धनि भाग्य सखी वन खग मृग के dhani bhagya sakhi van khag mrig ke
धनि भाग्य सखी वन खग मृग के
_मुख निरखि श्याम सुख पावत हैं।
_मुख निरखि श्याम सुख पावत हैं।
लोचन तिन सफल विहार समय,
लखि रूप लाल उर लावत हैं।।
लखि रूप लाल उर लावत हैं।।
सुर वधुअन ते उन भाग्य अधिक,
वंशी धुनि सुनि गुण गावत हैं।
वंशी धुनि सुनि गुण गावत हैं।
अहो भाग्य विशाल उन गैयन के,
जिन आन गोपाल चरावत हैं।।
जिन आन गोपाल चरावत हैं।।
धनि भांति भांति के वन पक्षी,
बोलत पिया सुख उपजावत हैं।
बोलत पिया सुख उपजावत हैं।
धनि केशर छुटो अंग श्याम,
जो अपने शीश चढ़ावत हैं।।
जो अपने शीश चढ़ावत हैं।।
धनि धनि भाग्य गोवर्धन के,
जहां प्रीतम चरण छुआवत हैं।
जहां प्रीतम चरण छुआवत हैं।
कालिन्दी धनि जामें ब्रजपति,
नित्य जल-विहार हित धावत हैं।।
नित्य जल-विहार हित धावत हैं।।
धनि तरु श्याम जिन छैयाँ तरे,
अपनी तन तपत नसावत हैं।
अपनी तन तपत नसावत हैं।
हमहुँ धनि 'ललितलडैती' मोहन,
निज छबि हमें दिखावत हैं।।
निज छबि हमें दिखावत हैं।।
braj ke pad