F गंगासागर मेला का क्रमिक इतिहास,The chronological history of the Gangasagar fair - bhagwat kathanak
गंगासागर मेला का क्रमिक इतिहास,The chronological history of the Gangasagar fair

bhagwat katha sikhe

गंगासागर मेला का क्रमिक इतिहास,The chronological history of the Gangasagar fair

गंगासागर मेला का क्रमिक इतिहास,The chronological history of the Gangasagar fair
गंगासागर मेला का क्रमिक इतिहास 
गंगासागर मेला का क्रमिक इतिहास
गंगासागर दक्षिण-पश्चिम गंगा और ब्रह्मपुत्र के डेल्टा पर अवस्थित एक मौजा है। जो सागर द्वीप के सुदूर दक्षिणी छोर पर स्थित है। प्रतिवर्ष जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। उस समय यहा मकर स्नान का ॥ लगता है। यह तिथि लगभग प्रत्येक 1४-15 जनवरी को पड़ता है।
यह समय पौष संक्रान्ति के नाम से भी जाना जाता है। यह मेला पश्चिम बंग सरकार की देख रेख में सम्पन्न होता है। अतीत में सागर द्वीप अत्यन्त दुर्गम पथ-घाट बिहीन-निजन स्थान था। यहा सधन बन था जिसमें हिसंक जीव-जन्तु रहा करते थे। जंगली जानवरो के भय से तीर्थयात्री सूर्यास्त होते ही अपनी पड़ाव डाल लेते था तब गंगासागर आने-जाने का मार्ग अत्यन्त कठिन और कष्टकारक था। फिरभी पुण्यकामी तीर्थयात्री यहा आया करते। उस समय जलमार्ग के सिवा और कोई पथ ना था। आये दिन नौका दुर्घटना में यात्रियों की सलिल समाधि हुआ करती थी। जलपथ निरापद भी न था। जलदस्यु यात्रियों पर हमला कर लुट लेते। कभी-कभी कलेरा महामारी के चपेट में आकर निरीह तीर्थयात्री प्राण गवाते। कष्ट सहने के बाद भी यात्री गंगासागर पुण्य स्नान को आते।
गंगासागर मेला का क्रमिक इतिहास 
यहाँ प्रतिवर्ष लगभग ४-६ लाख यात्रियों का समागम होता है। तब गंगासागर सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति का मिलन क्षेत्र में परिणत हो जाता है। सम्पूर्ण भारतवर्ष के अलावा नेपाल-भूटान-बंगलादेश, श्रीलंका तथा विश्व के अन्य देश से. भी यात्रियों का समागम होता है। प्राचीन मंदिर समुद्र द्वारा ग्रास करने के बाद प्रतिवर्ष उसी वेदी पर माट्टी, बाँस व बिचाली की सहायता से मंदिर निर्माण होता। शीतकाल के दौरान ज्वार का पानी कम होने के कारण मंदिर का चबुतरा ऊपर आ जाता। उस समय भी यहाँ काफी भीड़ होती थी। मंदिर के चबुतरे के पास एक विशाल वट-वृक्ष था जिसके नीचे श्रीरामचन्द्र और हनुमान जी की मूर्ति स्थापित थी। मंदिर के पीछे सीता कुण्ड था जिसका जल पीकर यात्री तृप्त होते। यह सीता कुण्ड प्रतिदिन खाली होने के बाद आश्चर्यजनक ढंग से भर जाता था। समुद्र द्वारा बार-बार मंदिर ग्रास करने पर सन १९७३ में श्री पंचनामी अखाड़ा हनुमानगटी अयोध्या के महन्थ ने समुन्द्र से दूर वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया। स्थायी मंदिर की देखरेख पंचनामी अखाडा  के द्वारा ही संचालित होता है।
गंगासागर मेला का क्रमिक इतिहास 

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3