रामकृष्ण परमहंस के उपदेश व अनमोल विचार
एक बार एक महात्मा नगरमेंसे होकर कहीं जा रहे योगसे उनके पैरसे एक दुष्ट आदमीका अँगूठा कुचल गया। उसने क्रोधित होकर महात्माजीको इतना मारा कि वे बेचारे मूर्छित होकर जमीनपर गिर पड़े। बहुत दवादारू करके उनके चेले बड़ी कठिनतासे उन्हें होशमें लाये । तब तो एक चेलेने महात्मासे पूछा, 'यह कौन आपकी सेवा कर रहा है ?? महात्माने जवाब दिया , जिसने मुझे मारा था।' एक अच्छे और सज्जन संत को मित्र और शत्रुमें भेद बिलकुल नहीं मालूम होता।
यह सच है कि परमात्माका वास व्याघ्रमें भी है, परंतु उसके पास जाना उचित नहीं । उसी प्रकार यह भी ठीक है कि परमात्मा दुष्टसे भी दुष्ट पुरुषमें विद्यमान है, परंतु उसका सङ्ग करना उचित नहीं।
एक गुरुजीने अपने चेलेको उपदेश दिया कि संसारमें छ भी है, वह सब परमेश्वर ही है । भीतरी मतलबको न समझकर चेलेने उसका अर्थ अक्षरशः लगाया । एक समय जब वह मस्त होकर सड़कपर जा रहा था कि सामनेसे एक हाथी आता दिखलायी पड़ा। महावतने चिल्लाकर कहा, 'हट जाओ, हट जाओ ।' परंतु उस लड़केने एक न सुनी । उसने सोचा कि मैं ईश्वर हूँ और हाथी भी ईश्वर है, ईश्वरको ईश्वरसे किस बातका डर । इतनेमें हाथीने सूडसे एक ऐसी चपेट मारी कि वह एक कोनेमें जा गिरा। थोड़ी देर बाद किसी प्रकार सँभलकर उठा और गुरुके पास जाकर उसने सब हाल सुनाया । गुरुजीने हँसकर कहा ठीक है, तुम ईश्वर हो और हाथी भी ईश्वर है, परंतु जो परमात्मा महावतके रूपमें हाथीपर बैठा तुम्हें सावधान कर रहा था, तुमने उसके कहनेको क्यों नहीं माना ?
एक किसान ऊखके खेतमें दिनभर पानी भरता था, किंतु सायंकाल जब देखता, तब उसमें पानीका एक बूंद भी दिखलायी नहीं पड़ता था। सब पानी अनेकों छिद्रोंद्वारा बह जाता था। उसी प्रकार जो भक्त अपने मनमें कीर्ति, सुख, सम्पत्ति, पदवी आदि विषयोंकी चिन्ता करता हुआ ईश्वरकी पूजा करता है, वह परमार्थके मार्गमें कुछ भी उन्नति नहीं कर सकता । उसकी सारी पूजा वासनारूपी बिलोदारा बह जाती है और जन्मभर पूजा करनेके अनन्तर वह देखता है कि जैसी हालत मेरी पहले थी, वैसी ही अब भी है, उन्नति कुछ नहीं हुई है।
हरि जब सिंहका चेहरा अपने मुँहमें लगा लेता है, तब बड़ा भयंकर दिखलायी पड़ता है। उसको लगाये हुए वह अपनी छोटी बहिनके पास जाता है और दहाड़ मारकर उसे डराता है । वह घबराकर एकदम जोरसे चिल्लाने लगती है और सोचती है कि अरे ! अब तो मैं भाग भी नहीं सकती, यह दुष्ट तो मुझे खा ही जायगा। किंतु हरि जब सिंहका चेहरा उतार डालता है, तब बहिन अपने भाईको पहचान लेती है और उसके पास जाकर प्रेमसे कहती है, 'अरे, यह तो मेरा प्यारा भाई है।' यही दशा संसारके मनुष्योंकी भी है। वे मायाके झूठे जालमें पड़कर घबराते और डरते हैं। किंत मायाके जालको काटकर जब वे ब्रह्मके दर्शन कर लेते हैं, तब उनकी घबराहट और उनका डर छूट जाता है। उनका चित्त शान्त हो जाता है। और तब परमात्माको वे कोई हौवा न समझकर अपनी आत्मा ही समझने लगते हैं।
पानी और उसका बुलबुला एक ही चीज है। बुलबुला पानीसे बनता है और पानीमें तैरता है तथा अन्तमें फूटकर पानी में ही मिल जाता है, उसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा एक ही चीज है, भेद केवल इतना ही है कि एक छोटा होनेसे परिमित है और दूसरा अनन्त है; एक परतन्त्र है और दूसरा स्वतन्त्र है।रेलगाड़ीका इंजन वेगके साथ चलकर ठिकानेपर अकेला ही नहीं पहुँचता, बल्कि अपने साथ-साथ बहुत-से डिब्बोंको भी खींच-खींचकर पहुँचा देता है। यही हाल अवतारोंका भी है । पापके बोझसे दबे हुए अनन्त मनुष्योंको वे ईश्वरके पास पहुँचा देते हैं।
राजहंस दूध पी लेता है और पानी छोड़ देता है। दूसरे पक्षी ऐसा नहीं कर सकते। उसी प्रकार साधारण पुरुष मायाके जालमें फँसकर परमात्माको नहीं देख सकते । केवल परमहंस ही मायाको छोड़कर परमात्माके दर्शन पाकर देवीसुखका अनुभव करते हैं। जबतक हरि ( ईश्वर ) का नाम लेते ही आना न बहने लगे, तबतक उपासनाकी आवश्यकता है। ईश्वरका नाम लेते ही जिसकी आखोसे अश्रुधारा बहने लगती है, उसे उपासनाकी आवश्यकता नहीं है।