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राम कथा हिंदी में लिखी हुई-9 ram katha hindi lyrics

bhagwat katha sikhe

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-9 ram katha hindi lyrics

 राम कथा हिंदी में लिखी हुई-9 ram katha hindi lyrics

  राम कथा हिंदी में लिखी हुई-9 ram katha hindi lyrics

राम कथा हिंदी में लिखी हुई-9 ram katha hindi lyrics

सज्जनों गुरु में वह शक्ति होती है। भागवत में भी इस प्रसंग पर बड़ा सुंदर वर्णन है की यमराज किसको ले जाते हैं श्लोक आता है-

जिह्वा न वक्ति भगवत गुण नाम धेयम।

जिसके जिह्वा में भगवान का नाम नहीं रहता, जो भगवान की सेवा नहीं करते, जो साधु महात्मा गुरु की सेवा नहीं करते वह यमलोक को जाते हैं।

अगले दिन प्रातः काल स्वामी रामदास जी ने ब्रह्मचारी से कहा कि जाओ फिर से गंगाधर भट्ट से भिक्षा लेकर के आओ। गंगाधर भट्ट के पास जैसे ही ब्रह्मचारी बालक गया गंगाधर भट्ट के हाथों पर कलश में जल था वह छूट गया। कहने लगे अरे ब्रह्मचारी तुम जीवित कैसे हो सूर्य पश्चिम से निकल सकता है लेकिन मेरा ज्योतिष का अनुमान गलत नहीं हो सकता। ब्रह्मचारी जी ने कहा कि गंगाधर जी आपकी ज्योतिष झूठ नहीं है आपके मुताबिक काल तो आया था ठीक 4:00 बजे 3 घंटे खड़ा रहा और जाते समय मेरे गुरु जी से बोल करके गया कि मैं इसको नहीं ले जा सकता हूं। क्योंकि यह गुरु चरण की सेवा कर रहा है।

गंगाधर भट्ट चकित हो गए कहने लगे अरे ब्रह्मचारी तेरे गुरु जी कौन हैं ? तब उसने कहा कि मेरे गुरूदेव रामदास स्वामी महाराष्ट्र से आए हैं मैं उनका शिष्य ब्रह्मचारी हूं। गंगाधर भट्ट जी ने कलश में जल भरा है और आज उसी दिशा में अर्घ्य दिया है जिस दिशा में स्वामी रामदास जी थे और हाथ उठाकर के घोषणा की है कि आज से दुनिया रामदास जी को रामदास स्वामी नहीं समर्थ गुरु रामदास के नाम से जानेगी। जिसने अपने शिष्य के लिए काल को भी वापस कर दिया। तो बंधु माताओं यह सामर्थ्य होती है गुरु में।
इसीलिए बाबा तुलसी ने क्या लिखा है-

राखहिं गुरु जो कोप विधाता। गुरु विरोध नहिं कोउ जग त्राता।।

अगर एक बार भगवान रूठ जाए तो गुरु के यहां शरण मिल जाती है लेकिन अगर गुरु रूठ गए तो फिर कहीं शरण नहीं मिलती।

पार्वती जी बोली की प्रभो- नारद जी तो विष्णु भक्त और ज्ञानी है तो उन्होंने भगवान को श्राप क्यों दिया? नारद जैसे महात्माओं के मन में मोह होना बड़े आश्चर्य की बात है। यह बात सुनकर महादेव जी मुस्कुराए और कहने लगे हे देवी ना कोई ज्ञानी है, ना कोई मूर्ख है, श्री रामचंद्र प्रभु जब जिसको जैसा करते हैं वह उसी क्षण वैसा ही हो जाता है।

भगवान शंकर कहने लगे- हे महादेवी एक बार देवर्षि नारद हिमालय पर्वत में एक बड़ी सुंदर गुफा को देखकर जिसके समीप गंगा जी बहती थी वह स्थान उनके मन को बड़ा ही अच्छा लगा। पर्वत नदी वन के सुंदर दृश्य देखकर नारद जी का भगवान के चरणों में प्रेम हो गया और भगवान का स्मरण करते ही जो दक्ष ने नारद जी को श्राप दिया था कि एक स्थान पर अधिक देर नहीं ठहर सकते उस श्राप की गति वहां पर अवरुद्ध हो गई, रुक गई। जिसके कारण उनका मन स्वाभाविक ही निर्मल होने से उनकी समाधि लग गई।

नारद जी की तपस्या समाधि को देखकर इंद्र डर गया कि कहीं यह मेरा राज्य न छीन ले। तब देवराज इंद्र ने कामदेव को नारद जी की तपस्या समाधि को भंग करने के लिए आदेश दिया। सज्जनों जैसे कोई मूर्ख कुत्ता सिंह को देखकर सूखी हड्डी लेकर वहां से भागे और वह मूर्ख यह समझे कि कहीं इस हडडी को यह सिंह ना मुझसे छीन ले। वैसे ही यहां पर देवराज इंद्र विचार कर रहे हैं कि मेरा स्वर्ग का राज्य नारद जी कहीं मुझसे छीन ना ले।

इन्द्र ने कामदेव को भेजा कामदेव ने कई प्रकार से नारद जी की तपस्या समाधि को तोड़ने का प्रयास किया। लेकिन वह सफल नहीं हुआ। तब काम देव मुनि नारद जी के चरणों को पकड़ कर क्षमा याचना किया मुनि ने प्रेम भरी वाणी से उसके मन का डर दूर किया। इस घटना से नारद जी के मन में भी किंचित अभियान जाग उठा कि मैं काम को भी जीत लिया। वह भगवान शंकर के पास गए और किस प्रकार वह काम पर विजय प्राप्त किया सारी घटना का वर्णन किया।

मार चरित संकरहि सुनाये। अतिप्रिय जानि महेस सिखाये।।
बार बार बिनवउँ मुनि तोही। जिमि यह कथा सुनायहु मोही।।
तिमि जनि हरिहि सुनावहु कबहूँ। चलेहुँ प्रसंग दुराएहु तबहूँ।।

नारद जी ने काम विजय की गाथा जब महादेव जी को सुना डाली तो महादेव जी ने हाथ जोड़कर के उनसे विनय पूर्वक निवेदन किया की हे नारद जी आपने यह बात तो मुझसे कह दी लेकिन आप इस बात को किसी प्रकार से वह भगवान विष्णु जी के सामने मत कहना।

यहां पर भगवान शिव ने नारद जी के हित की बात कही उनसे लेकिन फिर भी नारद जी को अच्छा नहीं लगा क्योंकि हरि की इच्छा बड़ी बलवान है। श्री रामचंद्र जी जो चाहते हैं वही होता है ऐसा कोई नहीं जो उसके विरुद्ध कर सके। शिव लोक के बाद नारद जी ब्रह्मा जी के पास जाते हैं ब्रह्म लोक में। उसके बाद एक दिन देवर्षि नारद भगवान नारायण के पास चार सागर पहुंचे-

छीरसिंधु गवने मुनिनाथा। जहँ बस श्रीनिवास श्रुतिमाथा।।
हरषि मिले उठि रमानिकेता। बैठे आसन रिषिहि समेता।।

भगवान श्री हरि ने जब नारद जी को देखा है प्रसन्न होकर उठकर उनसे मिले हैं एक साथ दोनों आसन पर बैठे हैं। भगवान नारायण ने कहा कि हे देवर्षि आपने बड़ी दिन बाद कृपा किया और बताइए सब कुशल मंगल तो है? तब नारद जी काम विजय की गाथा नारायण प्रभु को सुनाने लगे यद्यपि पहले भगवान शिव ने समझाया था मना किया था लेकिन फिर भी!

काम चरित नारद सब भाषे। जद्यपि प्रथम बरजि सिवँ राखे।।
अति प्रचंड रघुपति कै माया। जेहि न मोह अस को जग जाया।।

श्री रघुनाथ जी की माया बड़ी ही प्रबल है जगत में ऐसा कौन जन्मा है जिसे प्रभु श्री राम की माया मोहित ना कर दे।

भजन- सारे जग को रही नचाय हरि माया जादू गरनी।

भगवान श्री हरि नारद जी से कहने लगे हे मुनिराज आपका स्मरण करने से दूसरों के काम, मोह, मद, अभियान मिट जाते हैं फिर आपके लिए तो कहना ही क्या। आप तो बड़ी धीरबुद्धि वाले हैं आपको भला कामदेव कैसे सता सकता है। नारद जी ने अभियान के साथ कहा भगवन यह सब आपकी ही कृपा है। तब भगवान ने निश्चित कर लिया कि मैं नारद जी के जो अंदर अभियान का अंकुर उत्पन्न हुआ है उसको मैं उखाड़ कर फेंक दूंगा। क्योंकि जो भगवान की कृपा का अनुभव करता है भगवान उसके अभिमान को नष्ट कर देते हैं।


यहां नारद जी श्री हरि को प्रणाम करके वहां से चल देते हैं। नारद जी के जाते ही प्रभु ने अपनी माया का विस्तार किया जी और नारद जी जिस रास्ते से जा रहे थे उसी रास्ते में सौ योजन यानी 400 कोष का एक नगर रच दिया। उस नगर की बड़ी सुंदर शोभा थी भगवान नारायण उस नगर को अपने बैकुंठ से भी सुंदर रचा था। वहां के लोग नर नारी सभी कामदेव को भी लज्जित करने वाले थे। वहां का राजा जिसका नाम था शीलनिधि उसके विश्व मोहिनी नाम की एक कन्या थी। जिसके रूप को देखकर लक्ष्मी जी भी मोहित हो जाए वह सब गुणो की खान भगवान की माया ही थी तो उसकी शोभा का वर्णन कैसे किया जा सकता है। वह राजकुमारी स्वयंवर करना चाहती थी इसलिए वहां पर बहुत से राजा और राजकुमार आए हुए थे।

जब नारद मुनि उस नगर में गए तो नगर वासियों ने उनका स्वागत सत्कार किया। राजा सीलनिधि उनका पूजन कर सुंदर आसन पर बिठाकर अपनी पुत्री विश्व मोहिनी को बुलाकर प्रणाम करवाया और कहा कि हे देवर्षि आप इसका हाथ देखकर इसके गुण दोषों को बताइए? विश्व मोहिनी वह तो भगवान की ही माया थी। विश्व मोहिनी इतनी सुंदर थी कि नारद मुनि ने जब उनको देखा तो वैराग्य भूल गए। बहुत देर तक वह उनकी ओर देखते ही रह गए। नारद जी हाथ की रेखा देखकर लक्षणों को जानकर मन ही मन विचार करने लगे जो इससे ब्याह करेगा वह अमर हो जाएगा और रणभूमि में कोई उसे जीत न सकेगा।

यह शीलनिधि की कन्या जिसको वरेगी सब चर-अचर जीव उसकी सेवा करेंगे। यह बात जानकर नारद जी पूर्ण रूप से उनके समक्ष इसको वर्णन नहीं किया। ऐसे ही बनाकर बातें कह दिए की यह तुम्हारी पुत्री के बहुत शुभ गुण हैं। नारद जी वहां से चल दिए लेकिन मन में एक प्रकार से उनके यह बात चलने लगी कि अगर यह कन्या मुझे मिल जाए तो मैं सर्वश्रेष्ठ बन जाऊंगा। लेकिन इस समय जप तप से कुछ हो नहीं सकता। हे विधाता मुझे यह कन्या किस प्रकार मिले? यह नारद जी सोचने लगे। फिर मन में आया कि अगर मैं बहुत सुंदर स्वरूप प्राप्त कर उसके पास जाऊं तो राजकुमारी मुझ पर रीझ जाएगी और मेरे ही गले में वरमाला डाल देगी।


लेकिन ऐसी सुंदरता मैं कहां प्राप्त करूं तभी विचार आया अगर मैं श्रीहरि से उनका रूप मांग लूं तो काम बन जायेगा। क्योंकि वह बड़े सुंदर हैं। तो नारद जी सीधा जाते हैं भगवान नारायण के पास और जाकर के उनसे निवेदन करते हैं। सारी घटना का वर्णन करते हैं कि हे भगवान मैं एक राजकुमारी को देखा हूं मेरा उस पर मन आकर्षित हो गया है मैं उससे विवाह करना चाहता हूं। इसके लिए आपकी सहायता चाहिए। आप मुझे अपना रूप दे दीजिए जिससे वह कन्या मेरा ही वरण करे।

मैं आपके रूप के बिना उस कन्या को नहीं प्राप्त कर सकता। नारद जी इतना निवेदन करने के बाद एक ऐसी बात बोल दिए जिससे नारद जी का प्रभु ने कल्याण किया। नारद जी कहने लगे कि हे नाथ-

जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा। करहु सो बेगि दास मैं तोरा।।

जिस प्रकार मेरा हित हो आप वही कीजिए। मैं आपका दास हूं। भगवान नारायण अपनी माया का विशाल बल देखकर मन ही मन मुस्कुराने लगे और नारद जी से कहने लगे की हे नारद सुनिए-

जेहि बिधि होइहि परम हित नारद सुनहु तुम्हार।
सोइ हम करब न आन कछु बचन न मृषा हमार।। दो-132

जैसे में आपका परम हित होगा, हम वही करेंगे दूसरा कुछ नहीं यह हमारे वचन सत्य है समझो। जैसे रोग से व्याकुल कोई रोगी कुपथ्य मांगे तो बैद्य उसे नहीं देता। इसी प्रकार हे योगी मैं भी तुम्हारा हित करने की मन में ठान ली है ऐसा कहकर भगवान अंतर्धान हो गए।

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