श्री कृष्ण के ब्रजसखा/ब्रजभूमि प्रेम का दिव्य धाम है/कृष्ण के बाल सखा

[श्री कृष्ण के ब्रजसखा]

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ब्रजभूमि प्रेम का दिव्य धाम है, वहां निवास करने वाले सभी लोग अपने पूर्व जन्म में अनेक प्रकार के जप, तप, भजन, ध्यान करके परमात्मा के समीप रहने का अधिकार प्राप्त कर चुके थे | इसलिए उन लोगों ने ब्रज की प्रेम भूमि में परम ब्रह्म परमेश्वर श्री कृष्ण को सुहृद रूप में प्राप्त किया , ब्रज के गोप, गोपियों, कोपकुमार, गाय, वन के पशु , पक्षी सभी प्रेम के मूर्तिमान विग्रह हैं |

ब्रज के गोपकुमार तो सख्यभक्ति के अनुपम उदाहरण हैं | 

सुबल, सुभद्र, भद्र, मणिभद्र, वरुथप, तोककृष्ण, श्रीदामा आदि सहस्त्रों व्रजसखाओं के श्री कृष्ण ही जीवन थे , उनके श्री कृष्ण ही प्राण तथा सर्वस्व थे | ये सभी श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए उनके साथ दौड़ते, कूदते, गाते, नाचते और तरह तरह की क्रीडांए करते थे | श्यामसुन्दर गाते तो वे तालियां बजाते, कन्हैया नाचते तो वो प्रशंसा करते, श्री कृष्ण की नजरों से दूर होते ही उनके प्राण तड़पने लगते, श्री कृष्ण का विभिन्न वन पुष्पों से श्रृंगार करते , श्री कृष्ण थक जाते तो उनके चरण दबाते ,

ब्रज शाखाओं का खेलना झगड़ना तथा रूठना सब कुछ मोहन के प्रसन्नता के लिए ही होता था |

श्रीकृष्ण के चेहरे पर क्षोभ की हल्की सी छाया गोपाल बालों से सहन नहीं होती थी | भगवान श्रीकृष्ण दूसरों के लिए चाहे कितने भी ऐश्वर्यशाली रहे हों, किंतु अपने बालोंसखाओं के लिए सदैव प्राणप्रिय, स्नेहमय सखा ही रहे | सखाओं का मान रखना, उनकी हर तरह से सुरक्षा करना श्री कृष्ण का सदा का व्रत रहा है | बहुत दिनों तक कष्ट उठाकर जिन्होंने अपनी इंद्रियों को वश में कर लिया है उन योगियों के लिए भी भगवान श्रीकृष्ण की चरण मिलना दुर्लभ है | वही भगवान अपने ब्रज सखाओं के साथ नित्य क्रीड़ा करते थे |

 एक दिन अघासुर नामक महान दैत्य कंस के भेजने पर ब्रज भूमि में आया,

 उससे श्री कृष्ण और ग्वाल बालों के सुखमय क्रीडायें देखी ना गई, अघासुर पूतना और बकासुर का छोटा भाई था, वह श्री कृष्ण श्रीदामा आदि ग्वाल बालों को देखकर मन ही मन सोचने लगा कि यही मेरे सगे भाई बहन को मारने वाला है | आज मैं इसको और इसके सखाओं को यमलोक में पहुंचा दूंगा | ऐसा निश्चय करके वह दुष्ट अजगर का रूप धारण करके मार्ग में लेट गया उसका अजगर शरीर एक योजन लंबे पर्वत के समान विशाल और मोटा था, उसने गुफा के समान अपना मुंह फाड़ रखा था भगवान श्री कृष्ण के बालसखा इसको वृंदावन का कोई कौतुक समझ उसके मुख में चले गये,

भगवान श्री कृष्ण सबको अभय देने वाले 

जब उन्होंने देखा कि मेरे प्यारे सखा जिनका एकमात्र सहारा मै हूं,वह मृत्यु रूपी असुर के मुख में गये तो भगवान भी उसके मुख्य में चले गए भगवान श्री कृष्ण नें उसके पेट में अपने शरीर को इतना बढाया कि वह दुष्ट दैत्य मृत्यु का ग्रास बन गया, और अपनी शाखाओं के साथ भगवान सहज ही बाहर निकल आए | इसी प्रकार व्योमासुर जब गोपाल बाल बनकर भगवान श्री कृष्ण के बाल दिखाओ को गुफा में बंद करने लगा तब उन्होंने घूसों और थप्पड़ों से उसका अंत कर दिया,

श्याम सुंदर ने अपने इन शाखाओं के लिए दावाग्नि का पान किया, 

कालिया नाग के विष से दूषित यमुना जल को शुद्ध करने के लिए उन्होंने कालिय के गर्व को दूर करके वहां से अन्यत्र भेजा | भगवान श्री कृष्ण लोक दृष्टि में मथुरा भले ही चले गए,  किंतु अपने गोप शाखाओं के लिए तो उन्होंने वृंदावन का कभी त्याग ही नहीं किया |
 शास्त्र कहता है -

वृन्दावनं परित्यज्य पदमेकं न गच्छति |

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