pyar kya hai / प्यार क्या है( प्रेम की अद्भुत परिभाषा )
Definition of love प्रेम की अद्भुत परिभाषा
प्रेम आजकल बाजार में शैतान प्रेम के नाम से अनिष्टकर पदार्थ बेच रहा है | युवकगण इसे ना समझकर उसे खरीद रहे हैं | प्रेम के नाम पर काम और मोह बिक रहे हैं |असली प्रेम जगत का सार है , अमूल्य पदार्थ है , स्वर्ग से प्रेरित होता है पृथ्वी को स्वर्ग में परिणित करने के लिए | स्वयं प्रेम स्वरूप भगवान प्रेम को प्रेरित करते हैं | जहां भगवद- बुद्धि नहीं है, वहां प्रेम खड़ा नहीं हो सकता | प्रेम की भिक्ति है भगवान |
युवकों॓ ! खोज करके देखो तुम्हारे प्रेम के मूल में भगवान हैं या नहीं ? जिससे प्रेम करते हो, उसके साथ भगवत चर्चा करने की इच्छा होती है या नहीं | पवित्रता संचय के लिए परस्पर सहायता करते हो या नहीं ?
जहां अब पवित्रतामय नहीं, वहां प्रेम नहीं |
pyar kya hai / प्यार क्या है
प्रेम स्वरूप की सत्ता पवित्रता मय है | पृथ्वी का कोई कलंक जिस प्रेम में लगा है, वह प्रेम कभी प्रेम के नाम के उपयुक्त नहीं है | तुम जिससे प्रेम करते हो, एक बार उसकी ओर ताक कर देखो, उसका मुख देखने पर भगवान याद आते हैं या नहीं ?
प्रेम के संबंध में सर्वदा आत्मपरीक्षा करो |तुम्हारा प्रेम पात्र तुम्हारे आत्मसंयम को नष्ट करता है या नहीं ? कर्तव्य कार्य करने की इच्छा को कम करता है या नहीं ? उसके मिलन या बिरह में प्राण विशेष रूप से चंचल होते हैं या नहीं ? उसको लेकर चंचल आमोद उनकी इच्छा होती है या नहीं ?
तुमसे जो प्रेम करता है वह दूसरे किसी को प्रेम करे तो मन में ईर्ष्या का उदय होता है या नहीं ? यदि देखो की आत्म संयम नष्ट होता है , कर्तव्य कार्य में बाधा पड़ती है , चंचल आमोद करने की इच्छा होती है, ईर्ष्या का उदय होता है , तो जान लो कि तुम्हारा यह कलंकित प्रेम यथार्थ प्रेम नहीं है |
प्रेम की अद्भुत परिभाषा
pyar kya hai / प्यार क्या है
साधारण सुख स्वच्छंदता के किसी नगण्य से पदार्थ का भोग प्राप्त होने पर भी पहले प्रेमास्पद को भोग मिलना चाहिए ,अन्यथा प्रेमी उसका भोग नहीं कर सकता | और विषम संकट उपस्थित होने पर जब मरुभूमि में प्यास के मारे प्राण जाने को प्रस्तुत हो जाते हैं, एक से अधिक दो आदमी तक के पीने योग्य पानी का पता नहीं मिलता ,वहां भी प्रेमास्पद के जीवन की रक्षा पहले की जाती हैव|
प्रेम की अद्भुत परिभाषा
pyar kya hai / प्यार क्या है
प्रेम की अद्भुत परिभाषा
'देते-लेते बदला पाते,मिट जाती है प्रेम-पिपासा |
---- यह विनिमय का भाव वणिक-वृत्ति है | यथार्थ प्रेमी कभी वणिक नहीं हो सकते |
वे प्रेम करके ही सुखी होते हैं , प्रेमास्पद का प्रेम पाने के लिए व्याकुल नहीं होते | वे प्रेम करेंगे इस हेतु मैं प्रेम नहीं करता |
---यही प्रेमी का धर्म है |
प्रेम संसार की सबसे बड़ी शक्ति है, इसी से इस जगत का निर्माण होता है और समस्त जगत का संचालन होता है |
प्रेम का ही स्वरुप भगवान हैं, कहते हैं ना--
प्रेम इंसान को इंसान बना देता है |
प्रेम पत्थर को भी भगवान बना देता है ||
एक प्रेम ही है जो मनुष्य को सही मायने में इंसान बनाता है | लेकिन आज का जो दौर चल रहा है बड़ा भयानक चल रहा है, बहुत कम ही लोग होते हैं जो सच्चा प्रेम का मतलब जानते हैं और सच्चा प्रेम करते हैं | आजकल इंसान प्रेम को कामवासना के रूप में समझते हैं और इस उस अद्वैत प्रेम के स्वरूप को बदनाम करते हैं |
pyar kya hai / प्यार क्या है
लोग अपने सामने वाले से प्रेम का झूठा दिखावा करके उसे झूठे प्रेम में फंसाते हैं और काम में संतप्त हो जाते हैं |
असल में ऐसे लोग प्रेम को कलंकित करने वाले लोग होते हैं प्रेम का स्वरूप तो परम शाश्वत है और वेद शास्त्रों में भी जिसका नेति-नेति गान किया गया है,,
प्रेम तो वासना नहीं साधना है ,
उस परम सत्य की आराधना है |
हम सब आज ही ले संकल्प ,
जन-जन में प्रेम तत्व को जगाना है ||
प्रेम की अद्भुत परिभाषा