F किं सुप्तोऽसि किमाकुलोऽसि जगतः shiva slokas in sanskrit lyrics - bhagwat kathanak
किं सुप्तोऽसि किमाकुलोऽसि जगतः shiva slokas in sanskrit lyrics

bhagwat katha sikhe

किं सुप्तोऽसि किमाकुलोऽसि जगतः shiva slokas in sanskrit lyrics

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किं सुप्तोऽसि किमाकुलोऽसि जगतः shiva slokas in sanskrit lyrics

किं सुप्तोऽसि किमाकुलोऽसि जगतः सृष्टस्य रक्षाविधौ 
किं वा निष्करुणोऽसि नूनमथवा क्षीबः स्वतन्त्रोऽसि किम्। 
किं वा मादृशनिःशरण्यकृपणाभाग्यैर्जडोऽवागसि 
स्वामिन्यन्न शृणोषि मे विलपितं यन्नोत्तरं यच्छसि॥५॥ 
आपको क्या हो गया? क्या आप सो गये? क्या आप अपने बनाये हुए जगत्की रक्षाके काममें व्यस्त हैं? क्या बिलकुल ही निष्करुण बन बैठे-दयाको बिलकुल ही तिलाञ्जलि दे दी? क्या (न्याय-अन्यायकी) कुछ भी परवा न करके उन्मत्त अथवा स्वतन्त्र बन गये? या मेरे सदृश निःशरण जनके अभाग्यसे आपकी वाणी स्तम्भित हो गयी?--आप जडवत् हो गये? हे स्वामिन्! मेरा विलाप फिर आप क्यों नहीं सुनते और क्यों मेरी बातोंका उत्तर नहीं देते? ॥ ५ ॥ 

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