bhagwat katha notes hindi भागवत कथा नोट्स
* मंगलाचरण के श्लोक*
अस्मद गुरुभ्यो नमः , अस्मत परम गुरुभ्यो नमः, अस्मत सर्व
गुरुभ्यो नमः , श्री राधा कृष्णाभ्याम् नमः,
श्रीमते रामानुजाय नमः
लम्बोदरं परम सुन्दर एकदन्तं,
पीताम्बरं त्रिनयनं परमंपवित्रम् ।
उद्यद्धिवाकर निभोज्ज्वल कान्ति कान्तं,
विध्नेश्वरं सकल विघ्नहरं नमामि।।१।।
शरीरं स्वरूपं ततो कलत्रं
यशश्चारु चित्रं धनं मेरु तुल्यं।
मनश्चै न लग्नं श्री गुरु रङ्घ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्।।२।।
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्
।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्
।।३।।
जयतु जयतु देवो देवकीनन्दनोऽयं
जयतु जयतु कृष्णो वृष्णिवंशप्रदीपः ।
जयतु जयतु मेघश्यामलः कोमलाङ्गः
जयतु जयतु पृथ्वीभारनाशो मुकुन्दः॥४।।
कृष्ण त्वदीयपदपङ्कजपञ्जरान्तं
अद्यैव मे विशतु मानसराजहंसः ।
प्राणप्रयाणसमये कफवातपित्तैः
कण्ठावरोधनविधौ स्मरणं कुतस्ते ॥५।।
बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं
बिभ्रद् वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम्
।
रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन गोपवृन्दैः
वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्तिः
।।६।।
करारविन्देन पदारविन्दं, मुखारविन्दे
विनिवेशयन्तम्।
वटय पत्रस्य पुटेशयानं, बालं मुकुन्दं
मनसा स्मरामि।।७।।
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे
रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नम:।। ८।।
अंजना नंदनं वीरं जानकी शोक नाशनं!
कपीश मक्ष हंतारं – वंदे लंका भयंकरं!!९।।
मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिं
।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम् ॥१०।।
भागवत
कथानक भूमिका
श्रीमद् भागवत महापुराण
की जय
भूमिका
भागवत महापुराण भूमिका =अनंतकोटी
ब्रम्हांड नायक अचिंत्य कल्याण गुणगण निधान सर्वेश्वर सर्वाधि पति अकारण करुणा वरुणालय
अकारण करुणा कारक सकल जन कल्यशाप हारक परात्परपरब्रह्म अनंत कोटी कंदर्प दर्प दलन पटियान
निर्गुण निराकार सगुण साकार जगदैक बन्धु करुणैक सिन्धु सच्चिदानंद घन परमात्मा
श्री कृष्ण एवं श्री राधा रानी जी के युगल चरण अरविंदो में दास का
बारंबार प्रणाम समुपस्थित भगवत भक्त भागवत कथा अनुरागी सज्जनों
भक्तिमई मातृशक्ति भगनी बांधवो
सियाराम मय सब जग
जानी | करहुं प्रणाम जोर जुग पानी ||
भगवतः इदं स्वरूपम्
भागवतम् | जो भगवान का स्वरूप है उसे भागवत कहते हैं |
तेनतेनेयम् वाड़मयी
मूर्तिः प्रत्यक्षः कृष्ण एवहि| यह श्रीमद् भागवत भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्यक्ष
शब्द मई मूर्ति है | भगवत: प्रोक्तं भागवतम्| भगवान ने जिसका उपदेश
किया है उसे भागवत कहते हैं | भागवतः चरितम् यस्मिन् तद् भागवतम्| जिसमें
भगवान के परम पवित्र चरित्र का वर्णन किया है उसे भागवत कहते हैं | भगवत्याः
श्री राधायाः गुप्त चरितम् यस्मिन तद् भागवतम्|
जिसमें श्री राधा
रानी के गुप्त चरित्र का वर्णन किया गया है उसे भागवत कहते हैं |
भगवतोःश्री राधा कृष्णयोःइदम्
स्वरूपम् भागवतम्| जिसमें श्री राधा कृष्ण के पावन चरित्र का वर्णन किया
गया है जो राधा कृष्ण के युगल स्वरूप है उसे भागवत कहते हैं , भक्ति ज्ञान
विरागाणाम् तत्त्वं यस्मिन तद् भागवतम्| जिसमें भक्ति ज्ञान
वैराग्य के तत्व का वर्णन किया गया है उसे भागवत कहते हैं |
अथवा भागवत में चार
अक्षर है भा, ग, व और त
भा= भाष्यते
सर्व वेदेषु , ग=गीयते नारदादिभिः
व=वदन्ति
त्रिषु लोकेषु , त=तरन्ति भवसागरः
जिससे समस्त देवता
प्रकाशित होते हैं जिस का गान नारदादि ऋषि तीनों लोकों में करते हैं और जो भवसागर से
तारने वाली है उसे भागवत कहते हैं |
भा कीर्तिवाचको शब्दः
गकारः ज्ञान वाचकः | वकार वैराग्य दश्चैव तकारसंश्रते तारकः |
भागवत में भ अक्षर
कीर्ति प्रदान करने वाला है गा अक्षर ज्ञान देने वाला है व अक्षर वैराग्य देने वाला
है और त संसार सागर से तारने वाला है |
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च
वशों मनवन्तराणि च | वंशाय चरितम् चैव पुराणं पंच लक्षणम् ||
यहां सूक्ष्म सृष्टि
स्थूल सृष्टि सूर्य चंद्र आदि के वंश का वर्णन मन्वंतर में होने वाले राजा तथा भगवान
के भक्तों के वंश का वर्णन किया गया है ऐसे 5 लक्षणों से युक्त ग्रंथ को पुराण कहते
हैं परंतु इस श्रीमद्भागवत में 10 लक्षण इसलिए यह महापुराण है श्रीमद्भागवत के प्रारंभ
में महात्म का वर्णन किया गया है |महात्म्य का अर्थ होता है महिमा
महात्म्य ज्ञान पूर्वकं
श्रद्धा भवति|
महिमा के ज्ञान के
पश्चात ही श्रद्धा उत्पन्न होती है |परम पूज्य गोस्वामी श्री तुलसीदास जी कहते हैं
जाने बिनु ना होत
परतीती | बिनु परतीति होत नहीं प्रीती ||
जब तक ज्ञान नहीं
होता तब तक प्रेम उत्पन्न नहीं होता इस महात्म्य में 6 अध्याय हैं जो पद्मपुराण से
लिया गया है जिसमें प्रारंभ के 3 अध्यायों में भक्ति ज्ञान वैराग्य का वर्णन किया गया
है 2 अध्यायों में पति धुंधकारी का उद्धार और अंतिम में 1 अध्याय में भागवत सुनने की
विधि बताई गई है |