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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-7 bal ram katha hindi mein

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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-7 bal ram katha hindi mein

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-7 bal ram katha hindi mein

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-7 bal ram katha hindi mein

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-7 bal ram katha hindi mein

फिर मैंना मैया ने पार्वती को गोद में बिठाकर उनको सुंदर सीख दी है।

करेहु सदा संकर पद पूजा। नारिधरमु पति देउ न दूजा।।

हे पुत्री तू सदैव भगवान शंकर के चरणों की पूजा करना नारियों का धर्म यही है उसके लिए पति ही देवता है और कोई देवता नहीं। मैंना इस प्रकार अपनी पुत्री को समझा रही हैं और यह कहते-रहते उनकी आंखों में आंसू आ गए उन्होंने अपनी पुत्री पार्वती को हृदय से लगा लिया। अब माता पार्वती की विदाई करने की घड़ी आ गई तब मैंना मैया पुत्री के विरह में बहुत दुखी हो गई। वहां के सभी नर नारी अपने आप को रोक नहीं सके। जगदंबा की विदा होते हुए देखकर वहां के पशु पक्षी भी उदास हो गए। यहां तक कि हमारे शंभू नाथ की आंखों में भी आंसू आ गए। सज्जनों किसी भी पुत्री के लिए विदाई की घड़ी भावुकता और घर आंगन के बिछोह व दुख से भरा होता है।

महादेव जी सभी याचकों को संतुष्ट कर पार्वती के साथ घर कैलाश को चले। सब देवता प्रसन्न होकर फूलों की वर्षा करने लगे और आकाश में सुंदर नगाड़े बजने लगे। शिव पार्वती विविध प्रकार के विलास करते हुए अपने गणों सहित कैलाश पर रहने लगे। इस प्रकार बहुत समय बीत गया तब छ: मुख वाले स्वामी कार्तिकेय का जन्म हुआ बड़े होने पर उन्होंने तारकासुर को मारा इस कथा को सब जानते हैं।

श्री राम भक्ति से भरा हुआ शिवजी का यह सुहावना चरित्र सुनकर मुनि भारद्वाज जी बहुत ही प्रसन्नता से भर गए और कथा सुनने की उनके अंदर लालसा और बढ़ गई। उनके नेत्रों में जल भर आया रोम-रोम पुलकित हो गए उनके मुख से वाणी नहीं निकलती यह दशा देखकर ज्ञानी याज्ञवल्क्य जी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि हे मुनिराज आप धन्य हैं आपको शिवजी प्राणों से अधिक प्रिय हैं।क्योंकि-

सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहिं ते सपनेहुँ न सोहाहीं।।

जिसको शिवजी के पादपद्मो से प्रेम नहीं रहता वह श्री रामचंद्र जी को स्वप्न में भी अच्छा नहीं लगता।


ऋषि याज्ञवल्क्य कहने लगे- अरे भगवान शंकर के समान राम भक्त और कौन होगा भला जिन्होंने बिना पाप के ही सती जैसी स्त्री का परित्याग कर दिया और प्रतिज्ञा करके श्री रामचंद्र जी के भक्ति प्रेम को दिखला दिया। हे मुनिवर मैंने पहले शिव जी का चरित्र कहकर तुम्हारा भेद समझ लिया तुम श्री रामचंद्र जी के पवित्र सेवक हो और समस्त दोषों से रहित हो अब मैं श्री रामचंद्र जी की लीला कहता हूं श्रवण करो। एक बार भगवान शंकर एक वृक्ष के नीचे गए और वहां उनको बहुत आनंद हुआ तब उन्होंने आसान बेचकर वहीं पर बैठ गए। तब अच्छा समय जानकर मैया पार्वती उनके पास गई।

पारबती भल अवसरु जानी। गईं संभु पहिं मातु भवानी।।
जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा। बाम भाग आसनु हर दीन्हा।।

अतिशय प्रिया जानकर सम्मान दिया है और वामांग में आसन दिया है। घर में जो पत्नी होती है अर्धांगिनी उसको सम्मान मिलना चाहिए कई बार नहीं मिल पाता है। पत्नी को सम्मान नहीं मिलेगा तो राम कथा का जन्म नहीं होगा। पत्नी को सम्मान चाहिए। आप पति-पत्नी की चर्चा पर निर्भर करता है कि राम कथा प्रकट होगी या फिर कोई सांसारिक व्यथा प्रकट होगी। अब यहां पर मैया पार्वती भगवान शंकर के बीच पति-पत्नी में क्या चर्चा हो रही है हम श्रवण करें। माता पार्वती ने भगवान शंकर से कहा कि हे नाथ मैं आपसे एक प्रश्न निवेदन करना चाहती हूं। भोलेनाथ प्रसन्न होकर बोले हां देवी अवश्य आपके मन में जितने भी प्रश्न है आप पूछ सकते हैं।

मैया पार्वती ने निवेदन किया की है प्रभु जिसका घर कल्पवृक्ष के नीचे हो वह गरीबी के दुख को क्यों सहेगा? क्योंकि कल्पवृक्ष का प्रभाव होता है जो कल्पना की जाए जो इच्छा की जाए वह प्राप्त हो जाती है। देवी ने कहा कि हे स्वामी बताइए जिसका घर कल्पवृक्ष के नीचे हो और वह गरीबी में जिए क्या यह ठीक है? भगवान शंकर ने कहा देवी पहेली मत बूझो आप स्पष्ट कहिए क्या जानना चाहती हैं? माता पार्वती ने कहा प्रभु आपसे कुछ छिपा नहीं है आप तो त्रिभुवन के ज्ञाता है?

भूत भविष्य वर्तमान के जानकार हैं आपको पता है पिछले जन्म में मैं आपकी अर्धांगिनी सती के रूप में थी। राम कथा के निरादर के कारण, आपकी आज्ञा के उल्लंघन के कारण दक्ष अपने पिता के यज्ञ में जाकर जलकर राख हो गई और पुनः तपस्या करके मैं इस जन्म में पर्वत पुत्री पार्वती के रूप में आपको पुनः पति रूप में प्राप्त करी हूँ। हे स्वामी पिछले जन्म का प्रश्न अभी भी बचा हुआ है। प्रश्न वही है लेकिन प्रश्न पूछने के भावना में अंतर आ गया है। इसीलिए भावना प्रधान कही गई है। प्रश्न क्या है- प्रभो- राम ब्रह्म कैसे हो सकता है? ईश्वर कैसे हो सकता है? वह अखिल कोटि ब्रह्मांड का नायक कैसे हो सकता है? पिछले जन्म में भी यही प्रश्न था कि राम ब्रह्म कैसे है? इस जन्म में भी प्रश्न यही है कि राम ब्रह्म कैसे है? लेकिन पिछले जन्म में प्रश्न के साथ संशय जुड़ा था और इस जन्म में प्रश्न के साथ जिज्ञासा जुड़ी हुई है और सज्जनों संशय का विनाश होता है और जिज्ञासा का समाधान होता है।

आज पार्वती मैया जी ने जिज्ञासा व्यक्त की है राम ब्रह्मा कैसे हो सकता है? आप मुझ पर दया करके श्री रामचंद्र जी की कथा कहिए। पहले तो वह कारण बतलाइए जिससे निर्गुण ब्रह्म सगुण रूप धारण करता है। ब्रह्म तो निर्गुण होता है, ब्रह्म तो निराकार होता है। ब्रह्म तो अव्यक्त होता है। ब्रह्म तो विराट होता है। ब्रह्म तो सबके उर में रहता है और यदि यह राम ब्रह्म है फिर निर्गुण सगुण कैसे हुआ? निराकार साकार कैसे हुआ? अव्यक्त व्यक्त कैसे हुआ? विराट सूछ्म कैसे हुआ? सबके उर में रहने वाले को किसी के उदर में क्यों रहना पड़ा? और अखिल कोटि ब्रह्मांड के नायक को किसी राजा के घर बेटा बनकर क्यों जन्म लेना पड़ा?

हे प्रभु यदि राम ब्रह्म है तो राम के जन्म की कथा सुनाइए? उनके विवाह की कथा सुनाइए? वनवास की घटना को सुनाइए? जानकी हरण से लेकर रावण मरण तक के वृत्तांत को कहिए और पुनः राम राज्य स्थापना की कथा सुनाइए। प्रभु एक और निवेदन है इस बीच मैं अगर कुछ पूछने के लिए भूल गई हूं तो आप अपनी दासी समझकर मुझे वह कृपा करके अपने से बताएं। क्योंकि व्यक्ति के प्रश्न तो बहुत होते हैं लेकिन कई बार वह प्रश्न भूल जाते हैं पूछ नहीं पाते। यही पार्वती जी यहां पर निवेदन की हैं कि प्रभु मुझे संपूर्ण श्री राम कथा सुनाएं।

कथा जो सकल लोक हितकारी। सोइ पूछन चह सैलकुमारी।।

कथा जो सकल लोक हितकारी वह कथा कहिए जो जगत के लिए कल्याणकारी हो। जो सबका मंगल करने वाली हो। जो कथा सबका उद्धार करने वाली हो।
भगवान शंकर ने माता पार्वती के सभी प्रश्नावलियों को सुना है उसके बाद देवाधिदेव महादेव के नेत्र बंद होने लगे। देहभान शून्य हो गया क्योंकि हृदय में भगवान श्री रामचंद्र की लीलाएं चलने लगी हैं। भगवान शंकर समाधि में प्रवेश कर गए।

सज्जनो यह जो समाधि शब्द है वैसे तो यह योग मार्ग का शब्द है। महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र में योग के आठ अंगों का वर्णन किया है। उसमें आठवां अंग समाधि है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। लेकिन यह जो भगवान शंकर को समाधि लगी है यह भजन समाधि लगी है। यह भक्ति मार्ग की समाधि है। भगवान श्री राम की समस्त लीलाएं हृदय में चल रही हैं। साधारण तरीके से समझे तो समाधि में दो पार्ट हैं एक हुआ सम दूसरा है धी। सम मतलब बराबर, धी मतलब बुद्धि। बुद्धि जब बराबर हो जाए उसे कहते हैं समाधि।

उसमें किसी भी प्रकार का अवसाद नहीं रहे। और हिंदी साहित्य में जितने भी शब्द सम से बने हैं अर्थात जिन शब्दों से पहले सम लग जाता है वह बड़े महत्वपूर्ण शब्द हो जाते हैं बहुमूल्य शब्द हो जाते हैं। पहला शब्द देखिए समाधि, संबंध, संबंधी, समधी, समाधान,सम्यक, समाचार। यह भजन की समाधि बड़ी सुंदर होती है जैसे ब्रज की गोपियों की समाधि है वही भजन की समाधि है। श्री महादेव जी के हृदय में सारे रामचरित्र आ गए प्रेम के कारण उनका शरीर पुलकित हो गया और नेत्रों में जल भर आया।

हर हियँ रामचरित सब आए। प्रेम पुलक लोचन जल छाये।।
श्रीरघुनाथ रूप उर आवा। परमानंद अमित सुख पावा।।

श्री रघुनाथ जी का सुंदर स्वरूप उनके हृदय में प्रकट हो गया। जिससे स्वयं परमानंद स्वरूप शिव जी ने भी अपार सुख पाया। शिवजी दो घड़ी तक ध्यान के रस आनंद में डूबे रहे फिर उन्होंने मन को बाहर खींचा और तब यह प्रसन्नचित्त होकर रघुनाथ जी का चरित्र वर्णन करने लगे। सज्जनो ध्यान दीजिए हम सब लौकिक जगत में प्रायः यही देखते हैं जो उत्तर देता है उसको धन्यवाद मिलता है। जैसे मैं आपसे कोई प्रश्न पूछूं और उसका मुझे किसी ने उत्तर दिया तो मैं उनका धन्यवाद करूंगा। लेकिन यहां पर विपरीत हो रहा है।


प्रश्न किया है जगत जननी माता पार्वती ने और उसका उत्तर दे रहे हैं भगवान शंकर तो नियम यह था की धन्यवाद करना चाहिए था माता पार्वती को भगवान शंकर का कि आप मेरे प्रश्नों का उत्तर देने जा रहे हैं और यहां पर उल्टा हुआ। भगवान शंकर के जैसे ही नेत्र खोले माता पार्वती बैठी हैं तो एक बार नहीं पार्वती जी को उन्होंने दो बार धन्यवाद किया है।

धन्य धन्य गिरिराज कुमारी। तुम समान नहिं कोउ उपकारी।।
पूँछेहु रघुपति कथा प्रसंगा। सकल लोक जग पावनि गंगा।।

देवी तुम धन्य हो धन्य हो तुम्हारे सामान कोई उपकारी नहीं है जो तुमने राजा रामचंद्र जी के कथा के विषय में प्रश्न किया है और यह कथा तो सब लोकों को पावन करने वाली है। सज्जनों जब हम गुरुओं के पास, महापुरुषों के पास, महात्माओं के पास जगत कल्याण के प्रश्न रखते हैं। तब महापुरुष लोग उस प्रश्न की बड़ी प्रशंसा करते हैं। जैसे भागवत महापुराण में महाराज परीक्षित ने श्री सुखदेव भगवान के समक्ष प्रश्न किया कि जो मरने वाला है जो सर्वथा मृयमाण है उसे क्या करना चाहिए? तो ऐसे लोगमंगल करने वाले प्रश्नों की महापुरुष लोग बड़ी प्रशंसा करते हैं।

भगवान शंकर ने कहा कि हे देवी तुम्हारे द्वारा किया गया यह प्रश्न सब का मंगल करेगा। अरे जो भागीरथी गंगा है इसका लाभ लेने के लिए तो लोगों को चलकर जाना पड़ेगा गंगा के तट तक। लेकिन यह तुम्हारे द्वारा किया गया जो प्रश्न है देवी यह राम कथा रूपी गंगा और लोगों के घर घर तक जाकर जीवन का कल्याण करेगी जीवन का उद्धार करेगी इसलिए तुम धन्य हो धन्य हो।

देवी पार्वती तुमने जो यह प्रश्न किया कि सगुण निर्गुण कैसे हो जाता है? या निर्गुण सगुण कैसे हो जाता है? और सज्जनो यह संशय प्रायः सभी के मन मे बना रहता है और भोले भाले हिंदू समाज को बहुत भड़काया जाता है तुम्हारा भगवान है कौन? सगुण है कि निर्गुण है? राम है कि कृष्ण है? सीता है की काली है? कौन है बताओ? तो सज्जनों कहीं भटक मत जाना यहां पर भगवान शंकर ने सबका समाधान कर दिया है।

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