F पतिव्रता नारी के गुण और पतिव्रत धर्म की महिमा/पतिव्रता नारी के गुण धर्म - bhagwat kathanak
पतिव्रता नारी के गुण और पतिव्रत धर्म की महिमा/पतिव्रता नारी के गुण धर्म

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पतिव्रता नारी के गुण और पतिव्रत धर्म की महिमा/पतिव्रता नारी के गुण धर्म

पतिव्रता नारी के गुण और पतिव्रत धर्म की महिमा/पतिव्रता नारी के गुण धर्म

[पतिव्रता नारी के गुण धर्म]

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पुण्या स्त्री कथ्यते लोके या स्यात् पतिपरायणा |
युवतीनां पृथक्तीर्थं विना भर्तुर्द्विजोत्तम ||

पद्मपुराण भूमि खंड-४१/११

जो स्त्री पति परायणता होती है, वह संसार में पुण्यमयी कहलाती है, युवतियों के लिए पति के सिवा दूसरा कोई ऐसा तीर्थ नहीं है जो इस लोक में सुखद और परलोक में स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करने वाला हो |
साधुश्रेष्ठ !  स्वामी के दाहिने चरण को प्रयाग समझिए और बायें को पुष्कर | जो स्त्री ऐसा मानती है तथा इसी भावना के अनुसार पति के चरणोंदक से स्नान करती है, उसे उन तीर्थों में स्नान करने का पुण्य प्राप्त होता है | इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि स्त्रियों के लिए पति के चरणोंदक का अभिषेक प्रयाग और पुष्कर तीर्थ में स्नान करने के समान है | पति समस्त तीर्थों के समान है, पति संपूर्ण धर्मों का स्वरूप है | यज्ञ की दीक्षा लेने वाले पुरुष को, यज्ञों के अनुष्ठान में जो पुण्य प्राप्त होता है, वही पूण्य साध्वी स्त्री अपने पति की पूजा करने से तत्काल प्राप्त कर लेती है |
नारीणां च सदा तीर्थं भर्ता शास्त्रेषु पठ्यते |
तमेवावाहयेन्नित्यं वाचा कायेन कर्मभिः ||

पद्मपुराण भूमि खंड-४१/६२

शास्त्रों का वचन है कि पति ही सदा नारियों के लिए तीर्थ है, इसीलिए स्त्री को उचित है कि वह सच्चे भाव से पति सेवा में प्रवृत्त होकर प्रतिदिन मनवाणी शरीर और क्रिया द्वारा पति का ही आवाहन करें और सदा पति का ही पूजन करे| पति स्त्री का दक्षिण अंग है, उसका वाम पार्श्व ही पत्नी ने के लिए महान तीर्थ है | गृहस्थ नारी पति के वाम भाग में बैठकर जो दान पुण्य करती है, उसका बहुत बड़ा फल बताया गया है | काशी, गंगा, पुष्कर तीर्थ, द्वारकापुरी, उज्जैन तथा केदार नाम से प्रसिद्ध महादेव जी के तीर्थ में स्नान करने से भी वैसा फल नहीं मिल सकता |

यदि स्त्री अपने पति को साथ लिए बिना ही कोई यज्ञ करती है तो उसे उसका फल नहीं मिलता | 

पतिव्रता स्त्री उत्तम सुख, पुत्रका सौभाग्य, स्नान,   पान, वस्त्र, आभूषण, सौभाग्य, रूप, तेज, फल, यश, कीर्ति और उत्तम गुण प्राप्त करती है |पति की प्रसन्नता से उसे सब कुछ मिल जाता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है | जो स्त्री पति के रहते हुए उसकी सेवा छोड़कर दूसरे किसी धर्म का अनुष्ठान करती है, उसका वह कार्य निष्फल होता है तथा लोक में वह व्यभिचारणी कही जाती है | नारियों का यौवन, रूप और जन्म सब कुछ पति के लिए होते हैं | इस भूमंडल में नारी की प्रत्येक वस्तु उसकी पति की आवश्यकता पूर्ति का ही साधन है | जब स्त्री पति हीन हो जाती है उसे भूतल पर सुख, रूप, यश, कीर्ति और पुत्र कहां मिलते हैं - वह तो संसार में परम दुर्भाग्य और महान दुख भोगती है |

पाप का भोग ही उसके हिस्से में पड़ता है, 

उसे सदा दुखमय आचार का पालन करना पड़ता है, पति के संतुष्ट होने पर समस्त देवता स्त्री से संतुष्ट रहते हैं तथा ऋषि और मनुष्य भी प्रसन्न रहते हैं |राजन- पति ही स्त्री का स्वामी, पति ही गुरु, पति ही देवताओं सहित उसका इष्टदेव और पति ही तीर्थ एवं पुण्य है |

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