सदावृती महाजन अपने सर्वस्व के द्वारा संत सेवा करते थे इनकी सेवा के प्रभाव से अनेक साधु-संत इनके घर पर आते रहते थे | एक बार एक संत आए इनके यहां अत्यंत सुख पाकर सदा इनके घर पर ही रहने लगे, सदावृती जी के पुत्र से उनका प्रेम हो गया नित उसी के साथ खेला करते,
एक दिन उस संत की मति भ्रष्ट हो गई,
खेलते खेलते दोनों गांव के बाहर आ गए वहां संत ने महाजन भक्त के पुत्र को आभूषणों के लोभ में आकर मार डाला और उसके शव को गाड़ कर घर को आ गया | पिता माता बाट देख रहे थे कि बालक कहां जाकर फंस गया, जब बाट देखते देखते चार पहर बीत गए फिर भी लड़का घर ना आया तब भक्त सदाव्रती ने गांव में ढिंढोरा पिटवा आया कि मेरे लड़के को किसने रोक रखा है इस बात को जो कोई शीघ्र बता देगा उसे उस लड़के के सभी आभूषण दे दिए जाएंगे | यह घोषणा सुनकर घटना देखने वाले एक सन्यासी ने आकर कहा कि तुम्हारे पुत्र को इसी संत ने मार कर धरती में गाड़ दिया है , यह कहकर भक्त महाजनको वह स्थान दिखा दिया जहां लड़का गडा था |
भक्त सदावृती ने कहा इस सन्यासी को पकड़ लो इसी ने हमारे लड़के को मारा है |
तब घबडाकर संन्यासी ने कहा- मैंने देखा था इसलिए बता दिया ! मुझे छुड़ा दीजिए मैं बिल्कुल झूठ नहीं बोल रहा हूं , तब महाजन भक्त ने कहा यदि तुम इस संकट से बचना चाहते हो तो साधु का नाम कदापि मत लो और इस गांव को छोड़कर कहीं दूसरी जगह पर चले जाओ | सन्यासी ने यह बात मान ली वह वहां से चला गया | लड़के का अंतिम संस्कार करके सदावृती जी घर आ गए उन्होंने देखा कि संत जी कुछ उदास हो रहे थे ! सन्त हर समय इसी सोच में रहते कि मैंने कैसा घृणित पाप कर डाला मैंने अपने आश्रय दाता के साथ ही विश्वासघात किया और और उन्हें असीम दुख में निमग्न कर दिया |
मेरे जीवन को धिक्कार है मैं तो महापातकी हूं |
मेरा प्रायश्चित हो ही क्या सकता है ? अतिशय आत्मग्लानि एवं पश्चाताप के कारण संत अत्यंत संकोच करने लगे , इनके इस परिवर्तन एवं संकोच से महाजन अपने दुख को भुलाकर संत के संकोच को दूर करने का उपाय सोच ही रहे थे कि उनके मन का भाव जानकर उनकी स्त्री बोल उठी कि इन्हें अपनी कन्या देकर आदर सहित घर में रखिए | सदावृती जी ने अपनी स्त्री के कथनानुसार संत जी को बुलाकर उनसे प्रार्थना की कि आप कृपया मेरे हृदय का दुख मिट जाए केवल इसीलिए मेरी पुत्री से विवाह कीजिए और जब तक मेरा जीवन है आप मेरे साथ रहकर प्रेम का निर्वाह कीजिए |
ऐसा कह कर संत के साथ बेटी का विवाह कर दिया |
भक्त सदावृती जी के पुत्र की मृत्यु की बात सुनकर अथवा भगवद आदेश से एक दिन उनके श्री गुरुदेव जी घर पर पधारे इन्होंने ही महाजन भक्त को संत सेवा की महिमा बताई थी और सेवा करने की आज्ञा दी थी | गुरुदेव ने सदाव्रती से कुशल पूछते हुए कहा कि बालक कहां है उन्होंने उत्तर दिया कि वह तो भगवान को प्राप्त हो गया है |यह सुनकर गुरुदेव ने कहा प्रभु ने तुम्हारी परीक्षा ली है तुम्हारा पुत्र मरा नहीं इसी से प्रभु ने मुझे तुम्हारे पास आने की आज्ञा दी है ,
जहां उसके शरीर का दाह संस्कार हुआ है चलकर वह स्थान हमें दिखाओ ?
संत शिरोमणि गुरुदेव वहां गए और उन्होंने भगवान का ध्यान किया उसी क्षण बालक जीवित होकर आ गया , इसी प्रकार भगवान ने संत वेष निष्ठा के माध्यम से भक्तों की परीक्षा लेकर उसकी कीर्ति का विस्तार किया |
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