शरीर नश्वर है,शरीर के असारता का वर्णन आध्यात्मिक प्रवचन sharir nashwar hai

|| अपवित्र शरीर ।।
असारता का अर्थ उदारता का अर्थ उदारता का अर्थ हिंदी में उदारता अर्थ उदारता का असारता का हिंदी अर्थ उदारता की अंग्रेजी उदारता का हिन्दी अर्थ उदारता अर्थ मराठी उदारता अर्थ in hindi नम्रता और उदारता में अंतर 8 अ उतारा 8 अ उतारा माहिती 8 अ उतारा download 8 अ उतारा online आठ अ उतारा ८अ उतारा online आठ अ उतारा online ८अ उतारा 7 अ उतारा आपकी उदारता उतारा इन इंग्लिश उदारता इन हिंदी उदारता इंग्लिश मीनिंग उदारता इंग्लिश उदारता इन english उतारा इन इंग्लिश मीनिंग उदारता इंग्लिश में उदारता मीनिंग इन हिंदी उदारता का इंग्लिश उदारता उद्धरण उदारता = उदारता satta कला satta की नौटंकी उदारता गीत उदारता गाना उतारा गणेश उदारता का गाना उदारता का गीत उदारता की गवरी उदारता के गाने 6 ड उतारा 6 ड उतारा online ६ ड उतारा ८ ड उतारा उदारता चे पानी उतारा है जापानी धार्मिक उदारता उदारता त्रुटि उदारता दिखाओ उदारता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची उदारता निबंध उदारता पर निबंध उदारता पर कविता उदारता पर विचार उदारता पर शायरी उदारता पर हिंदी में निबंध उदारता पर्याय उदारता के पानी उदारता का पर्यायवाची उदारता के पानी नव शक्तिमान वाणी उदारता के पानी कविता उदारता फिल्म उदारता का फल उदारता का फिल्म उदारता का फोटो उदारता की फोटो उदारता बचपन का बालक की उदारता ब्लूटूथ उतारा बालक की उदारता कहानी ब्राउज़र उदारता उदारता का भजन उतारा मराठी उतारा महाराष्ट्र उतारा मूवी उतारा मंत्र उतारा में उतारा मंदिर उतारना मीनिंग इन इंग्लिश उतारा मौत के घाट सितारा मतलब उतारा मराठी माहिती satta राजा सर्रा रोग satta राजा 2018 रघु उदारता की कहानी रघु उदारता कहानी रघु की उदारता रघो उदारता राजा की उदारता रघु उदारता हिंदी कहानी उतारा व त्यावरील प्रश्न उतारा वाचन pdf उतारा वाचन उतारा वाचन मराठी उतारा व त्यावर आधारित प्रश्न सितारा वाला उतारा विषयी माहिती sarra वीडियो मराठी उतारा वाचन pdf 7/12 उतारा वाचन उतारा शता किराना उदारता का शब्दार्थ उदारता है उदारता हिंदी मीनिंग उदारता हिंदी उदार हृदय उदार हिंदी उदार होली उदार हिंदी मीनिंग उदास होने उदार हिंदी शब्द sarra 07 asante 0rg satta 10 asante 1100 sarra 10 rue mandar sarra 16 sarra 163 asante 1987 asante 10t hub asante 1120 sarra 16 tallinn asante 1998 satta 2019 satta 2018 satta 2004 asante 247 asante 2010 asante 2009 asante 2012 sarra 2011 asante 2007 asante 2 north asante 3 rivers asante 3 rivers medical center asante 3 rivers hospital asante 3 rivers grants pass asante 3 rivers lab asante 3 rivers imaging sarra_31 satta 420 asante 40k asante 41 asante 403 b asante 48 asante 555 black oak asante 537 sw union ave asante 5 port ethernet hub sarra 5 sarah 50 5 तारा 5 तारा song download mp3 5 तारा गीत 5 तारा ठेके उत्ते 5 तारा theke utte 5 तारा दिलजीत दोसांज 5 तारा सोंग पंजाबी 5 तारा पंजाबी 5 तारा song download 5 तारा पंजाबी सोंग asante 600 lb life asante 600 pound life asante 691 murphy उतारा 7 12 उतारा 7 satta 786 sarra 75002 sarra 75001 सातबारा उतारा 7 7/12 उतारा नाशिक 712 उतारा 7 उतारा 8 उतारा 8 अ उतारा म्हणजे काय 8 अ खाते उतारा 8 12 उतारा 7 12 उतारा 8 asante 980
शरीर नश्वर है  शरीर के असारता का वर्णन 
मनुष्य शरीर की शास्त्रों में जितनी प्रंशसा की गई है उतनी प्रशसा अन्य किसी शरीर की शास्त्रों में नहीं की गई । मनुष्य शरीर की जितनी निन्दा की गई है । किसी दूसरे शरीर की शास्त्रों में नहीं की गई । भगवान् शंकराचार्य जी कहते हैं -
कोवाऽस्ति घोरो नरक: स्वदेहः । 
घोर नरक क्या है ? ये अपना शरीर ही घोर नरक है ।
स्थानात् बीजात् उपष्टभात् निष्यन्दान्निध्नादपि । 
कायमाधेयशौचत्वात् पण्डिताः हृशुचिं विदुः ।।
यह शरीर माता के गर्भ में निवास करता है इसलिए इसके रहने का जो स्थान है वह गन्दा है । यह माता-पिता के रजवीर्य से उत्पन्न होता है इसका जो उपष्टभक है अर्थात इसकी स्थिति का जो हेतु है वह भी अपवित्र है, क्योंकि मलायत्तं हि जीवनम् ये जो मनुष्य का जीवन है वह तल के अधीन है | शरीर के छिद्रों से जो वस्तुएँ निकलती है वह सभी अपवित्र होती है, दुर्गन्ध पूर्ण होती हैं, प्राणों के निकल जाने पर इसमें अत्यन्त दुर्गन्ध आने लग जाती है । इस शरीर की शुद्धि का शास्त्रों में विधान किया गया है इसलिए पण्डित लोग इसे अपवित्र मानते हैं ।___एक व्यक्ति शौच होकर के आया और कुआँ से जल लेकर उसने प्थ माँजे, पैर धोये और दो-चार कुल्ला करके चल दिया | वहाँ एक धर्मशास्त्र के जानने वाले पण्डित बैठे थे उन्होंने कहा अभी तुम्हारा मुख अशुद्ध है शौच जाने के बाद १६ कुल्ला करने पर मुख शुद्ध होता है । उसने फिर जल लिया १६ कुल्ला करके कहा महाराज अब मुख शुद्ध हो गया । पण्डित जी ने कहा हाँ अब शुद्ध हो गया । उसने १७वीं बार मुख में जल लेकर पण्डित जी के ऊपर कुल्ला कर दिया तब पण्डित जी बड़े बिगड़े और कहा तूने हमे अशुद्ध कर दिया, मेरे ऊपर कुल्ला कर दिया, न बड़ा दुष्ट है । उसने कहा महाराज अबतो मुख शुद्ध था फिर आप - खीझते हैं, पण्डित जी लगता है अभी आपने सन्तों का संग नहीं किया है केवल धर्मशास्त्र ही पढ़े हैं। ये मुख तो १०० कुल्ला करने पर
भी अशुद्ध ही रहेगा । ये उत्तर सुनकर पण्डित जी शान्त हो गये ।
शरीरमिदं मैथुनादेवोदभूतं संवित् व्यपेतं निरय इव मूत्रद्वारेण निष्कान्तमस्थिभिश्चितम् मांसेनानुलिप्तं चर्मावनद्धं विण्मूत्रकफपित्तमज्जादिमिश्चितम् आमयैः परिपूर्णम् ।
यह शरीर स्त्री परूष के संयोग से उत्पन्न होता है और यह चेतना रहित है, यह मूत्रद्वार से निकल कर बाहर आता है तथा हड्डियों से व्याप्त है, यह रक्त मांस से लिपा हुआ है और चमड़ी से मढ़ा हुआ है मल, मूत्र, कफ, पित्त आदि इसमें भरे हुए हैं और यह रोगों का घर है ।
पथि पतितमस्थिदृष्ट्वा स्पर्शभयात् अन्यमार्ग तो याति । 
नो पश्यति निजदेह चास्थि सहस्त्रावतं परितः ।।
रास्ते में हड्डी पड़ी देखकर स्पर्श भय से मनुष्य अन्य मार्ग से जाता है परन्तु अपने इस शरीर को नहीं देखता जो सहस्त्रों हड्डियों से आवृत हैं ।
शिर आक्रम्य पादेन भर्स्यत्यपरान्शुनः ।।
जब शरीर में से प्राण निकल जाते हैं तब कुत्ता उसके सिर पर पैर रखकर दूसरें कुत्ते को पास नहीं आने देता, वह उसे अपनी सम्पत्ति समझ लेता है ।
परिव्राट्कामुकशुनामेकस्यां प्रमदातनौ । 
कणपः कामिनी भक्ष्यमिति तिस्रो विकल्पनाः ।।
एक स्त्री के शरीर को सन्यासी मुर्दा समझता है, उसकी उपेक्षा कर देता है। कोई कामुन जब उसे देखता है तो उसे प्राप्त करने की इच्छा करता है, तथा उसी शरीर को जब कुत्ता देखता है तो वह उसको अपना भोजन समझता है।
सर्वमेव जगत्पूतं यत्र देहो न विद्यते ।
ये सारा जगत् पवित्र है पर जहाँ यह शरीर रहता है वहीं अपवित्रता होती है। यह गन्दे नालों का उद्रम स्थान है। इस शरीर से ही सारे गन्दे नाले निकलते हैं।
हस्तौ दान विवर्जितौ श्रुति पुटौ सारस्वत द्रौहिणौ 
नेत्रे साधु विलोकनेन रहिते पादौ न तीर्थ गतौ । 
अन्यार्जित वित्तपुर्णमुदरं गर्वेण तुंग. शिरः 
रे रे जम्बुक मुञ्च- मुञ्च सहसा नीचं सुनिन्द्यम् वपुः ।।
श्रगाल जब मृतक शरीर को खाने के लिए उद्यत हुआ तो गाली कहती है, कि ये शरीर खाने के योग्य नहीं है क्योंकि यह अपवित्र है। हाथ इसलिए अपवित्र हैं क्योंकि इसने इन हाथों से कभी दान नहीं दिया और कान इसलिए अपवित्र है क्योंकि कानों से कभी भगवान् की कथा नहीं सुनी नेत्र इसलिए अपवित्र हैं क्योंकि इन नेत्रों से कभी साधु-सन्तों का दर्शन नहीं किया । पैरों से कभी इसने तीर्थ यात्रा नहीं की इसलिए पैर अपवित्र हैं । अन्याय की कमाई से इसने पेट भरा है इसलिए इसका पेट अपवित्र है । अहंकार के कारण इसने अपने से बड़ों को कभी सिर नहीं झुकाया इसलिए सिर अपवित्र है । अतः हे जम्बुक इसको शीघ्र ही छोड़ दो ये शरीर बड़ा निन्दनीय और अपवित्र है।
त्वङ्मात्रसारं निसारं कदलीसार सन्निभम् ।।
विचार करने पर शरीर में त्वचा ही सार है । केले के वृक्ष में जैसे कोई सार भाग नहीं होता, केवल छिलका ही छिलका होता है इसी प्रकार शरीर में त्वचा ही सार है, इसी में आकर्षण है, इसी में सुन्दरता प्रतीत होती है । त्वचा को हटाकर देखो तो यह शरीर कैसा भयंकर रक्षा होती है। मालूम होगा, चील कौआ खाने को दौड़ेंगे । इस शरीर की त्वचा से ही--
शरीरं व्रणवत् पश्येत् अन्नन्तु व्रण लेपनम् । 
व्रण सेचनवत् वारि वस्त्रन्तु व्रण पट्टवत् ।।
विचार करें तो शरीर एक फोड़े के समान है । फोड़ा जैसे दुखता रहता है उसी प्रकार ये शरीर भी दुखता रहता है । कभी पेट में दर्द है, कभी सिर में दर्द है तो कभी घुटने में । जैसे फोड़े पर लेप लगाया जाता है उसी प्रकार हलुआ, पूड़ी, दाल भात जो खाया जाता है वहा इसका लेप है । जैसे फोड़े को धोया जाता है वैसे ही इसको भी कई बार स्नान करके धोते हैं । फोड़े को यदि नहीं धोया जाए तो उसमें दुर्गन्ध आने लगती है । इसी प्रकार शरीर को न धोया जाए तो उसमें, से भी दुर्गन्ध आने लगती है । फोड़े को कपड़े से बाँधा जाता है इस शरीर को भी कपड़े से लपेटते हैं इसलिए ये शरीर फोड़े के समान है।
प्रागनात्मैव जग्धं सत आत्मतामेत्यविद्यया ।।
जो अन्न खाया जाता है वही शरीर के रूप में परिणत होकर भगवान् की माया से खाने वाला बन जाता है ।
यत् प्रातः संस्कृतं चान्नं सायं तच्च विनश्यति । 
तदीय रससम्पुष्टे काये का नाम नित्यता ।।
प्रातः काल का बना दाल भात सायंकाल तक दुर्गन्धित हो जाता है, तो उस अन्न से बना हुआ यह शरीर कैसे नित्य हो सकता है ।
क्षतमुत्पन्नं देहे यदि न प्रक्षाल्यते त्रिदिनम् । 
तत्रोत्पतन्ति बहवः कृमयो दुर्गन्धसंकीर्णाः ।।
शरीर में यदि कोई फोड़ा हो जाय और दो तीन दिन ते उसको साफ न किया जाय तो उसमें दुर्गन्ध आने लगती है, कीड़े पड़ जाते हैं। ऐसा यह शरीर है ।
अस्थिस्तम्भं स्त्रायुबद्ध मांस शोणित लेपितम् ।
 चर्मावनद्धं दुर्गन्धं पात्रं मूत्रपुरीषयोः ।।
इस शरीर में हड्डी के खम्बे लगे हुए हैं । पतली-पतली नसों से यह बँधा हुआ है, रक्तमांस का इसपर लेपन किया हुआ है, चर्म से मढ़ा हुआ है । मलमूत्र का ये पात्र है, दुर्गन्ध निकलती रहती है।
कलेवरे मूत्रपुरीषभाविते रमन्ति मूढाः विरमन्ति पण्डिताः ।।
ऐसे शरीर को अज्ञानी लोग मैं और मेरा कहते हैं। बुद्धिमान उससे उदासीन रहते हैं।


0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close