हौं न भई ब्रज प्रगट अली-री haun na bhayi braj pragat ali ri
हौं न भई ब्रज प्रगट अली-री
छकी प्रेमरस युगल माधुरी निरखत दम्पति कली-कली री।।
गौरश्याम ध्वनि पड़ती श्रवणन निश्दिन विचरत कुञ्जगली री।
'ललितलडैती' तो मिलतो सुख जो होते मम भाग्य बलीरी।।
braj ke pad