श्री उदाराम जी का जन्म वैस्य कुल में हुआ था आप परम भगवत भक्त और संत सेवी थे आपकी पत्नी भी परम भागवती और पति परायणता थी , एक पुत्र के जन्म के बाद आप दंपति ने निश्चय किया कि अब पितृ ऋण से उऋण होने के लिए संतान हो गई है,
अतः समय भगवत भजन और संत सेवा में ही बिताना चाहिए
यह निश्चय कर पति पत्नी भगवत भजन और साधु सेवा में रत हो गए भगवान ने इनकी संत सेवा को प्रकाशित करने के लिए इनकी परीक्षा लेने का विचार किया एक संत का स्वरूप धारण कर इनके पास आए और बोले मेरी पत्नी बीमार है , अतः सेवा करने के लिए कुछ दिन के लिए अपनी पत्नी मुझे दे दो जैसे ही मेरी पत्नी स्वस्थ हो जाएगी मैं वापस कर दूंगा | आप ने स्वीकार कर लिया संत रूप भगवान ने कहा आप इन्हें मेरे आश्रम तक छोड़ आए, इसके लिए भी आप तैयार हो गए और पत्नी को लेकर संत जी के आश्रम पर पहुंच गए |
तब तक रात का अंधेरा हो गया था
अतः संत के आग्रह पर आप भी वहीं रुक गए प्रातः काल आंख खुलने पर देखा कि दोनों पति-पत्नी आश्रम में नहीं बल्कि अपने घर में हैं, तब आपको विश्वास हो गया कि संत रूप में स्वयं भगवान ही हमें संत सेवा का फल देने आए थे , अब आपकी संत सेवा में और निष्ठा बढ़ गई परंतु इनके पत्नी को संत के यहां भेजने के कार्य के कारण संत महिमा और वास्तविकता को न जानने वाले परिवारी जन और जाति बिरादरी के लोग आपसे नाराज हो गए | प्रथम तो उन लोगों ने आप को संत सेवा और वैष्णव से नाता तोड़ने के लिए कहा,
परंतु जब आप ना माने तो राजा के पास झूठी शिकायत कर दी
कि उदाराम के पास बहुत धन है पर तुम्हें राज्य कर नहीं देता , अविवेकी राजा ने भी बिना कोई विचार के सिपाहियों को श्री उदाराम जी को गिरफ्तार कर लाने के लिए भेज दिया , परंतु सिपाही जब आपके घर के पास पहुंचे तो सब के सब अंधे हो गए | यह समाचार जब राजा को पता चला तो उसे अपनी भूल समझ आ गयी तो उसने तत्काल आकर आपके चरणो में अपनी छमा याचना किया और आप के उपदेशों से प्रभावित होकर भगवत भजन और साधु सेवा का व्रत ले लिया |
इसी प्रकार आप के चरित्र से प्रेरणा लेकर अनेक भगवत भक्त वैष्णव बन गए |