संपूर्ण रामकथा हिंदी भाग-11
संपूर्ण रामकथा हिंदी,
ram katha in hindi written
भगवान राम से बड़ा लोकोपासक कोई नहीं हुआ, ऐसा निर्णय लिए- एक राजा की कुर्सी पर बैठ कर यदि हम न्याय करे तो अभी हमें अपनी जानकी को वन भेजना होगा |लक्ष्मण मेरी जानकी को ले जाओ छोड़ कर आओ रजनी मुख का समय है, भोर की बेला है लखन भैया ने जानकी जी को रथ पर बिठाया |
गोस्वामी जी ने भी इस प्रसंग को स्वीकार किया है गोस्वामी जी गीतावली रामायण में लिखते हैं-
( लिए स्यन्दन चढ़ाई )
जानकी जी को चढ़ाया सेवक धर्म पालन के लिए
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अतिशय प्रसन्न होकर रथ पर बैठी हैं और सूर्योदय के पहले ही गंगा पार कर लिया भैया लक्ष्मण ने , गंगा के तट तक रथ में आए और फिर नवका पर बैठे , फिर उस पार गए और जैसे कुछ कदम आगे बढ़े महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था |
लखन भैया का पांव कांपने लगा- हृदय कांपने लगा लखन भैया बोल नहीं पा रहे हैं, आंख से आंसू छलकने लगे, मां जानकी ने अपने लक्ष्मण की इस स्थिति को देखा तो मां जानकी ने कहा भैया रो रहे हो ? लखन भैया ने कहा नहीं मां !
मां जानकी ने कहा मैं जानती हूं तुम अपने राघव भैया से दूर नहीं रह पाते और यह भी सच है रामायण का हर पात्र राम जी से कभी ना कभी दूर हुआ, एकमात्र ऐसे पात्र हैं भैया लक्ष्मण जो अपने राघव भैया से कभी दूर नहीं हुए, भैया भरत दूर हो गए, हनुमान जी दूर हो गए, मां जानकी दूर हो गई हर कोई दूर हो गया |
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एक बार एक बांण लगा लंका के रणांगण में लखन भैया मूर्छित होकर गिर पड़े हनुमान जी उठाकर लाए राम जी की गोद में रख दिया, रामजी रोते रहे संजीवनी आई लखन भैया ने आंखें खोली अपने राघव भैया को रोते हुए भैया लक्ष्मण ने देखा |राम जी ने धीरे से पूछा भाई बहुत पीड़ा हो रही थी लखन भैया ने मुस्कुरा कर कहा नहीं राघव भैया बांण मेरे हृदय में लगा था लेकिन पीडा तो आपके हृदय को हो रही थी मैं तो आनंद के साथ आपकी गोद में पडा था |
( हृदय घाव मोरे पीरे रघुवीरे )
गोस्वामी जी कहते हैं- घाव मेरे ह्रदय में था लेकिन पीडा तो आपके हृदय में थी, तो जिसको पीड़ा होती है- जिसके हृदय में पीड़ा होती है उसके ही आंसू निकलते हैं और मैंने अपने जीवन में ऐसी यात्रा कभी नहीं कि राघव भैया |
एक संत गोद में उठा ले और भगवन्क की गोद तक पहुंचा दे ऐसी यात्रा मेरे जीवन में कभी नहीं हुई | एक बार बांण भी लगा तो राघव भैया की गोद में ही रहे राम जी से कभी दूर नहीं हुए |
मां जानकी ने कहा भैया मत रो दो-चार दिन की बात है हम वापस चलेंगे मैं ज्यादा दिन नहीं रहूंगी मैं समझ गई तुम रह नहीं पाओगे , लखन भैया का ह्रदय कांप रहा है कैसे कहूं , यह सूचना कैसे मां को दूं कि लोकापवाद के भय से प्रभु ने आप का त्याग किया है |
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कंठ अवरुद्ध हो गया कुछ स्कलिताक्षर बाहर आए- आशय स्पष्ट था लोकोपवाद के भय से श्री राघव भैया ने आपका परित्याग किया है |
मुझे आदेश दिया है कि आप को वन में छोड़ कर वापस आ जाऊं इतना ही कह पाए, मां जानकी की ओर देखने की हिम्मत नहीं हुई वापस आकर नौका में गिर पड़े और नौका दूसरी दिशा की ओर बढ़ चली |
श्री जानकी जी ने भगवान के कठोर आदेश को सुना तो हृदय कांप गया क्या मेरा त्याग हुआ है ? वह भी लोकोपवाद के भय से , इसका मतलब है मेरे पति ने मेरा त्याग कर दिया |
इस समाज ने मेरा बहिष्कार कर दिया, इसका मतलब मैं सामूहिक बहिष्कृता हूं, मैं पतिपरित्यक्ता हूं, एक स्त्री के जीवन में इससे बढ़कर और कोई पीडा हो ही नहीं सकती, किसी के पति के द्वारा उसका त्याग हो जाए और समाज के द्वारा उसका बहिष्कार हो जाए इतनी वेदना लेकर क्या कोई जीवित रह पाएगा |
देखिए वियोग तो रामजी से दो बार हुए- एक बार वह लंका में भी गई, राम जी से वियुक्त होकर अशोक वाटिका में रही, एक बार रावण ने बियोग कराया, एक बार स्वयं श्री राम जी ने भेजा |
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जब अशोक वाटिका में गई तो अशोक वियोग हुआ, शोक तो है-पीडा तो है लेकिन यह वियोग संयोग से भी श्रेष्ठ होता है |
क्योंकि इस वियोग में प्रियतम से मिलने की भी अतिशय उत्कंठा होती है और वह वियोग संयोगान्त होता है, उस बार जानकी जी वियोग में तो थी लेकिन मेरे पति मुझे मिलेंगे यह कल्पना कर कर के हृदय से प्रसन्न रहती थी, लेकिन जब प्रियतम ही त्याग कर दे कोई उम्मीद ही ना बचे वह वियोग बहुत पीडा देती है |
और यह वियोग संयोग है इसलिए इस बार प्रियतम स्वीकार करेंगे लेकिन अब तो प्रियतम ने ही अस्वीकार कर दिया है ,अब तो प्राणाराध्य ने ही मेरा त्याग किया है अब कहां जाएं-इस जीवन के त्याग के अलावा जीवन में कोई रास्ता नहीं था |
जानकी जी उल्टे पांव दौड़ पड़ी गंगा की ओर इस जीवन को रखने का कोई मतलब नहीं अब तो हमें आत्मोत्सर्ज कर देना चाहिए , प्राणोत्सर्ज कर देना चाहिए |
यह विचार करके गंगा की धारा में कूदने के लिए कदम बढ़ायीं लेकिन जैसे ही गंगा की धवल धारा में देखा, अपना प्रतिबिंब दिखाई दिया अपनी दोहरा अवस्था दिखाई दी- अपनी गर्भावस्था दिखाई दी और मां जानकी जी ने कदम पीछे खींच लिए |
क्यों ? हमारी आचार्य कहते हैं कि तीन वियोग हैं तीन कारणों से हुआ- प्रथम वियोग कृपा पक्ष के लिए, द्वितीय विश्लेष पारतन्त्र प्रकट करने के लिए और तृतीय विश्लेष अनन्यार्हत को प्रकट करने के लिए ,यह पारतंत्र प्रकटीकरण है |
मतलब यह है कि मैं अपनी इच्छा से मरने के लिए भी स्वतंत्र नहीं हूं, क्यों नहीं हूं जानकी जी कह रही है यदि आज मैं मर गई तो देखिए व्यक्ति स्वयं के प्राण लेने के लिए स्वतंत्र हो सकते हैं, लेकिन दूसरे के प्राण लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हो सकता |
आज मेरे साथ मेरे बालक भी नष्ट हो जाएंगे, आज यदि मैं मर गई तो मेरे साथ है मेरे राम का वंश भा नष्ट हो जाएगा क्योंकि राम एक पत्नीवृती हैं, राम दूसरा विवाह नहीं कर सकते, मैं जीवन धारण करूंगी उसी श्रीराम के लिए जिस राम ने लोकापवाद के कारण मेरा परित्याग कर दिया है मैं उसी राम के लिए जिऊंगी |
यह जानकी चरित्र है इसकी गहराई को आप समझेंगे राम चरित्र की आधारशिला ही जानकी चरित्र है , श्री जानकी जी ने कदम पीछे खींच ली और आंखों से आंसू बहाते हुए झरने के किनारे शिला पर बैठ गयी, उनके दुख को देख नदियों का जल स्तंभित हो गया,वृक्षों से पत्ते झड़ने लगे और ठूंठ खड़े हो गए |
पशु पक्षी आंसू बहाने लगे इतना ही नहीं , जब महर्षि बालमीकि के आश्रम पर रहने वाले संतो ने देखा तो सब भागे भागे बाल्मीकि के चरणों में आ गए |
आज महर्षि बाल्मीकि लेखनी लेकर रामायण की रचना करना चाहते हैं, राम जी का ध्यान करने के लिए आंख बंद किए तो राम जी नहीं दिखाई दिए रोती बिलखती, विलाप करती मां जानकी दिखाई दी |
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