राम कथा हिंदी में लिखी हुई-8 shri ram katha hindi font
भगवान शंकर ने मैया पार्वती से कहा
है की देवी इस बात में मत उलझो कि वह सगुण है कि निर्गुण है।
सगुनहि
अगुनहि नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा।।
अगुन अरुन अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुन सो होई।।
सगुण और निर्गुण में कुछ भी भेद नहीं
है। मुनि,
पुराण, पंडित और वेद सभी ऐसा कहते हैं। जो
निर्गुण, निराकार,अव्सक्त और अजन्मा है
वही भक्तों के प्रेमवश सगुण हो जाता है। जैसे उदाहरण के लिए हम समझे की जो बर्फ है
वही जल है और जो जल है वही बर्फ है। आप जल को फ्रिज पर रख दीजिए थोड़ी देर बाद में
बर्फ में परिवर्तित हो जाएगा और उसको बाहर निकाल कर रख दीजिए कुछ ही देर बाद वह जल
में परिवर्तित हो जाएगा इसी प्रकार सगुण और निर्गुण दोनों एक ही हैं इनमें कोई
अंतर या भेद नहीं है।
तो वही ब्रह्म जो निर्गुण है भक्तों
के लिए प्रेमवस सगुण रूप में आकर लीलाएं करता है। वैसे तो भगवान को स्वतंत्र कहा
गया है लेकिन भगवान अगर परतंत्र हैं वश में हैं तो वह हैं भक्तों के। भक्त उनको
अपने वश में करके नहीं रखता लेकिन भक्ति के चलते भगवान खुद ही भक्त के वश में रहना
स्वीकार करते हैं। भागवत महा पुराण में एक बहुत बढ़िया प्रसंग आता है नवम स्कंध
में भक्त अम्बरीश का चरित्र जिसकी रक्षा के लिए भगवान ने चक्र सुदर्शन अपना
नियुक्त कर दिया था। लेकिन जब दुर्वासा ऋषि उनको मारने के लिए श्राप देने लगे तो
वह चक्र सुदर्शन उनके पीछे पड़ गया।
किसी भी लोक में उस चक्र से उनको
बचाने वाला जब कोई नहीं मिला तो जिनका चक्र था उनके पास ही चले गए नारायण के पास।
लेकिन उनसे समय भगवान विष्णु ने यही कहा-अहं भक्तपराधीनः मैं अपने भक्तों के वश में हूं इस समय आपकी कोई
सहायता नहीं कर सकता। तो वह भक्त जो भगवान के लिए अपने पुत्र, स्त्री, परिवार सबको छोड़कर केवल भगवान के लिए ही
समर्पित रहते हैं उन भक्तों के बस में है भगवान।
भजन-
भगत
के वश में हैं भगवान।
कलियुग रूपी वृक्ष को काटने के लिए
“रामकथा” कुल्हाड़ी के समान है । हे, पार्वती ! जिस प्रकार राम
का अन्त नहीं है, प्रतियुग में राम का अवतार होता है । उसी
प्रकार उनकी कथा एवं कीर्तियों का भी अन्त नहीं है । तब भी मैं अपने ध्यान के
अनुसार जैसी मेरी मति है तुम्हारे अति प्रेम को देखकर कहूँगा । हे पार्वती !
तुम्हारा प्रश्न स्वभाविक ही सुंदर, सुखदायक और संत सम्मत है
। तुम्हारे प्रश्न मुझे बहुत ही अच्छे लगे हैं । सगुण और निर्गुण में कुछ भी भेद
नहीं है ऐसा वेद, पुराण, संत- मुनि एवं
ज्ञानी भक्तजन कहते हैं। जो न तो गुण ही है और न माया से उत्पन्न होने वाला रूप ही
है । जो आँखों से देखा नहीं जाता और अजन्मा है जिसे योगीजन ध्यान में देखते हैं वह
व्यापक विभु भक्तों के प्रेम के वश में होकर गुण सहित देह धारण करता है।
जैसे सूर्य की किरणों में पानी का
एवं सीप में चांदी का भास होता है जबकि यह तीनों कालों में मिथ्या है तो भी इस
भ्रम को कोई हटा नहीं सकता । इसी प्रकार सारा जगत् भगवान विष्णु के आश्रित रहता है
। यह संसार यद्यपि असत् है पर दुःख तो देता ही है । जैसे स्वप्न में कोई सिर काट
दे तो बिना जागे है वह दुःख दूर नहीं होता। सो हे, पार्वती ! जिसकी
कृपा से ऐसा भ्रम मिट जाता है वह कृपालु भगवान विष्णु ही राम हैं जिसका आदि और अंत
किसी ने नहीं पाया उस के लिये वेद ने इस प्रकार गाया है।
बिनु
पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
तन बिनु परस नयन बिनु देखा। ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा।।
असि सब भांति अलौकिक करनी। महिमा जासु जाइ नहिं बरनी।।
वह ब्रह्म बिना पैर चलता है, बिना
कान के सुनता है और बिना हाथ के भाँति-भाँति के कर्म करता है । बिना मुंह के सब
रसों को भोगता है और वह बिना वाणी के अखण्ड नाम का वक्ता है। बिना शरीर के स्पर्श
करता है, बिना आँखों के देखता है और बिना नार के सुगंधि को
सूंघता है। जिसकी इस प्रकार अलौकिक करनी है उस की महिमा वर्णन नहीं की जा सकती ।
कासीं
मरत जंतु अवलोकी। जासु नाम बल करउँ बिसोकी।।
जिस नाम के बल से काशी में मरते हुये
जीवों को देखकर मैं उन्हें शोक रहित कर देता हूँ वो ही मेरे स्वामी इस चराचर विश्व
के स्वामी श्री राम प्रभु हैं । भगवान शंकर कहते हैं कि वही प्रभु श्री राम पृथ्वी
पर कब अवतरित होते हैं-
जब
जब होइ धरम के हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।
करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
जब-जब धर्म का ह्यास होता है और नीच
अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं, वह अपने अत्याचार से सभी को दुखी करने
लगते हैं। ब्राह्मण, गाय, देवता और
पृथ्वी कष्ट पाने लगते हैं तब तब वह भगवान श्री हरि भांति भांति के दिव्य शरीर
धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरने के लिए अवतरित होते हैं। भगवान शंकर ने कहा-
राम
जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका।।
जनम एक दुइ कहउँ बखानी। सावधान सुनु सुमति सयानी।।
हे देवी भगवान के अवतार के अनेक कारण
और रहस्य हैं उनमें से मैं आपको एक दो कारण सुना रहा हूं सावधान होकर श्रवण कीजिए।
भगवान शंकर ने कहा देवी एक कारण तो
यह था भगवान के द्वारपाल जय और विजय जब उन्होंने सनकादी मुनीश्वरों को भगवान के
दर्शनों में बाधा उत्पन्न की तब उन्होंने जय विजय को श्राप दे दिया राक्षस बनने
का। वही दोनो हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के रूप में देवलोक के राजा इंद्र का गर्व
नष्ट करने में जगत विख्यात थे। दोनों समर में विजई थे एक को भगवान विष्णु ने वराह
रूप लेकर मारा और दूसरे को नरसिंह रूप लेकर मारा और अपने भक्त प्रहलाद का यश जगत
में फैलाया जिसे गाकर भक्तजन संसार सागर को पार कर जाते हैं। भगवान विष्णु भक्तों
के लिए अनेकों देह करते हैं।
एक अवतार में कश्यप और अदिति उनके
माता-पिता हुए जो दशरथ और कौशल्या के नाम से प्रसिद्ध हैं।
एक कल्प में सब देवताओं को जालंधर
दैत्य से युद्ध में हारे जाने के कारण दुखी देखकर शिव जी ने उसके साथ बड़ा घोर
युद्ध किया पर वह महाबली दैत्य मारे नहीं मरता था। उस असुर की स्त्री परम सती थी।
बड़ी पतिव्रता थी उसी के प्रताप से त्रिपुरासुर जैसे अजेय शत्रु का विनाश करने
वाले शिव जी भी उस दैत्य को नहीं जीत सके। तब प्रभु ने लीला करते हुए छल से उस
स्त्री का व्रत भंग कर देवताओं का काम किया। जब वह स्त्री ने भेद जाना तब उसने
क्रोध करके भगवान श्री हरि को श्राप दे दिया। कृपालु श्री हरि ने उस स्त्री के
श्राप को स्वीकार किया। वही जालंधर उस कल्प में रावण हुआ जिसे रामचंद्र जी युद्ध
में मारकर परमपद दिया।
तीन कारण के बाद महादेव चौथा कारण
बता रहे हैं और उसमें कुछ समय ले रहे हैं क्या कह रहे हैं चौथा कारण सुनिए-
नारद
श्राप दीन्ह एक बारा। कलप एक तेहि लगि अवतारा।।
गिरिजा चकित भईं सुनि बानी। नारद बिष्नु भगत पुनि ग्यानी।।
कारन कवन श्राप मुनि दीन्हा। का अपराध रमापति कीन्हा।।
एक बार नारद जी ने श्राप दिया अतः एक
कल्प में उसके लिए अवतार हुआ यह बात सुनकर पार्वती जी बड़ी चकित हुई बोली कि नहीं
नारद जी अपराध नहीं कर सकते नारद जी मेरे गुरु भी हैं मेरे गुरु अपराध नहीं कर
सकते।
बंधु माताओं अगर आपको गुरु भक्ति
देखनी है तो दर्शन करिए माता पार्वती का। भगवान शंकर ने जैसे ही कहा- नारद श्राप
दीन एक बारा । वैसे ही माता पार्वती ने रोक दिया कि बस करिए नाथ। वह चकित हो गई
कहने लगी अपराध अगर किया होगा तो भगवान ने किया होगा मेरे गुरु नारद नहीं कर सकते।
गुरु का स्थान सबसे बढ़कर क्या होता है इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है-
गुरू
ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा।
गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे
नमः।।
अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु
ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। गुरु परम
सत्ता है। इसीलिए माता ने कहा कि गुरु से अपराध नहीं हो सकता और सज्जनों गुरु चाहे
तो काल से भी लड़ सकता है। यह क्षमता गुरु में होती है।
इस विषय में एक सच्ची घटना आपको
सुनाएं- छत्रपति शिवाजी के गुरु का नाम था रामदास स्वामी लेकिन दुनिया उनको जानती
है समर्थ गुरु रामदास के नाम से। उनका नाम नहीं था समर्थ उनको उपाधि मिली थी। कब
मिली?
कहां मिली? कैसे मिली? तो
सुनिए यह कथा! गुरु महिमा का बोध कराने वाली है। रामदास स्वामी महाराष्ट्र से चले
अपने एक ब्रह्मचारी बालक शिष्य को लेकर के। पहुंच गए काशी क्षेत्र में सुंदर मां
गंगा में स्नान किया बाबा विश्वनाथ का दर्शन किया।
काशी में पहुंचने के बाद ब्रह्मचारी
शिष्य को कहे की जो काशी में महान ज्योतिषी पंडित गंगाधर भट्ट रहते हैं उनसे
भिक्षा लेकर के आओ। ब्रह्मचारी पंडित गंगाधर भट्ट से भिक्षा लेने के लिए गया।
गंगाधर भट्ट से भिक्षा मागा ब्रह्मचारी ने गंगाधर भट्ट ने भिक्षा दे दिया।
ब्रह्मचारी जब लेकर लौटने लगा तो गंगाधर ने कहा कि हे ब्रह्मचारी भिक्षा तो तू ले
जा रहा है लेकिन तेरी आयु कुछ ही घंटे की है। शाम 4:00 बजे तेरी मृत्यु
हो जाएगी।
वह ब्रह्मचारी यह सुनकर दौड़ करके
आया गुरु रामदास जी के पास वह रोने लगा डर के कारण। गुरु जी ने कहा क्यों रो रहा
है? भिक्षा नहीं मिली क्या? ब्रह्मचारी ने कहा गुरुजी
भिक्षा तो मिली है लेकिन मृत्यु का समाचार भी मुझे प्राप्त हो गया है। गंगाधर भट्ट
ने जो कहा था वह ब्रह्मचारी ने सब अपने गुरु से कह दिया। यह वचन सुनने के बाद एक
क्षण के लिए स्वामी रामदास जी ने अपने नेत्र बंद किया उसके बाद कहने लगे अरे
ब्रह्मचारी तू 4:00 बजे मारेगा ना अभी तो बहुत टाइम है।
जो भिक्षा में लेकर के आया है चल
प्रसाद बना ठाकुर जी को भोग लगा, गंगा जी को भोग लगा, तू भी पा और मैं भी पाऊं। यह सुनते ही शिष्य सेवा में जुट गया। यह भारत की
गुरु परंपरा की दिव्यता है। कुछ घंटे बाद मृत्यु है लेकिन फिर भी वह गुरु की आज्ञा
नहीं टाल रहा। गुरोर्आज्ञा न लङ्घयेत्। प्रसाद
बनाकर भोग लगाकर गुरु जी को खिला दिया 3:00 बज गए मृत्यु आने
में अब एक घंटा शेष बचा है। गंगाधर ज्योतिषी ने बताया है सामान्ष ज्योतिषी नहीं है
प्रकांड ज्योतिषी है।
3:00 बज गए तो गुरु जी ने कहा
कि ब्रह्मचारी चलो गंगा जी के तट पर वही विश्राम करेंगे, वही
गंगा स्नान करेंगे वही सायं संध्या करेंगे। बंधु माताओं गंगा जी के तट पर स्वामी
रामदास ब्रह्मचारी बालक को लेकर के आ गए। तट पर लेट गए 3:30 बज
गए काल आने वाला है, ब्रह्मचारी बहुत डरा हुआ है रो रहा है
कि अब मैं मर जाऊंगा।
गुरुजी ने तभी कहा ब्रह्मचारी में
वृद्ध हो गया हूं,
बड़ी लंबी यात्रा करके आ रहा हूं मेरे पांव में बहुत दर्द हो रहा है
मेरे पांव दबावो चरण दबावो। आधे घंटे बाद मरने वाला है और गुरुजी बोल रहे हैं चरण
दबावो वह ब्रह्मचारी बालक बड़े प्रेम से गुरु जी के चरण दबाने लगा। 4:00 बजने ही वाला था वह डर के कारण गुरु जी के पांव जल्दी-जल्दी दबाने लगा,
पूरे शरीर से पसीना चलने लगा और ठीक जैसे ही 4:00 बजे काल आकर के सामने खड़ा हो गया।
ले नहीं गया आकर सामने खड़ा हो गया।
क्यों नहीं ले गया काल सुनिए। काल खड़ा रहा 5:00 बज गए, 6:00 बज गए ब्रह्मचारी गुरु के चरण दबाता रहा। जब काल लौट कर जाने लगा रामदास
स्वामी ने पूछा क्यों तू तो लेने आया था लेकर के नहीं जाएगा क्या तू? काल ने कहा कि स्वामी जी इसको नहीं ले जा सकता हूं। गुरु जी ने कहा लेने
तो आए थे? क्यों नहीं ले जा सकते? तो
उसने कहा मेरे मालिक यमराज की आज्ञा है कि जो शिष्य अपने गुरु के चरणों की सेवा
करता हो तो उसके प्राण मत लेना उसको प्रणाम करके लौट आना। इसलिए मैं इसको प्रणाम
करके लौट रहा हूं। इसके प्राण नहीं ले सकता।
