Bhagwan Se Kya Mangna Chahie
भगवान से क्या मांगना चाहिए?
यह कलियुग है। यहां सारे काम उल्टे होते हैं। सभी लोग 'गुरु' बनना चाहते हैं। सबको गुरु बना दिया और वह अर्थ कहां चला गया कि 'गु' नाम अंधकार, 'रु' नाम प्रकाश।
जो अंधेरे से उजाले में लाए, वह गुरु कहां गया?
मरने के पश्चात् क्या होगा, यह सारे धर्म कहलाते हैं। कहते हैं कि अच्छा कर्म करोगे तो मरने के पश्चात् तुम 'वहां' जाओगे। 'वहां' जाओगे तो तुम्हारे साथ तुम्हारा कर्म होगा। यही है स्वर्ग और यही है नरक और यही यह शरीर है।
वह आत्मा भी है जिससे हम हंस सकते हैं। अगर सुख और शांति चाहिए तो आज चाहिए, कल नहीं।' अतिथि का सत्कार कैसा होना चाहिए? यह तुम जानते हो।
पर तुम यह बात भूल चुके हो कि तुम भी एक अतिथि हो और तुमको इस अतिथि का सत्कार कैसे करना है-यह तुम भूल चुके हो। यह आत्मा 'जीव' भी एक अतिथि है। इसका भी आदर-सत्कार होना चाहिए। प्यास है तो इस अतिथि को पानी पिलाओ और कैसा जल? अमृत जल।
भगवान के पास लोग जाते हैं, प्रार्थना अथवा निवेदन करते हैं- हे भगवान, तू यह कर दे, मेरे लिए वह कर दे। अरे तू ईमानदरी से अपना काम कर, परन्तु भगवान से जो मांगने की वस्तु है, वह तो दुनिया मांगती नहीं।
Bhagwan Se Kya Mangna Chahie
मैं क्या मांगू ? सत्-चित्त-आनंद से मैं क्या मांगू ? क्या रोटी? वह तो अखिल विश्व को रोटी देने वाला है। आज अगर कोई भूखा रह जाता है तो उसके अपने कर्म हैं।
क्या मांगना चाहिए? सच्चिदानंद से क्या मांगेगे। तो सत्-चित्त-आनन्द से वह आनंद मांगो, जो आनंद सदैव बना रहे।
जो चीज जहां लगनी चाहिए जो ध्यान जहां लगना चाहिए, वह वहां लगा रहे। ध्यान तो अपने काम में लगाओ-पर जो भीतर की चेतना है, उसे वहां जाने दो जहां वह जाना चाहती है।
कहां जाना चाहती है? उस जगह जाना चाहती है जहां उसको दिव्य आनंद मिले। इसलिए भगवान से अगर कुछ मांगना ही है तो वह आनंद मांगों जिसके लिए हृदय प्यासा है।
जिस आनंद की तुम्हें तलाश है वह आनंद पहले से ही तुम्हारे भीतर है, बाहर भटकने की आवश्यकता नहीं। 'अंत: भगवान से भौतिक सुख नहीं परम सुख मांगो।