चतुःश्लोकी भागवत chatushloki bhagwat

 चतुःश्लोकी भागवत chatushloki bhagwat

चतुःश्लोकी भागवत

अहमेवासमेवाग्रे नान्यद्यत्सदसत्परम् ।

पश्चादहं यदेतच्च योऽवशिष्येत सोऽस्म्यहम् ।।3।।

ऋतेऽर्थं यत्प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि ।

तद्विद्यादात्मनो मायां यथाऽऽभासो यथा तम: ।।4।।

यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु ।

प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम् ।।5।।

एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनात्मन: ।

अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत्स्यात्सर्वत्र सर्वदा ।।6।।

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