कबीर दास जी और बादशाह सिकंदर लोदी
श्री कबीर दास जी की बढ़ती हुई महिमा को देख कर ब्राह्मणों के हृदय में ईर्ष्या पैदा हो गई , उस समय भारत का तत्कालीन बादशाह सिकंदर लोदी काशी आया हुआ था | भक्ति विमुख ब्राह्मणों ने कबीर दास जी की माता को भी अपने पक्ष में कर लिया और इकट्ठे होकर सिकंदर लोदी के दरबार में गए , सब उन्हें पुकार की थी इस कबीर दास ने सारे गांव को दुखी कर रखा है, मुसलमान होकर हिंदू बाबा जी बन गया है किसी धर्म को ना मानकर ढोंग फैलाता रहता है | बादशाह ने तुरंत आज्ञा दे दी कि उसे अभी पकड़ कर मेरे पास ले आओ मैं उसे देख लूंगा कि वह कैसा मक्कार है | बादशाह की आज्ञा पाकर सिपाही लोग से कबीर दास जी को ले आए और बादशाह के सामने खड़ा कर दिया | तब किसी काजी ने कबीर दास जी से कहा यह बादशाह सलामत हैं, इन्हें सलाम करो ?उन्होंने उत्तर दिया कि हम श्री राम के अतिरिक्त दूसरे किसी को सलाम करना जानते ही नहीं |
श्री कबीर दास जी की बातें सुनकर बादशाह ने इन्हें लोहे की जंजीरों से बंधवाकर गंगा जी की धारा में डुबो दिया, परंतु यह जीवित ही रहे लोहे की जंजीर ना जाने कहां गई यह गंगा जी की धार से निकलकर तटपर खड़े हो गए | पश्चात बादशाह की आज्ञा से बहुत सी लकड़ियों में इन्हें दबा कर आग लगा दी गई उस समय नया आश्चर्य हुआ सभी लकड़िया जलकर भस्म हो गई और उनका शरीर इस प्रकार चमकने लगा जिसे देखकर तपे हुए सोने की चमक भी लज्जित हो जाए | जब यह उपाय भी व्यर्थ हो गया तो एक मतवाला हाथी लाकर उसे उनके ऊपर झपटाया गया परंतु लाख प्रयत्न करने पर भी हाथी श्री कबीर दास जी के पास नहीं आया, बड़ी जोर से चिघांडकर वह दूर भाग जाता था |इसके समीप में हाथी के ना आने का कारण यह था किस्वयं श्री रामजी सिंह का रूप धारण कर कबीर दास जी के आगे बैठे थे |
बादशाह सिकंदर लोदी ने कबीर दास जी का ऐसा अद्भुत प्रभाव देखा तो वह सिंहासन से कूदकर इनके चरणों में गिर पड़ा और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा कि अब आप कृपा करके ईश्वर के कोप से मुझे बचा लीजिए |कबीर दास ने कहा अब कभी भी किसी साधु संत के ऊपर ऐसा गजब ना करना | बादशाह ने कहा प्रभु गांव देश तथा अनेक सुख-सुविधा के सभी सामान जो जो आप चाहे वह सब मैं आपको दूंगा ? तब आप ने उत्तर दिया हम तो केवल श्री राम जी को चाहते हैं और उन्हीं को अष्टप्रहर जपते हैं, दूसरे किसी धन से हमें कुछ भी प्रयोजन नहीं | इस प्रकार बादशाह से सम्मानित होकर आप अपने घर आए , कबीर दास जी की विजय से विरोधी ब्राह्मण लोग अत्यंत लज्जित हुए, साधुओं से शाप दिला कर इन्हें परास्त करने के विचार से उन्होंने अपने में से चार ब्राह्मणों को सुंदर बैरागी साधु के वेश बनाए,