पुलस्त्य ऋषि की कहानी.
Story of sage Pulastya
महर्षि पुलस्त्य भी पूर्वोक्त ऋषियोंकी भाँति ब्रह्माके मानसपुत्र हैं। ये भी अपनी तपस्या, ज्ञान और दैवी सम्पत्तिके द्वारा जगत्के कल्याणसम्पादनमें लगे रहते हैं। इनका प्रभाव इतना अधिक है कि जब एक बार अपनी दुष्टताके कारण रावणको कार्तवीर्य सहस्रार्जुनके यहाँ बन्दी होना पड़ा था तब इन्होंने उनसे कहा कि इस बेचारेको मुक्त कर दो और इनकी आज्ञा सुनते ही वह सहस्रार्जुन जिसके सामने बड़े-बड़े देवता और वीर पुरुष नतमस्तक हो जाते थे, इनकी आज्ञाका उल्लंघन नहीं कर सका। इनके तपोबलके सामने बरबस उसका सिर झुक गया। पुलस्त्यकी सन्ध्या, प्रतीची आदि कई स्त्रियाँ थीं और दत्तोलि आदि कई पुत्र थे। यही दत्तोलि स्वायम्भुव मन्वन्तरमें अगस्त्य नामसे प्रसिद्ध हुए।
पुलस्त्य ऋषि की कहानी.
Story of sage Pulastya
इन्हींकी एक पत्नी हविर्भूसे विश्रवा हुए थे, जिनके पुत्र कुबेर, रावण आदि हुए। ये योगविद्याके आचार्य माने जाते हैं। ऋषि पुलस्त्यने ही देवर्षि नारदको वामनपुराणकी कथा सुनायी है। जब पराशर क्रुद्ध होकर राक्षसोंके नाशके लिये एक महान् यज्ञ कर रहे थे, तब वसिष्ठके परामर्शसे पुलस्त्यका अनुरोध मानकर उन्होंने यज्ञ बन्द कर दिया, जिससे महर्षि पुलस्त्य उनपर अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी कृपा और आशीर्वादसे समस्त शास्त्रोंका पारदर्शी बना दिया। भगवान्के अवतार ऋषभदेवने बहुत दिनोंतक राज्यपालन करनेके पश्चात् अपने ज्येष्ठ पुत्र भरतको राज्य देकर जब वनगमन किया तब उन्होंने महर्षि पुलस्त्यके आश्रममें रहकर ही तपस्या की थी। ब्रह्माके सर्वतत्त्वज्ञ पुत्र ऋभुसे तत्त्वज्ञान प्राप्त करनेवाले निदाघ इन्हीं महर्षि पुलस्त्यके पुत्र थे। ये अब भी जगत्की रक्षा-दीक्षामें तत्पर हैं और संसारमें यत्किंचित् सुख-शान्तिका दर्शन हो रहा है, उसमें इनका बहुत बड़ा हाथ है। महाभारत और पुराणोंमें इनकी पर्याप्त चर्चा है।
पुलस्त्य ऋषि की कहानी.
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