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धार्मिक कहानियां- धर्मात्मा तोते की कथा / dharmik kahaniya hindi mein best 2020

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धार्मिक कहानियां- धर्मात्मा तोते की कथा / dharmik kahaniya hindi mein best 2020

 धार्मिक कहानियां- धर्मात्मा तोते की कथा / dharmik kahaniya hindi mein best 2020

 धार्मिक कहानियां

धार्मिक कहानियां- धर्मात्मा तोते की कथा / dharmik kahaniya hindi mein best 2020

धर्मात्मा तोते की कथा

एक शिकारी ने शिकार पर तीर चलाया। तीर पर सबसे खतरनाक जहर लगा हुआ था।

पर निशाना चूक गया। तीर हिरण की जगह एक फले-फूले पेड़ में जा लगा। पेड़ में जहर फैला, वह सूखने लगा।

उस पर रहने वाले सभी पक्षी एक-एक कर उसे छोड़ गए। 

पेड़ के कोटर में एक धर्मात्मा तोता बहुत बरसों से रहा करता था। तोता पेड़ छोड़ कर नहीं गया, बल्कि अब तो वह ज्यादातर समय पेड़ पर ही रहता।

दाना-पानी न मिलने से तोता भी सूख कर काँटा हुआ जा रहा था।

बात देवराज इन्द्र तक पहुँची। मरते वृक्ष के लिए अपने प्राण दे रहे तोते को देखने के लिए इन्द्र स्वयं वहाँ आए।

धर्मात्मा तोते ने उन्हें पहली नजर में ही पहचान लिया। 

इन्द्र ने कहा, देखो भाई इस पेड़ पर न पत्ते हैं, न फूल, न फल। अब इसके दोबारा हरे होने की कौन कहे, बचने की भी कोई उम्मीद नहीं है।

जंगल में कई ऐसे पेड़ हैं, जिनके बड़े-बड़े कोटर पत्तों से ढके हैं। पेड़ फल-फूल से भी लदे हैं।

वहाँ से सरोवर भी पास है। तुम इस पेड़ पर क्या कर रहे हो, वहाँ क्यों नहीं चले जाते ?

तोते ने जवाब दिया, देवराज, मैं इसी पर जन्मा, इसी पर बढ़ा, इसके मीठे फल खाए। इसने मुझे दुश्मनों से कई बार बचाया। 

इसके साथ मैंने सुख भोगे हैं। आज इस पर बुरा वक्त आया तो मैं अपने सुख के लिए इसे त्याग दूँ।


जिसके साथ सुख भोगे, दुख भी उसके साथ भोगूँगा, मुझे इसमें आनन्द है आप देवता होकर भी मुझे ऐसी बुरी सलाह क्यों दे रहे हैं ?' यह कह कर तोते ने तो जैसे इन्द्र की बोलती ही बन्द कर दी।

तोते की दो-टूक सुन कर इन्द्र प्रसन्न हुए, बोल.. मैं तुमसे प्रसन्न हूँ। कोई वर मांग लो।

तोता बोला, मेरे इस प्यारे पेड़ को पहले की तरह ही हरा-भरा कर दीजिए।

देवराज ने पेड़ को न सिर्फ अमृत से सींच दिया, बल्कि उस पर अमृत बरसाया भी।

पेड़ में नई कोपलें फूटीं। वह पहले की तरह हरा हो गया, उसमें खूब फल भी लग गए।

तोता उस पर बहुत दिनों तक रहा,मरने के बाद देवलोक को चला गया।

युधिष्ठिर को यह कथा सुना कर भीष्म बोले, अपने आश्रयदाता के दुख को जो अपना दुख समझता है, उसके कष्ट मिटाने स्वयं ईश्वर आते हैं।

बुरे वक्त में व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाता है। जो उस समय उसका साथ देता है, उसके लिए वह अपने प्राणों की बाजी लगा देता है।

किसी के सुख के साथी बनो न बनो, दुख के साथी जरूर बनो। यही धर्मनीति है और कूटनीति भी..

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