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शिव पुराण कथा हिंदी में-2 shiv puran katha hindi mein

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शिव पुराण कथा हिंदी में-2 shiv puran katha hindi mein

शिव पुराण कथा हिंदी में-2 shiv puran katha hindi mein

 शिव पुराण कथा हिंदी में-2 shiv puran katha hindi mein

शिव पुराण कथा हिंदी में-2 shiv puran katha hindi mein

हे महर्षियों सर्व प्रकार के दान एवं यज्ञो के करने से जिस फल की प्राप्ति होती है ,वह फल इसके श्रोता को स्वयं ही प्राप्त हो जाते हैं।


एकोजरामरः स्याद्वै पिबन्नेवामृतं पुमान्।

शम्भोः कथामृतं कुर्यात् कुलमेवाजरामरम्।। मा-1-28


अमृत पान करने से तो केवल अमृत पान करने वाला ही अमर होता है, किंतु भगवान शिव का यह कथामृत संपूर्ण कुल को ही अजर अमर कर देता है ।

श्री शिवपुराण की सात सहिंता है, चौबीस हजार श्लोक हैं। यह सातों संहिता-1- विश्वेश्वर संहिता, 2-रूद्र संहिता, 3-शत रुद्री संहिता, 4-कोटी रुद्री संहिता, 5-उमा संहिता ,6-कैलाश संहिता, 7-वायु संहिता। यह सात संहिता वाला शिव महापुराण परम दिव्य है, सर्वोपरि ब्रह्म तुल्य है ,शुभ गति देने वाला है ,इन सातों संहिता वाले शिव पुराण को जो पढ़ लेता है अथवा सुन लेता है उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

शैवं पुराणमिद मात्मविदां वरिष्ठं
    सेव्यं सदा परमवस्तु सता समर्च्यम्।
तापत्रयाभिशमनं सुखदं सदैव
    प्राणप्रियं विधिहरीश मुखामराणाम्।। मा-1-50

यह शिवपुराण आत्म तत्वज्ञों के लिए सदा सेवनीय है, सत पुरुषों के लिए पूजनीय है, तीनों प्रकार के तापों का शमन करने वाला है, सुख प्रदान करने वाला है तथा ब्रह्मा विष्णु महेश आदि देवताओं को प्राणों के समान प्रिय है ।
सूत जी बोले कि-
सूत सूत महाभाग धन्यस्त्वं परमार्थ वित्। मा-2-1
हे सूत जी आप परम धन्य हैं वह अद्भुत कथा सुनाई है जो पापों का नाश करने वाली ,मन को पवित्र करने वाली और भगवान शिव को प्रसन्न करने वाली है।

अब आप कृपा करके यह बतलाइए कि इस कथा के सुनने से कलयुग में कौन-कौन से पापी पवित्र हो जाते हैं ? तब श्री सूत जी बोले-


ये मानवाः पापकृतो दुराचार रता खलाः।
कामादि निरतानित्यं तेपि शुध्यन्त्यनेन वै।। मा-2-5

जो दुराचारी ,पापी ,कामी एवं दुष्ट जन भी इस कथा के द्वारा शुद्ध हो जाते हैं । जो लालची, मिथ्या भाषी, पिता माता को दुख देने वाले, दंभी पाखंडी और हिंसक भी शुद्ध हो जाते हैं । जो पाप पारायण दुर्बुद्धि देव एवं ब्राह्मण साधु का द्रव्य खाने वाले पुरुष भी इसके द्वारा पवित्र हो जाते हैं ।

अब एक प्राचीन इतिहास सुनिए- जिसके सुनने से बड़े से बड़े पापों का नाश हो जाता है ।

( देवराज की कथा)
किरात नगर में एक दुर्बल, दुराचारि,दरिद्री ब्राह्मण रहता था वह देव आराधना एवं धर्म से विमुख था, वह सन्ध्या तो क्या स्नान भी नहीं करता था। उसका नाम देवराज था। उसने बहुत अधर्म द्वारा बहुत सा धन एकत्रित किया और धर्म में एक कोढ़ी नहीं लगाया। वह एक समय स्नान करने तालाब पर गया वहां पर शोभावती नाम की गणिका को देख कर व्याकुल हो गया , वह सुंदरी भी एक धनी ब्राह्मण को अपने ऊपर आसक्त देखकर प्रसन्न हो गई और एक दूसरे से बातचीत होने पर दोनों में प्रेम हो गया । वे दोनों अपने आप को आपस में स्त्री पुरुष समझ बिहार करने लगे ।

ब्राह्मण उस वैश्या के साथ ही बैठना खाना-पीना एवं शयन क्रीडा आदि करने लगा। उस ब्राह्मण को माता-पिता एवं पत्नी ने बार बार रोका परंतु उसने एक भी ना मानी। एक दिन उसने-
प्रसुप्तान् न्यवधीद् दुष्टो धनं तेषां तथा हरत्। मा-2-25
उस नीच ने ईर्ष्या वश रात्रि को सोए हुए माता-पिता पत्नी को मार डाला और उनका धन हर लिया और उस कामासत्त वेश्या को दे दिया।

वह पापी दैव योग से प्रतिष्ठानपुर ( झूंसी प्रयाग ) में आया वहां उसने एक शिवालय देखा जिसमें बहुत से साधु जन एकत्रित थे । वहां वह बीमार पड़ गया इस अवस्था में उसने ब्राह्मण के मुख से शिव पुराण की कथा श्रवण की ।

एक माह के अंदर देवराज मृत्यु को प्राप्त हो गया तब यमदूत उसे पकड़कर यमपुरी ले गए उसी समय शरीर पर भस्म लगाए, रुद्राक्ष धारण किए त्रिशूल उठाए रूद्र गण क्रोध में भरकर शिवलोक से चलकर के यमपुरी पहुंचे और यमदूतों को भगाकर और देवराज को छुड़ाकर अपने परम अद्भुत विमान पर चढ़ाकर वे गण जबकि कैलाश को ही जा रहे थे कि वहां पर महान कोलाहल हुआ ।

जिसे सुनकर धर्मराज भी वहां आ गए वहां उन्होंने साक्षात शिव जी के चार दूतों को देखा तब धर्मराज ने उनकी विधि पूर्वक पूजन किया ज्ञान चक्षु से धर्मराज सब कुछ जान गए।

देवराज को लेकर शिवगण कैलाश पर जा पहुंचे और पार्वती सहित दयासागर शिवजी को उसे अर्पित किया।

भगवान शिव की कथा देवराज जैसे पापी भी सुनने के बाद शिवलोक को प्राप्त कर लेते हैं तो फिर प्रेमी भक्त जनों का कहना ही क्या । इसलिए हम सब को चाहिए कि भगवान आशुतोष के चरणों में अपने मन को लगाए रखें उनकी कथाओं का श्रवण और चिंतन मनन करते रहें क्योंकि यह मनुज तन बड़े दुर्लभ से प्राप्त होता है । और यह एक अवसर है। इसीलिए संत जन कहते हैं-
क्षणभंगुर जीवन की कलिका,
कल प्रात को जाने खिली न खिली
मलयाचल की सूचि शीतल मंद,
सुगंध समीर मिली ना मिली।
कलि काल कुठार लिए फिरता,
तन नम्र पे चोट झिली न झिली
रट ले शिव नाम अरी रसना ,
फिर अंत समय में हिली न हिली।।

शिव कथा सुनकर देवराज शिवलोक का अधिकारी हो गया।
बोलिए साम्बशिवाय भगवान की जय

( चंचला और बिंदुग की कथा )
सौनक जी ने कहा- हे प्रभु आप बुद्धिमान हो, भाग्यशाली एवं सर्वज्ञ हो आपकी कृपा से मैं भी बार-बार कृतार्थ हूं क्योंकि इस इतिहास को सुनकर मेरा मन अत्यंत प्रसन्न हुआ है।


धन्या धन्या कथा शम्भोस्त्वं धन्यो धन्य एव च।
यदा कर्णनमात्रेण शिवलोकं व्रजेन्नरः।। मा-3-4
सदाशिव की जिस कथा के सुनने मात्र से मनुष्य शिवलोक प्राप्त कर लेता है वह कथा धन्य है, धन्य है और कथा का श्रवण कराने वाले आप भी धन्य हैं, धन्य हैं। सूतजी बोले-




शृणु शौनक वक्ष्यामि त्वदग्रे गुह्यमप्युत।
यतस्त्वं शिव भक्तानां अग्रणी्र्वेद वित्तमः।। मा-3-5
हे सौनक जी आप शिव भक्त और वेद ज्ञाता हैं इसलिए आपके सामने गोपनीय कथावस्तु का भी वर्णन करूंगा सुनिए-

समुद्र के निकट एक वास्कल नाम का ग्राम था वहां वैदिक धर्म को त्याग कर महा पापी जन निवास किया करते थे। वह बड़े दुष्ट थे जिनकी आत्मा दुर्विषयी थी, खल कपटी थे ज्ञान वैराग्य एवं सत्य धर्म तो जानते ही नहीं थे। उन सबकी स्त्रियां भी स्वेच्छा चारणी कुटिला पाप परायण थी ।

इस प्रकार दुर्जनों से पूर्ण उस वास्कल ग्राम में एक विन्दुग नाम का अधम ब्राह्मण भी रहता था। वह दुरात्मा और महा पापी था।

वह सुधर्मणी चंचुला नाम की अपनी पत्नी को त्यागकर वैश्या गामी हो गया। उसकी पत्नी चंचुला पहले तो धर्म में अडिग रही फिर वह भी अपने पति की तरह धर्म से भटक गयी।

 

एक बार बिम्दुग ने अपनी पत्नी को पर पुरुष के साथ देखा तो उसने उसको मारा पीटा तब चचुंला ने कहा तुम्हें अपना विचार नहीं है ।जो मुझ नव यौवना और पति सेवा परायण पत्नी को छोड़कर स्वेच्छा चारणी गणिकाओं के साथ रहते हो। 

 

तो यह मन की पीड़ा को मैं कैसे सहन करूं तब उस दुर्बुद्धि पापी ने पत्नी से कहा, अब मैं तुम्हारे मन की बात कहता हूं तुम निर्भय होकर पर पुरुष के साथ बिहार करो । परंतु उनसे धन भी लो जिससे तेरा और मेरा दोनों का कार्य सिद्ध होता रहेगा। 

 

पति की यह बात सुनकर चंचुला बहुत प्रसन्न हुई अब तो दोनों कुकर्म में पड़ गए बहुत समय तक ऐसे ही करते करते एक दिन कुमति दुष्ट बिंदुग मृत्यु को प्राप्त हो गया और घोर  पापों के कारण वह नरक में बहुत काल पर्यंत नरक को भोगा ।  

 

इसके बाद वह पापी विंध्याचल पर्वत पर भयंकर पिशाच हुआ । बिंदुग के मर जाने के बाद मूर्खा चंचुला पर पुरुषों के साथ घर में रह गई । एक बार वह दैव योग से पुण्य पर्व के आने पर नारी बंधुओं के साथ गोकर्ण क्षेत्र में आ गई । 

 

सब के साथ उसने भी तीर्थ में स्नान किया वह घूमते हुए किसी देवालय में पहुंचकर उसने दैवज्ञ के मुख से शिव पुराण की पवित्र कथा सुनी। वह कथा से उसको अपने पाप को याद कर भय से कांप उठी । 

 

जब कथा समाप्त हो गई और श्रोता गण भी चले गए तब वह डरती हुई शिवभक्त कथावाचक के पास जा करके बोली हे महाराज- 

त्वमेव मे गुरुर्ब्रह्मस्त्वं माता त्वं पितासि च।

उद्धरोद्धर मां दीनां त्वामेव शरणं गताम्।। मा-3-56

आप ही मेरे गुरु हैं, आप ही माता और आप ही पिता हैं आपकी शरण में आई हुई मुझ दीन अबला का उद्धार कीजिए। उद्धार कीजिए । 

 

ब्राह्मण बोले- मुझे प्रसन्नता है कि तुझे समय पर ज्ञान हो गया, यह सब सदाशिव की ही कृपा है। अब तू भयभीत न हो शिव जी की कृपा से तेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे । शिव कथा के श्रवण से तुम्हारी ऐसी सुबुद्धि हुई है जो विषयों से बैराग्य हुआ है । 

 

पश्चाताप संयुक्त तुम्हारी मति शुद्ध हो गई । इस शिव महापुराण की कथा के श्रवण से जैसा हृदय पवित्र होता है वैसा अन्य उपायों से नहीं होता है और हृदय के पवित्र हो जाने पर शिव पार्वती उसके हृदय में आकर विराजमान हो जाते हैं । तब वह शुद्धात्मा शिव के परम पद को पाता है।

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