भगवान्नाम की महिमा / The glory of god

     भगवान्नाम की महिमा 

भगवान्नाम की महिमा / The glory of god

( अजामिल )

कभी धर्मात्मा था अजामिल | माता पिता का भक्त , सदाचारी श्रोत्रिय ब्राह्मणयूवक---  किंतु सङ्गका प्रभाव बडा प्रबल होता है | एक दिन अकस्मात एक कदाचारणी स्त्री को एक शूद्र के साथ देखा उसने निर्लज्ज चेष्टा करते और सुप्त वासनाएँ  जागृत हो गयीं | बह गया अजामिल पाप के प्रवाह में |

    माता-पिता छूटे , साध्वी पत्नी छूटी , घर छूटा | धर्म और सदाचार की बात व्यर्थ है | वही कदाचारणी स्त्री अजामिल की प्रेयसी बनी | उसे संतुष्ट करने के लिए न्याय-अन्याय सब भूल गया अजामिल | वासना जब उद्दीप्त होती है--- उसके प्रवाह में पतित पामर प्राणी कौन से पाप नहीं करता |
समय बीतता गया | बुढ़ापा आया | उस शूद्रा कदाचारणी से कई संताने हुई अजामिल की | बुढ़ापे में काम प्रबल रह नहीं सकता | उस समय मोह प्रबल रहता है | अपने छोटे बच्चे नारायण में अजामिल का अत्यधिक मोह था |

मृत्यु का समय आया | यमराज के भयंकर दूत हाथों में पाश लिए आ पहुंचे | अजामिल ने उन्हें देखा | मरणासन्न पापी प्राणी यमदूतों को देखकर कांप उठा | पास खेलते अपने छोटे पुत्र को उसने कातर स्वर में पुकारा----   नारायण ! नारायण !

' नारायण ! भगवान् नारायण के सर्वत्र घूमने वाले दूतों ने यह पुकार सुनी | सर्वज्ञ के समर्थ पार्षदों से प्रमाद नहीं होता | वे जान चुके थे कि कोई भी उनके स्वामी को नहीं पुकार रहा है , लेकिन किसी प्रकार एक मरणासन्न जीव उनके स्वामी का नाम तो ले रहा है | दौड़े वे दिव्य पार्षद |

शंख , चक्र , गदा , पद्म तथा खड्ग आदि आयुधों से सुसज्जित कमल लोचन भगवान् नारायण के परम मनोहर दूत----   यमदूतों के पाश उन्होंने बलात् तोड़  फेंके | भागे यमदूत उनके द्वारा ताडित होकर |

व्यर्थ थी यमदूतों की यमराज के यहां पुकार | उन महाभागवत धर्मराज ने दूतों को यही कहा---   जो किसी प्रकार भी भगवान्नाम ले , उसकी ओर भूल कर भी मत झांकना | वह तो सर्वेश्वर श्री हरि के द्वारा सदा रक्षित है |
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( गणिका )

वह एक गणिका थी | नाम था जीवन्ती | गणिका और धर्म----    इनमें कहीं कोई मेल नहीं है , यह आप जानते हैं | उसने केवल अपने विनोद के लिए एक तोता पाल लिया | पिंजरे में बंद तोते को पढ़ाया करती थी---  मिट्ठू ! कहो सीताराम ! सीताराम !
    किसका काल कब आवेगा , कौन जानता है | गणिका तोते को पढ़ा रही थी----  ' सीताराम ! सीताराम ! लेकिन उसे क्या पता था कि उसका ही 'रामनाम सत्य' होने वाला है | जीवन के क्षण पूरे हो गए थे | गणिका को लेने यमदूत तो आते ही | बेचारे यमदूतों को यहां भी मुंह की खानी पड़ी | किसी भी बहाने वह गणिका 'सीताराम' कह रही थी न | भगवान के पार्षद नाम-जप की रक्षा में कहीं प्रमाद कर सकते हैं |
यमदूतों को सिर पर पैर रखकर भागना पड़ा |
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( व्याध वाल्मीकि )

था तो वह ब्राम्हण-पुत्र , किंतु ब्राह्मणत्व कहां था उसमें | डाकुओं के संग से भयंकर डाकू हो गया था वह | 

उसने कितने मनुष्य मारे---     कुछ ठिकाना नहीं | देवर्षि नारद को उसका  उद्धार करना था | वे उसी मार्ग से निकले | किसी प्रकार वह दस्यु इसपर पर प्रस्तुत हो कि देवर्षि को बांधकर घर वालों से पूछ आवे-----     कोई उसके पाप में भी भाग लेगा या नहीं |
माता-पिता , स्त्री-पुत्र---  सब ने टका-सा जवाब दे दिया | सब धन में भागीदार थे , पाप में नहीं |दस्यु के नेत्र खुल गए | संत के चरणों में आ गिरा | देवर्षि को यह ऐसा शिष्य मिला जो 'राम' यह नाम भी नहीं बोल सकता था | लेकिन नारद जी ने कहीं हार मानी है जो यहीं मान जाते | उन्होंने कहा---  तुम मरा , मरा जपो |
शीघ्रता से मरा , मरा कहने पर ध्वनि राम राम की बन जाती है | दस्यु जप में लग गया---   पूर्णत: लग गया | कितने वर्ष--   कुछ पता नहीं | उसके ऊपर दीमकों ने बाँबी बना ली | भगवान्नाम के उलटे जपने उसे परम पावन कर दिया | सृष्टिकर्ता ब्रह्मा स्वयं वहां आए | दीमकोंकी वल्मीक ( बाँबी ) से निकाला उसे आदिकवि होने का गौरव दिया | जो कभी दस्यु था---  वह आदिकवि महर्षि वाल्मीकि कहलाया |

उलटा नामु जपत जगु जाना | 
बालमीकि भए ब्रह्म समाना ||

 अपार है भगवन्नाम का प्रभाव ||

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