व्यासशिष्यगण का इतिहास
History of vyasshishyagan
व्यासशिष्यगण युगानुसार मनुष्योंकी आयु, शक्ति और बुद्धि क्षीण हो जाती है, इससे ब्रह्मवेत्ता ऋषिगण अपने हृदयदेशमें स्थित परमात्माकी प्रेरणासे वेदोंका विभाजन कर देते हैं। इस वैवस्वत मन्वन्तरमें भी ब्रह्मा-शंकर आदि देवाधिपतियोंकी प्रार्थनासे अखिल विश्वके जीवनदाता भगवान्ने धर्मकी रक्षाके लिये महर्षि पराशरद्वारा सत्यवतीके गर्भसे अपने कलांशस्वरूप व्यासके रूपमें अवतार ग्रहण किया है। उन्होंने ही वर्तमान युगमें वेदके चार विभाग किये हैं। जैसे मणियोंके समूहमेंसे विभिन्न जातिकी मणियाँ छाँटकर अलग-अलग कर दी जाती हैं। वैसे ही भगवान् वेदव्यासने मन्त्र-समुदायोंमेंसे भिन्न-भिन्न प्रकरणोंके अनुसार मन्त्रोंका संग्रह करके उनसे ऋक्, यजुः, साम और अथर्व-ये चार संहिताएँ बनायीं और अपने चार शिष्योंको बुलाकर प्रत्येकको एकएक संहिताकी शिक्षा दी। उन्होंने 'बवृच' नाम की पहली ऋक्-संहिताको पैलको, 'निगद' नामकी दूसरी यजुःसंहिता वैशम्पायनको, सामश्रुतियोंकी 'छन्दोगसंहिता' जैमिनिको और सुमन्तुको 'अथर्वाङ्गिरससंहिता' का अध्ययन कराया। समस्त पुराणोंका सूतजीको एवं श्रीमद्भागवतका श्रीशुकदेवजीको अध्ययन कराया। आगे चलकर इन शिष्योंके बहुतसे शिष्य-प्रशिष्य हुए।
व्यासशिष्यगण का इतिहास
History of vyasshishyagan