एक चने बेचने वाले भक्त का दृष्टांत
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देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज |
भगत जी को दे दिए भगत जी ने दो रूप में देखा
एक तो भगवान के भक्त हैं, दूसरा चलो ठीक है अतिथि देवो भव ,तो उन्होंने खोटे सिक्के के बदले उनको छोले दे दिए | पूरी मार्केट में जहां खोटा सिक्का नहीं चल रहा था वहां भगत जी की दुकान पर वह चल गया , अब तो संत जी कहीं जाए ना और जब भूख लगे तो वह खोटा सिक्का लें और उस व्यक्ति के यहां चले आए और वह भी बिना सोचे अपना छोले उनको दे दे खोटा सिक्का ले ले | मार्केट में यह बात फैल गई कि भाई देखो वह भगत ऐसा है वह खोटे सिक्के चला रहा है तो ऐसे कैसे काम चलेगा | सब उसकी निंदा करने लगे धीरे-धीरे उनका जितना भी जमा पूंजी थी सब समाप्त हो गई |एक दिन माला करके उठे
भगत जी ने, अपनी पत्नी से पूंछा छोले तैयार हो गए ,वह बोली कहां तैयार हो गए महाराज, ना नमक है , ना मिर्च है , ना तेल है कुछ नहीं है |बाजार गई थी तो किसी ने उधार नहीं दिया बड़ा गड़बड़ हो गया | भगत जी बोले इसमें उदास होने की वाली क्या बात है जो भगवान की इच्छा तुलसी दल का भोग लगाओ भगवान को, वही हम भी पाएंगे और तुम भी पा लेना |उसी समय आकाशवाणी हुई ये भगत जी
क्या तुमको पता नहीं था कि वह खोटा सिक्का है तुमने खोटा सिक्का चलाए क्यों , कहीं तुमने गलती से तो अच्छे सिक्के समझकर खोटे सिक्के नहीं ले लिये हैं ? भगत जी ने कहा महाराज मुझे मालूम था कि वह खोटा सिक्का है जानबूझकर चलाया | बोले क्यों चलाया तुमने ? बोले इसलिए चलाया मुझे तो पता था कि आपके यहां भी खोटे सिक्के नहीं चलते हैं ,मैं तो खोटा सिक्का हूं |जब मैं खोटा सिक्का को नहीं चलाऊंगा तो फिर मैं आपके यहां कैसे चल पाऊंगा |
इसलिए मैंने वो खोटा सिक्का चला दिया क्या पता आप की भी नजर हम पर हो जाए हम भी खोटे सिक्के से खरे हो जाएं, भगवान ने कहा भगत तुम धन्य हो जाओ तुम जो चाहते हो तुम को प्राप्त होगा |सच मायने में हम सब भी तो खोटे ही सिक्के हैं पर जब ठाकुर कृपा कर देते हैं तो उनकी कृपा से हम सब लोग खरे हो जाते हैं और वह हमको स्वीकार कर लेते हैं |