भरोसो जाहि दूसरो सो करो। bharoso jahi dusro so karo
भरोसो जाहि दूसरो सो करो।
मोकों राम को नाम कल्पतरु कलि कल्यान करा।।
करम उपासन ज्ञान वेद मत सो सब भाँति खरो।
मोहिं तो सावन के अन्धहि ज्यों सूझत हरो हरो।।
चाटत रहेऊँ स्वान पातरि ज्यों कबहुँ न पेट भरो।
सोहौं सुमिरत नाम सुधारस पेखत परुसि धरो।।
स्वारथ औ परमारथहू को, नहीं कुञ्जरो नरो।
सुनियत सेतु पयोधि पषानन्हिं करि कपि कटक तरो।।
प्राति प्रतीति जहाँ जाकी तहँ ताको काज सरो।
मेरे तो माय-बाँप दोऊ आखर हौं सिसु-अरनि अरो।।
संकर साखि जो राखि कहऊँ कछ तौ जरि जीह गरा।
अपनो भलो राम नाम ही ते 'तुलसिहिं' समुझि परा।।