F गंगा ध्यान मंत्र ganga dhyan shlok snan path - bhagwat kathanak
गंगा ध्यान मंत्र ganga dhyan shlok snan path

bhagwat katha sikhe

गंगा ध्यान मंत्र ganga dhyan shlok snan path

गंगा ध्यान मंत्र ganga dhyan shlok snan path

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गङ्गा

विष्णुपादाब्जसम्भूते, गङ्गे त्रिपथगामिनि ।

धर्मद्रवेति विख्याते,पापं मे हर जाह्नवि ॥ 19

अर्थात्-भगवान् विष्णु के चरण कमल से निःसृत, त्रिपथगामी (आकाश, भू, पाताल में गमन करने वाली), धर्मद्रव (सजल धर्म) के नाम से विख्यात हे जाह्नवि! (राजा जह्रु के कान से निष्पन्न गङ्गे!) मेरे पापों का हरण करो ।

तीर्थपुष्करादीनि तीर्थानि,गङ्गाद्याः सरितस्तथा ।

आगच्छन्तु पवित्राणि, पूजाकाले सदा मम || 20 |

अर्थात्- पुष्कर आदि तीर्थ तथा गङ्गा आदि नदियाँ पूजा के समय, मुझे पवित्र करने के लिए सदैव यहाँ उपिस्थत रहें ।

 गंगा ध्यान मंत्र ganga dhyan shlok snan path

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