पुण्य दान,नरकी प्राणियों के दुख से दुखी

💥 नरकी प्राणियों के दुख से दुखी 💥

✳ राजा का पुण्य दान ✳


पुराण की एक कथा है----

      एक महान पुण्यात्मा नरेश का शरीररान्त हो गया | शरीर तो अंत होने वाला है----   क्या पापी , क्या पुण्यात्मा किंतु शरीर का अंत होते ही यह सम्मुख आ जाता है कि शरीर से सत्कर्म या दुष्कर्म करने का क्या फल है | महान पुण्यात्मा नरेश का शरीर छूटा था | संयमनी पुरी के स्वामी धर्मराज के दूत बड़े सुंदर स्वरूप धारण कर उस राजा के जीव को लेने आए | बड़े आदर से वे उसे ले चले | 

मनुष्य कितना भी सावधान हो----   छोटी-मोटी भूल हो जाना स्वाभाविक रहता है | राजा से भी जीवन में कोई साधारण भूल हुई थी | धर्मराज ने अपने सेवकों को आदेश दिया था-- उस पुण्यात्मा को कोई कष्ट ना हो , उसका तनिक भी तिरस्कार ना हो , यह ध्यान रखना | उसे पूरे सम्मान से और सुख पूर्वक ले आना | लेकिन इस प्रकार ले आना कि वह नरकों को देख ले |

उसके साधारण प्रमाद का फल इतना ही है कि उसको नरक दर्शन हो जाए | उसके पुण्य अनंत हैं | स्वर्ग में उसके स्वागत की प्रस्तुति हो चुकी है | दूतों को अपने अध्यक्ष की आज्ञा का पालन करना था | राजा नरक के मध्य से होकर जाने लगे | उनके लिए तो वह मार्ग भी सुखद शीतल ही था , किंतु चारों ओर से आती लक्ष-लक्ष जीवों की करुण क्रंदन की ध्वनि , भयंकर चित्कारें , हृदयद्रावक आहें वहां सुनाई पड़ रही थी |

राजा ने पूछा धर्मराज के दूतों  से यहां कौन क्रंदन कर रहे हैं | 
धर्मराज के दूतों ने कहा यह सब पापी जीव हैं यह अपने-अपने पापों का दंड यहां नरकों में पा रहे हैं | लेकिन अब इनकी चित्कारें  बंद क्यों हो गई | राजा ने इधर-उधर देखकर पूछा ? 

आप जैसे महान पुण्यात्मा यहां से जा रहे हैं | आपके शरीर से लगी वायु नरकों में जाकर वहां की ज्वाला शांत कर देती है | नरक के प्राणियों का दारुण ताप इससे क्षणभर में शांत हो गया है | इसी से उनका चिल्लाना बंद है | धर्मराज के दूतों को सच्ची बात ही कहनी थी | महाराज ! कृपा करके आप अभी मत जायें आपके यहां खड़े रहने से हमें बड़ी शांति मिली है | 

चारों ओर से नरक में पड़े प्राणियों की प्रार्थना उसी समय सुनाई पड़ी |

आप सब धैर्य रखें | मेरे यहां रहने से आप सबको सुख मिलता है तो मैं सदा यही रहूंगा | पुण्यात्मा राजा ने नर्क के प्राणियों को आश्वासन दिया |

धर्मराज के दूत बड़े संकट में पड़ गए | वे उस महान धर्मात्मा को बलपूर्वक वहां ले नहीं जा सकते थे और स्वयं उसने आगे जाना स्वीकार कर दिया | एक पुण्यात्मा पुरुष नर्क में कैसे रह सकता है | स्वयं धर्मराज देवराज इंद्र के साथ वहां पहुंचे | वहां----   नरक में अमरावती के आधीश्वर इंद्र को आना पड़ा उस पुण्यात्मा को समझाने |

मैं अपना सब पुण्य इन नरक में पड़े जीवो को दान देता हूं | राजा ने धर्मराज और देवराज के समक्ष हाथ में जल लेकर संकल्प कर दिया | 

अब आप पधारें !  देवराज इंद्र अपने साथ विमान ले आए थे | आप देख ही रहे हैं कि नरक की दारुण ज्वाला शांत हो गई है | नर्क में पड़े सभी जीव विमानों में बैठ कर स्वर्ग जा रहे हैं | अब आप भी चलें |
       मैंने अपना सब पुण्य दान कर दिया है | मैं  अब स्वर्ग में कैसे जा सकता हूं | मैं अकेला ही नरक में रहूंगा | राजा ने धर्मराज की और देखा |
देवराज यदि भूल करते हों---- 

कर्मो के निर्णायक धर्मराज भूल नहीं कर सकते |

'आप स्वर्ग पधारें ! धर्मराज के मुख पर स्मित रेखा आई | अपने समस्त पुण्यों का दान करके जो महान् पुण्य किया है , उसका फल तो आपको मिलना ही चाहिए | दिव्यलोक आपका है ||
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