मेरी लगी श्याम संग प्रीति meri lagi shyam sang preet
मेरी लगी श्याम संग प्रीति
मेरी लगी श्याम सँग प्रीति, दुनियाँ क्या जाने ।
मुझे मिल गया मन का मीत, दुनियाँ क्या जाने ।
मेरी लगी...... !
छवि लखि मैंने श्याम की जब से, भई बाबरी मैं तो तब से,
बाँधी प्रेम की डोर मोहन से, नाता तोड़ा मैंने जग से ।
यह कैसी पागल प्रीति, दुनियाँ क्या जाने ।। मेरी लगी...... ।।१॥
मोहन की सुन्दर सूरतिया, मन में बस गई प्यारी मूरतिया,
लोग कहैं मैं तो भई बावरिया, जब से ओढ़ी मैंने श्याम चुनरिया ।
मैंने छोड़ी जग की रीति, दुनियाँ क्या जाने ।॥ मेरी लगी...... ॥२॥
हरदम मैं तो रहूँ मस्तानी, लोक लाज दीन्ही बिसरानी,
रूप रास अंग-अंग समानी, तैरत हैरत रहूँ बिसरानी ।
मैं तो गाऊँ खुशी के गीत, दुनियाँ क्या जाने । मेरी लगी...... ||३||
मुरलीधर ने मुरली बजाई, सबने अपनी सुध बिसराई,
गोप गोपियाँ भागी आईं, कुल मर्यादा काम न आई ।
प्रिय बाज उठा संगीत, दुनियाँ क्या जाने ।। मेरी लगी....... ||४||
भूल गई कहीं आना जाना, जग सारा लागे बेगाना,
अब तो केवल गोविन्द पाना, रूठ जाऐं तो उन्हें मनाना ।
फिर होगी प्यार की जीत, दुनियाँ क्या जाने ।।
मेरी लगी....... ॥५॥