संपूर्ण रामकथा हिंदी भाग-10
संपूर्ण रामकथा हिंदी,
ram katha in hindi written
हनुमान जी ने एक शब्द का प्रयोग किया----
राम दूत मैं मातु जानकी
अतिशय प्रिय करुणानिधान की |
मैं उस करुणानिधान की शपथ खाता हूं मां मैं राम जी का दूत हूं | पर अवध के रामायणी कहते हैं कि करुणानिधान शब्द श्री जानकी जी को बडा प्रिय था क्योंकि जब राम जी का प्रथम दर्शन हुआ वह भगवती पार्वती के यहां यह मांगने गई-अयोध्या का राजकुमार हमें दूल्हा के रूप में मिल जाए, तो भगवती मां पार्वती ने आशीर्वाद देते हुए यही कहा--
बन जाहि राजो मिलहिं सोवर सहज सुंदर सांवरो
करुणा निधान सुजान सील सनेह जानत रावरो |
वह करुणानिधान आपके स्नेह को जानते हैं तो यह शब्द मां पार्वती का दिया हुआ है, कि राम जी करुणानिधान है और आज हनुमान जी ने कहा मां मैं उसी करुणानिधान की कसम खाकर कहता हूं मैं राम जी का दूत हूं |राम जी करुणानिधान कैसे बनते हैं ? हमारे आचार्य कहते हैं कि भगवान के हृदय में करुणा जगाने का कार्य मां जानकी ही करती हैं, तो जब तक करुणामई जानकी जी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पर नहीं जाएंगी तब तक बाल्मीकि रामायण - सीता चरित्र की रचना संभव नहीं है |
रामजी मन वचन कर्म तीनों से प्रयास किया लेकिन जानकी जी के चरित्र की रचना नहीं हो पाई , तब राम जी ने निर्णय लिया अपनी जानकी को मुझे स्वयं महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पर भेजना पड़ेगा |
जब तक स्वयं भगवती भास्वती परांबा जगदीश्वरी वह करुणामई जानकी जी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पर नहीं जाएंगी तब तक जानकी चरित्र को समझना संभव ही नहीं है |
जानकी जी गर्भवती हैं राम जी राजा हैं, अयोध्या के सम्राट हैं, कहा जाता है कि गर्भवती स्त्रियों की इच्छा पूछना पति का धर्म है, महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है रामजी ने पूछां---
किमिच्छसि वरारोहे कामः किं क्रियतां तव |
हे सुंदर मुख वाली जानकी तुम्हारी कोई इच्छा है, तो मां जानकी ने कहा हां आर्यपुत्र एक इच्छा है | बाल्मीकि रामायण में राम जी के आर्यपुत्र संबोधन करती हैं |मां जानकी बोली आर्यपुत्र एक इच्छा है मैं इस गर्भावस्था में किसी संत ऋषि के आश्रम पर कुछ समय गुजारती तो मेरे बालक पर अच्छे प्रभाव पड़ते , मैं तपोवन में रहती, वन में रहती, किसी महात्मा ऋषि के आश्रम पर रहती देखिए यह बड़ा आवश्यक है |
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और इसके बहुत से प्रमाण हैं- अभिमन्यु उन्होंने चक्रव्यूह का भेदन मां के गर्भ में ही सीख लिया, अष्टावक्र वेद वेदांत में अपने मां के गर्भ में ही पारंगत हो गए, पिताजी एक ऋचा का उच्चारण कर रहे थे अशुद्ध हो गया तो गर्भ के भीतर से ही बेटे ने डांट दिया यह गलत हो गया |
बाप ने कहा तू भीतर है तो गलती देख रहा है तो बाहर आकर के तू केवल मेरी अशुद्धि ही देखेगा, अरे तू इतना टेढ़ा है तो जा तू आठ जगह से और टेढा हो जा, तब वह अष्टावक्र हो गए लेकिन लेकर जब महाराज जनक के पास शास्त्रार्थ करने गए तो लोग हंस पड़े |
तब एक प्रश्न पूछा उन्होंने किस पर हंस रहे हो मुझ पर कि मुझे बनाने वाले पर क्योंकि मैंने खुद को नहीं बनाया और जिसने बनाया है मुझे उस पर हंसने का अधिकार तुम्हारा नहीं है |
महाराज जनक के यहां प्रवेश नहीं मिल रहा था दरवाजे पर महाराज जनक से उन्होंने पूछा महाराज आपके यहां शरीर देखकर के योग्यता आकीं जाती है ते उसकी वाणी सुनकर क्या आंका जाता है |
ऐसे महापुरुष जिन्होंने अपने मां के गर्भ में ही सब कुछ सीख लिया था ऐसे तमाम बालकों की कथाएं मिलती हैं |
तो मां जानकी ने भी इच्छा प्रकट की यदि अपने बालकों को बहुत श्रेष्ठ बनाना हो तो उसकी शिक्षा-दीक्षा तो गर्भ में आते ही शुरु कर देनी चाहिए और उस समय मां जो ग्रहण करती है उसका सीधा प्रभाव बालक पर पड़ता है,
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राम जी प्रसन्न हो गए और आज रामजी आकर जैसे सिंह सिंहासनारूढ हुए वैसे ही चार मित्र, चारों मित्र मुख लटका कर खड़े थे रामजी ने पूछा क्या हुआ उन्होंने कहा- प्रभु श्री जानकी जी के विषय में अयोध्या में अफवाह फैला है |
चत्वरः माने चौराहों पर हमने चर्चा सुनी है लोग कह रहे हैं कि रावण के यहां रह कर आई हुई जानकी जी को श्री राम ने कैसे स्वीकार कर लिया |
एक बात और कहूं बाल्मीकि रामायण में किसी धोबी की चर्चा नहीं आती इसको भी आप समझ ले चौराहों पर हमने सुना है मतलब बात इतनी व्यापक हो गई है कि किसी एक व्यक्ति तक नहीं है यह चर्चा तो आम हो गई है इसका मतलब |
यह सुन रामजी गंभीर हो गए अपने भाइयों को बुलाया विमर्श किया और भगवान श्री राघवेंद्र ने निर्णय लिया श्री जानकी जी को पुनः वन में भेजने का |
ध्यान से पड़ेंगे थोड़ा गंभीर प्रसंग है वाल्मीकि रामायण का , लक्ष्मण को बुलाया है और कहा हे लक्ष्मण इस कार्य को तुम अंजाम दोगे मेरी जानकी को भोर में ले जाकर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम के पास छोड़ कर आओगे |
क्योंकि मेरी जानकी के विषय में आयोध्या में ऐसा अफवाह फैला है, लखन भैया की आंखों में आंसू आ गए,नहीं राघव मैं इस कार्य को नहीं कर पाऊंगा | मेरी आंखों के सामने मेरी मां जानकी ने अग्नि परीक्षा दी थी उस समय कहा था-
लक्ष्मण होउ धरम करनी की |
साक्षी रहना लक्ष्मण
पावक प्रकट करहुं तुम देही |
अग्नि प्रकट करो और इस बात के साक्षी रहना कि मैंने अपने चरित्र की अग्नि परीक्षा दी है, यदि कथा वहां तक पहुंची तो विस्तार से उस कथा को आप पढ़ेंगे वाल्मीकि रामायण के अनुसार रामजी आंख मिला नहीं पाए हैं जानकी जी से, राम जी ने कहा---
प्राप्त चारित्रस्य सन्देहः |
मुझे आपके चरित्र पर संदेह है, आप मुझे वैसी ही ठीक नहीं लग रही है जैसे---
दीपोनेत्रात्पुरश्चैव |
नेत्र के रोगी को दीपक अच्छा नहीं लगता | जानकी जी वैसे तुम मुझे अच्छी नहीं लग रही हो, एक बात आप बताएं यदि नेत्र के रोगी को दीपक अच्छा नहीं लगे तो दोस किसका है दीपक का कि नेत्र के रोग का है |सीता जी को दीपक कहा है और राम जी कहते हैं स्पष्ट है कि रोग तो आज मेरे ही आंखों में हुआ है, क्योंकि आने वाले समय में कोई ऐसा कह ना सके इसलिए अपने चरित्र की परीक्षा दो और श्री जानकी जी ने परीक्षा दी है बाल्मीकि रामायण में आज लक्ष्मण ने विरोध किया है |
प्रभु आप ऐसा कैसे कर सकते हो, राघव भैया अरे मां जानकी ने मेरी आंखों के सामने अपने चरित्र की परीक्षा दी है |
लोगों की अपवाद को सुनकर क्या आप जानकी को वन में भेज देंगे , ध्यान से सुनेंगे राम जी केवल एक पति ही नहीं है राम जी एक राजा भी हैं |
यदि जानकी जी के तरफ से रामजी भरी सभा में यह कह दे कि मेरी जानकी निर्दोष है तो सिर्फ एक पति की दलील हो सकती है एक राजा का न्याय नहीं हो सकता था और भगवान श्री राम कहते हैं मुझे लोकोपासना करनी है |
बात तो बहुत बड़ी है समय कम है हमें राम जन्मोत्सव तक पहुंचना है | महर्षि बाल्मीकि के इन चीजों को भवभूति ने एक वाक्य में कहा है---
आराधनाय लोकस्य मुन्चुतो नास्ति मे व्यथाः |
मैं लोकोपासना कर रहा हूं और हर उपासना में त्याग जरूरी है और राम जी ने तो इतना बड़ा त्याग किया कि अपने प्राणाराध्य अपनी जानकी का ही त्याग कर दिया |इतना बड़ा उपासक आज तक कोई नहीं हुआ, इतना बड़ा लोकोपासक आज तक कोई नहीं हुआ जैस् भगवान श्रीराम हुए |
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अगर आप रामकथा के और भागों को पढ़ना चाहते हैं तो हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं हम आपके लिए उसके आगे की कथा लिखने का प्रयत्न करेंगे |