याकुल हुआ कि उनका शरीर छूटने लगा, रानी ने राजा से पूछ कर सब जान लिया कि राजा संत वियोग से जीवित ना रहेगा , तब उसने संतो को रोकने के लिए पुत्र को विष दे दिया , क्योंकि संत स्वतंत्र हैं इन्हें कैसे रोक कर रखा जाए , इसका और कोई उपाय नहीं है | प्रातः काल होने से पहले ही रानी रो उठी, अन्य दासियां भी रोने लगी , राजपुत्र के मरने की बात फैल गई ,
राज्य भर में कोलाहल मच गया |
संत ने शीघ्र ही राजभवन में प्रवेश किया और बालक को देखा शरीर विष के प्रभाव से नीला पड़ गया था, जो इस बात का साक्षी था कि बालक को विष दिया गया है | महात्मा जी ने रानी से पूछा कि सत्य कहो तुमने यह क्या किया ? रानी ने कहा आप निश्चय ही चले जाना चाहते थे और हमारे नेत्रों को आपके दर्शनों की अभिलाषा है , आप को रोकने के लिए उपाय किया गया है !
राजा और रानी की ऐसी अद्भुत भक्ति को देखकर महात्मा जोर से रोने लगे,
उनका कंठ गदगद हो गया उन्हें भक्ति की इस विलक्षण रीति से भारी सुख हुआ | इसके बाद महात्माजी ने भगवान के गुणों का वर्णन किया और उस बालक को जीवित कर दिया | उन्हें वह स्थान अत्यंत प्रिय लगा , अपने साथियों को जो जाना चाहते थे उन्हें विदा कर दिया और जो प्रेम रस में मग्न संत थे उनके साथ ही रह गए | इस घटना के बाद महात्माजी ने कहा कि अब यदि हमें आप मार कर भगायेंगे----
तो हम तब भी यहां से ना जाएंगे |