"नाम जप की महिमा"
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श्री जगदानंद जी महाराज |
क्रोध की स्थिति भी शांत हो जाएगी।
अर्थात अपने आंतरिक प्रवृत्ति को ही सुधारना हो तो बाहर भागने की जरूरत नहीं है। केवल नाम जप में लग जाओ अपने भीतर की सारी बुरी आदतें अपने आप निकलकर आ जाएंगीं।अंतः करण परम शुद्ध होकर हरि चरणों में लग जाएगा। नाम जप से अंतःकरण के संसोधन का ही उपाय बताते हैं - किसी की बुरी आदत होती है कि दूसरों की बढ़ाई को सुन नहीं सकते हैं।दूसरों की बढ़ाई सुनते ही उनका अंतः करण जलने लगता है।
यह बहुत ही घातक प्रवृत्ती है। ऐसा करने से अपनी ही हानि ज्यादा होती है ह्रदय जलने लगता है रोग घेर लेते हैं अतः दूसरों को मारने से पहले अपना ही बुरा करते हैं इस घातक आदत से छूटने का सर्वोत्तम उपाय है- नाम जप। सहस्रनाम का नियमित पाठ करें तो ये बुरी आदतें स्वतः छूट जाएंगी। ह्रदय पवित्र होने लगेगा। नाम में रुचि बढ़ेगी। संत सेवा की ओर प्रवृत्ति होगी। माता-पिता और आदरणीय बड़े लोगों में श्रद्धा होगी। यह सब सद्गुण नाम जप से ही आएंगे। संतों का वचन है-
सब सों हित निष्काम मत श्रीवृंदावन विश्राम।
राधावल्लभलाल को ह्रदय ध्यान मुख नाम।।
जिस की प्रवृत्ति दूसरों के हित में हो गई है, जो पर निंदा चुगली, पर चर्चा से मुक्त होकर हरी नाम जप में लग गया है। अपने इष्ट देव की भक्ति को ही जीवन का सार समझ लिया है तथा शरीर से परसेवा धर्म को अपना लिया है तो उसका कल्याण ही कल्याण है। युगल सरकार श्री राधा मधुर बिहारी जी के इन नामों के पाठ से मन में उत्तम विचारों का उदय होगा। सेवा धर्म से कभी भी पग पीछे नहीं हटेंगे। सुख शांति का चरम धन भगवत् प्रेम अपने आप आ जाएगा। चेतन्न चरितामृत में कहा भी है-*नामें रुचि जीवे दया वैष्णव सेवन। याहीते अपर धर्म नहीं सनातन। *
नाम जप में रुचि बढ़ जाए तो जगत की रुचि घटने लगती हैं दोनों की वृद्धि एक साथ नहीं होती है। एक बढ़ने लग जाय तो दूसरी घट जाती है यह संसार का स्वभाव है। नाम जप में रूचि बढ़ने से संसार से माया- माेह घट जाएगा हरि दर्शन की इच्छा बढ़ने लगेगी। भगवान् के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी मन नहीं लगेगा। भगवान् के बिना रात-दिन चैन नहीं पड़ेगी।दुर्गुणों से मन अपने आप ही दूर हो जाएगा। इष्टदेव और पूज्य जन, गुरु-संत जनों के प्रति आदर श्रद्धा भाव अपने आप ही जीवन ने लगेगा।जीभ को तो हरी नाम का ही स्वाद लग जाएगा
उसी के आस्वादन में आनंद की अनुभूति होगी यह है नाम जप कि चरमोत्कर्ष अवस्था।श्री गोपाल सहस्त्रनाम के सरस वर्णन एवं उनकी महिमा और फलश्रुत वर्णन के पश्चात् मधुर विलास के रचयिता श्री 'मित' जी अपनी हार्दिक भावना, निष्ठा और अवस्था की प्राप्ति के लिये श्री शिव जी के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं। इस तरह से जो साधक अपने सारे दूगुणों को निकालकर श्रद्धा और भक्ति के साथ नाम जप करते हुये श्रीहरि की राह निहारने लगता है, अन्तः करुणा से आंखों में आंसू भर जाते हैं, नित्य दृष्टि प्रभु पर ही बनी रहती है।