सुनो चितचोर छैल गिरधारी। ब्रज के भजन पद
सुनो चितचोर छैल गिरधारी।
तबसों जिये चैन नहीं आवै सूरति देखि तिहारी।।
मदन गोपाल माधुरी मूरति मोह लई ब्रज सारी।
और न मानें अनत न जाऊं एकहि आस तिहाri
भलें होय जग चर्चा मेरी लिखी टरत नहीं टारी।
'ललितल.ती' को अपनावह या छबि पै बलिहारा।।
braj ke pad