अन्धकारमें पड़ी हुई मानव-जातिको प्रकाशमें लानेके लिये संत-वचन कभी न बुझनेवाली अमोघ दिव्य ज्योति हैं। दुःख-संकट और पाप-तापसे प्रपीड़ित प्राणियोंके लिये संतवचन सुख-शान्तिके गम्भीर और अगाध समुद्र हैं। कुमार्गपर जाते हुए जीवनको वहाँसे हटाकर सच्चे सन्मार्गपर लानेके लिये संत-वचन परम सुहृद्-बन्धु हैं। प्रबल मोह-सरिताके प्रवाहमें बहते हुए जीवोंके उद्धारके लिये संत-वचन सुखमय सुदृढ़ जहाज हैं। मानवतामें आयी हुई दानवताका दलन करके मानवको मानव ही नहीं, महामानव बना देनेके लिये संत-वचन देवी-शक्ति-सम्पन्न संचालक और आचार्य हैं। अज्ञानके गहरे गढ़े में गिरे हुए चिर-संतप्त जीवोंको सहज ही वहाँसे निकालकर भगवान्के तत्त्व-स्वरूपका अथवा मधुर मिलनका परमानन्द प्रदान करनेके लिये संत-वचन तत्त्वज्ञान और आत्यन्तिक आनन्दके अटूट भण्डार हैं । आपातमधुर विषय-विषसे जर्जरित जीवसमूहको घोरपरिणामी विष-व्याधिसे विमुक्त करके सच्चिदानन्दस्वरूप महान् आरोग्य प्रदान करनेके लिये संत-वचन दिव्य सुधा-महौषध हैं । जन्म-जन्मान्तरोंके संचित भीषण पाप-पादपोंसे पूर्ण महारण्यको तुरंत भस्म कर देनेके लिये संत-वचन उत्तरोत्तर बढ़नेवाला भीषण दावानल हैं। विषयासक्ति और भोग-कामनाके परिणाम स्वरूप नित्यनिरन्तर अशान्तिकी अग्निमें जलते हुए जीवोंको विशुद्ध भगवदनुरागी और भगवत्कामी बनाकर उन्हें भगवत्-मिलनके लिये अभिसारमें नियुक्त कर प्रेमानन्द-रस-सुधा-सागर सच्चिदानन्दविग्रह परमानन्दघन विश्वविमोहन भगवान्की अनन्त सौन्दर्यमाधुर्यमयी परम मधुरतम मुखच्छबिका दर्शन करानेके लिये संत-वचन भगवान्के नित्यसङ्गी प्रेमी पार्षद हैं।
शोकविह्वल, चिन्ता-विषाद-विकल, मानमर्दित, म्लान मुखमण्डल । सत्यानन्दस्वरूप श्रीभगवान्की सच्चिदानन्द-ज्योतिर्मयी किरणों से समुद्भासित और सुप्रसन्न हो उठता है । संत-वाणीसे त्रिविध तापोंकी तीव्र ज्वाला, दुःख-दैन्य-दारिद्रयकी दावाग्नि, मानसिक अशान्तिका आन्तर-आवेग प्रशान्त होकर परम सुखद शीतलता और शाश्वत शान्तिकी अनुभूति होने लगती है । संत-वाणीसे अज्ञानतिमिराच्छन्न अन्तस्तल भगवान् भास्करकी प्रबलतम किरणोंसे छिन्न-भिन्न होकर प्रनष्ट हुए मेघसमूहके सदृश अज्ञानतिमिरके आच्छादनसे मुक्त होकर विशुद्ध अद्वय-भास्करके प्रकाशसे आलोकित हो उठता है और नित्य-निरन्तर विषय-मल-मलिन निम्नप्रदेशमें बहनेवाली विष-दुर्गन्ध-दूषित चित्तवृत्ति-सरिता दिव्य प्रेमामृत-प्रवाहिनी मधुर मन्दाकिनीके स्वरूपमें परिणत होकर सुषमा-सौगन्ध्यवती और अविराम-प्रवाह-प्रतिज्ञाशीला बनी हुई सदा-सर्वदा परम विशुद्ध प्रेमघन श्रीनन्दनन्दनके पावन पादपझोंको विधौत करनेके लिये केवल उन्हींकी ओर बहने लगती है।
संत-वाणीसे क्या नहीं हो सकता ।
संत-वाणी मानवहृदयको तमोऽभिभूत, अवनत और पतित परिस्थितिसे उठाकर सहज ही अत्यन्त समुन्नत और समुज्ज्वल कर देती है। संत-वाणीसे वासना-कामनाके प्रबल आघातोसे चूर्ण-विचूर्ण दुर्बल हृदयमें विद्युच्छक्तिके सदृश नवीनतम नित्य-पराभवरहित भगवदीय बलका संचार हो जाता है । संत-वाणीसे भयशोकविह्वल, चिन्ता-विषाद-विकल, मानमर्दित, म्लान मुखमण्डल । सत्यानन्दस्वरूप श्रीभगवान्की सच्चिदानन्द-ज्योतिर्मयी किरणों से समुद्भासित और सुप्रसन्न हो उठता है । संत-वाणीसे त्रिविध तापोंकी तीव्र ज्वाला, दुःख-दैन्य-दारिद्रयकी दावाग्नि, मानसिक अशान्तिका आन्तर-आवेग प्रशान्त होकर परम सुखद शीतलता और शाश्वत शान्तिकी अनुभूति होने लगती है । संत-वाणीसे अज्ञानतिमिराच्छन्न अन्तस्तल भगवान् भास्करकी प्रबलतम किरणोंसे छिन्न-भिन्न होकर प्रनष्ट हुए मेघसमूहके सदृश अज्ञानतिमिरके आच्छादनसे मुक्त होकर विशुद्ध अद्वय-भास्करके प्रकाशसे आलोकित हो उठता है और नित्य-निरन्तर विषय-मल-मलिन निम्नप्रदेशमें बहनेवाली विष-दुर्गन्ध-दूषित चित्तवृत्ति-सरिता दिव्य प्रेमामृत-प्रवाहिनी मधुर मन्दाकिनीके स्वरूपमें परिणत होकर सुषमा-सौगन्ध्यवती और अविराम-प्रवाह-प्रतिज्ञाशीला बनी हुई सदा-सर्वदा परम विशुद्ध प्रेमघन श्रीनन्दनन्दनके पावन पादपझोंको विधौत करनेके लिये केवल उन्हींकी ओर बहने लगती है।