F इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले itna to karna swami - bhagwat kathanak
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले itna to karna swami

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इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले itna to karna swami

 इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले itna to karna swami

  इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले itna to karna swami 

इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले itna to karna swami

 इतना तो करना स्वामी ! जब प्राण तन से निकले। 
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से निकले।। १ 
श्री गंगा जी का तट हो, यमुना का वंशीवट हो। 
मेरा साँवरा निकट हो, जब प्राण तन से निकले।। २ 
श्रीवन्दावन का थल हो, मेरे मुख में तुलसी-दल हो। 
विष्ण-चरण का जल हो, जब प्राण तन से निकले।। ३
सन्मुख साँवरा खड़ा हो, मुरली का स्वर भरा हो। 
तिरछा चरण धरा हो, जब प्राण तन से निकले।। ४ 
सिर सोहना मुकुट हो, मुखड़े पै काली लट हो। 
यही ध्यान मेरे घट हो, जब प्राण तन से निकले।। ५ 
केसर तिलक हो आला, मुख चन्द्र सा उजाला। 
डालॅ गले में माला, जब प्राण तन से निकल।। ६ 
कानों जड़ाऊ बाली, लटकी लटें हों काली। 
देखू छटा निराली, जब प्राण तन से निकले।। ७ 
पीताम्बरी कसी हो, होठों पे कुछ हँसी हो। 
छबि मन में ये बसी हो, जब प्राण तन से निकले।। ८ 
पचरंगी काछनी ले, पट पीत से तनी हो। 
मेरी बात सब बनी हो, जब प्राण तन से निकले।। ६

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Bhagwat Kathanak            Katha Hindi
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