महर्षि गौतम ऋषि की कहानी जीवनी,maharshi gautam rishi

महर्षि गौतम ऋषि की कहानी 
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मत्तेभकुम्भदलने भुवि सन्ति शूराः केचित् प्रचण्डमृगराजवधेऽपि दक्षाः।
किन्तु ब्रवीमि बलिनां पुरतः प्रसह्य कन्दर्पदर्पदलने विरला मनुष्याः॥
महर्षि गौतम सप्तर्षियोंमें एक ऋषि हैं। कहीं-कहीं पुराणों में ऐसी कथा मिलती है कि महर्षि अन्धतमा जन्मके अन्धे थे, उनपर स्वर्गकी कामधेनु प्रसन्न हो गयी और उस गौने इनका तम हर लिया। ये देखने लगे। तबसे इनका नाम गौतम पड़ गया। ये ब्रह्माजीकी मानसी सृष्टिके हैं। पुराणान्तरों में ऐसी कथा आती है कि सर्वप्रथम ब्रह्माजीकी इच्छा एक स्त्री बनानेकी हुई, उन्होंने सब जगहसे सौन्दर्य इकट्ठा करके एक अभूतपूर्व  स्त्री बनायी। उसके नखसे शिखतक सर्वत्र सौन्दर्य-ही-सौन्दर्य भरा था। हल कहते हैं पापको, हलका भाव हल्य और जिसमें पाप न हो उसका नाम अहल्या है; अत: उस निष्पापाका नाम भगवान् ब्रह्माने अहल्या रखा। यह पृथ्वीपर सर्वप्रथम इतनी सुन्दर मानुषी स्त्री हुई कि सब ऋषि, देवता उसकी इच्छा करने लगे। इन्द्रने तो उसके लिये भगवान् ब्रह्मासे याचना भी की, किंतु ब्रह्माजीने उनकी प्रार्थना स्वीकार नहीं की। ऐसी त्रैलोक्यसुन्दरी ललनाको भला कौन नहीं चाहेगा? उन दिनों भगवान् गौतम बड़ी घोर तपस्या कर रहे थे। ब्रह्माजी उनके पास गये और जाकर बोले-'यह अहल्या तुम्हें हम धरोहरके रूपमें दिये जाते हैं, जब हमारी इच्छा होगी ले लेंगे।' ब्रह्माजीकी आज्ञा ऋषिने शिरोधार्य की। अहल्या ऋषिके आश्रमें रहने लगी। वह हर तरहसे ऋषिकी सेवामें तत्पर रहती और ऋषि भी उसका धरोहरकी वस्तुकी भाँति ध्यान रखते, किंतु उनके मनमें कभी किसी प्रकारका बुरा भाव नहीं आया।
महर्षि गौतम ऋषि की कहानी 
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हजारों वर्षके बाद ऋषि स्वयं ही अहल्याको लेकर ब्रह्माजीके यहाँ गये और बोले-'ब्रह्मन्! आप अपनी यह धरोहर ले लें।' ब्रह्माजी इनके इस प्रकारके संयम और पवित्र भावको देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अहल्याका विवाह इन्हींके साथ कर दिया। ऋषि सुखपूर्वक इनके साथ रहने लगे। इनके एक पुत्र भी हुए, जो महर्षि शतानन्दके नामसे विख्यात हैं और जो महाराज जनकके राजपुरोहित थे। इन्द्रने जब अहल्याके साथ अनुचित बर्ताव किया-न करनेयोग्य काम किया, तब इसमें अहल्याकी भी कुछ सम्मति समझकर गौतमजीने उसे पाषाण होनेका शाप दे दिया। तब ब्रह्माजीने भी शाप दिया कि आजसे केवल अहल्यामें ही सम्पूर्ण सौन्दर्य न रहकर पृथ्वीभरकी स्त्रीमात्रमें बँट जायगा। उन्होंने इन्द्रको शाप दिया कि तुम्हारा पद स्थायी न रहेगा, इन्द्र सदा बदलते रहेंगे। इस प्रकार ऋषि गौतम अपनी पत्नीको त्यागकर हिमवान् पर्वतपर तपस्या करने चले गये। जब श्रीरामचन्द्रजीकी चरणधूलिसे अहल्या पुनः पवित्र हो गयी, तब गौतमजीने उसे स्वीकार कर लिया। महर्षि गौतमका चरित्र अलौकिक है। इनके-ऐसा त्याग, वैराग्य और तप कहाँ देखनेको मिलेगा!
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