F वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं vande deva umapathim - bhagwat kathanak
वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं vande deva umapathim

bhagwat katha sikhe

वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं vande deva umapathim

वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं vande deva umapathim

 वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं vande deva umapathim

शिव

वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम्,

वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनाम्पतिम् ।

वन्दे सूर्यशशाङ्कवह्निनयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम्,

वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ 13

अर्थात् - उमापति, देवताओं के गुरु, देव (शिव) की वन्दना करता हूँ, जगत् के कारणभूत (भगवान् शङ्कर) की वन्दना करता हूँ, सर्पों के आभूषण वाले, मृग (चर्म ) धारण करने वाले (शङ्कर) की वन्दना करता हूँ। पशुओं (जीवात्मा) के स्वामी (महेश) की वन्दना करता हूँ । सूर्य, चन्द्र एवं अग्नि रूप नेत्र वाले (त्रिनेत्र ) की वन्दना करता हूँ, मुकुन्द (विष्णु के) प्रिय (महेश्वर) की वन्दना करता हूँ। भक्तजनों को आश्रय देने वाले (आशुतोष) की वन्दना करता हूँ तथा कल्याणकारी शुभदाता (अवघढ़ दानी) की वन्दना करता हूँ।]

 वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं vande deva umapathim

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