संतों का अक्रोध / श्री तुकाराम जी तथा श्री एकनाथ जी की परम सहनशीलता की एक सच्ची घटना

   ✳ संतों का अक्रोध ✳

संतों का अक्रोध / श्री तुकाराम जी तथा श्री एकनाथ जी की परम सहनशीलता की एक सच्ची घटना

-( संत तुकाराम जी) -

श्री  तुकारामजी के माता पिता परलोक वासी हो चुके थे | बड़े भाई विरक्त होकर तीर्थ यात्रा करने चले गए थे | परिवार का पूरा भार तुकाराम जी पर था और तुकाराम थे कि उन्हें माया-मोह सिर पटक कर थक गए , पर स्पर्श कर नहीं पाते थे |

पैतृक संपत्ति अस्त-व्यस्त हो गई | कर्जदारों ने देना बंद कर दिया | घर में जो कुछ था , साधुओं और दीन दुखियों की सेवा में समाप्त हो चुका था | दुकान का काम ठप हो गया | परिवार में उपवास करने की नौबत आ गई | परिवार भी कितना बड़ा---    दो स्त्रियाँ , एक बच्चा , छोटा भाई और बहिनें | सब निर्भर थे तुकाराम जी पर और तुकाराम- वे तो सांसारिक प्राणी थे ही नहीं |

एक बार खेत में गन्ने तैयार हुए | तुकाराम जी ने गन्ने काटे और बोझा बांधकर सिर पर रखा | गन्ने बिकें तो घर के लोगों के मुख में अन्न जाए | लेकिन मार्ग में बच्चे इनके पीछे लग गए | वे गन्ना मांग रहे थे | जो सर्वत्र अपने गोपाल के दर्शन करते हों | कैसे अस्वीकार कर दें | बच्चों को गन्ने मिले | वे प्रसन्न होकर उन्हें तोड़ते , चूसते चले गए |

तुकाराम जी जब घर पहुंचे , उनके पास केवल एक गन्ना था | उनकी पहली स्त्री रखुमाई चिड़चिड़े स्वभाव की थीं | भूखी पत्नी ने देखा कि उसके पति देव तो केवल एक गन्ना छड़ी की भांति लिए चले आ रहे हैं | क्रोध आ गया उसे | उसने तुकारामजी के हाथसे गन्ना छीन कर उनकी पीठ पर दे मारा | गन्ना टूट गया | उसके दो टुकड़े हो गए | 

तुकाराम जी के मुख पर क्रोध के बदले हंसी आ गई | वे बोले---   हम दोनों के लिए गन्ने के दो टुकड़े मुझे करने ही पड़ते | तुमने बिना कहे ही यह काम कर दिया | बड़ी साध्वी हो तुम ||
संतों का अक्रोध / श्री तुकाराम जी तथा श्री एकनाथ जी की परम सहनशीलता की एक सच्ची घटना

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-( संत एकनाथ जी )-

दक्षिण के ही दूसरे संत श्री एकनाथ जी महाराज---    अक्रोध तो जैसे एकनाथ जी का स्वरूप ही था |


ये परम भागवत योगीराज---    नित्य गोदावरी स्नान करने जाया करते थे वे | बात पैठणकी है , जो एक नाथ जी की पावन जन्म भूमि है | गोदावरी स्नान के मार्ग में एक सराय पढ़ती थी |उस सराय में एक पठान रहता था | वह उस मार्ग से आने जाने वाले हिंदुओं को बहुत तंग किया करता था |

एकनाथ जी महाराज को भी उसने बहुत तंग किया|  एकनाथजी जब स्नान करके लौटते , वह पठान उनके ऊपर कुल्ला कर देता | एकनाथजी फिर स्नान करने नदी लौट जाते और जब स्नान करके आने लगते , वह फिर कुल्ला कर देता उनके ऊपर |कभी-कभी पाँच-पाँच बार यह काण्ड होता |

यह काफिर गुस्सा क्यों नहीं करता ? एक दिन पठान जिद पर आ गया | वह बार-बार कुल्ला करता गया और एकनाथ जी बार-बार गोदावरी स्नान करने लौटते गए | पूरे 108 उस बार उसने कुल्ले किए और पूरे 108 बार एकनाथ जी ने नदी में स्नान किया |

आप मुझे माफ कर दें | मैं तोबा करता हूं | अब किसी को तंग नहीं करूंगा | आप खुदा के सच्चे बंदे हैं---   माफ कर दें मुझे | अंत में पठान को अपने कर्म पर लज्जा आयी | उसके भीतर की पशुता संत की क्षमा से पराजित हो गई | वह एकनाथ जी के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा |

इसमे क्षमा करने की क्या बात है | आपकी कृपा से मुझे आज 108 बार स्नान करने का सुअवसर मिला | श्री एकनाथ जी महाराज बड़े ही प्रसन्न मन से उस यवन को आश्वासन दे रहे थे ||
संतों का अक्रोध / श्री तुकाराम जी तथा श्री एकनाथ जी की परम सहनशीलता की एक सच्ची घटना

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