श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
नर और नारायण पर्वतों की गोद में समुद्रतल से लगभग 3583 मीटर की ऊंचाई पर बसा मुक्तिप्रद परम पुनीत श्री बद्रीनाथ धाम विद्यमान है। नारायण पर्वत पर श्री बद्रीविशाल का भव्य मन्दिर है और नर पर्वत की गोद में अधिकांश आवासीय भवन बने हुए हैं। दोनों पर्वतों के बीच में तीक्ष्ण धारा वाली हर-हर शब्द का अखण्ड कीर्तन करते-करते दौड़ने वाली पुण्य सलिला अलकनन्दा है, जो भगवान बद्रीविशाल के चरणों को छूकर आगे लम्बी यात्रा पर चल पड़ती है। भगवान बद्रीविशाल के दर्शन से जितना पुण्य प्राप्त होता है, उतना ही पुण्य भगवान की कथा से होता है। भगवान बद्रीविशाल जी की कथा इस प्रकार हैभगवान श्रीमन्नारायण को देवर्षि नारद का उपदेश--
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
भगवान श्रीमन्नाराण ही श्री बद्रीविशाल कहलाये। वे श्री बद्रीविशाल के नाम से क्यों विख्यात हुएऔर उन्होंने बद्रिकाश्रम में निवास करने का निश्चय किस प्रकार किया, इस विषय पर एक पौराणिक कथा है। पुराणों के अनुसार भगवान नारायण का वास क्षीर सागर में है। भगवान शेष शय्या पर विश्राम करते हैं और लक्ष्मी जी उनके चरण दबाती भगवान ही सृष्टि के कर्ता, भर्ता एवं हर्ता हैं। लेकिन एक बार देवर्षि नारद को भगवान के शेष भगवान नारायण से कहा- 'हे भगवन्! आप जगत्पति ईश्वर हैं। आप जो कार्य करेंगे वह संसार के लिए आदर्श होगा और संसार वही कार्य करेगा। आपके इस प्रकार शेष शय्या पर लेटे रहने और लक्ष्मी जी द्वारा पाँव दबाए जाने में सांसारिकता की झलक मिलती है।" नारद जी के इस प्रकार उलाहना देने पर भगवान का मन बहुत दुःखी हुआ और उन्होंने इन सबका त्याग करने का निश्चय कर लिया। उन्होंने बहाने से लक्ष्मी जी को नाग-कन्याओं के पास भेज दिया और स्वयं तप करने के लिए हिमालय की ओर चले गये। हिमालय में वे केदारखण्ड नामक स्थान पर पहुंचे। हिमालय के पाँच खण्ड बताये जाते हैं-1. नेपाल, 2. कूर्मांचल (कुमायू), 3. केदारखण्ड, 4. जालन्धर (कोटा काँगड़ा) और 5. कश्मीर। केदारखण्ड में बद्री क्षेत्र की रमणीय पर्वत श्रेणियाँ, कल-कल बहती भगवती अलकनन्दा तथा पत्र पुष्पों की दिव्य गन्धयुक्त इस सुरम्य स्थान की मनोरम छटा देखकर भगवान नारायण इस पर मुग्ध हो गए और उन्होंने यहाँ पर तप करने का निश्चय किया।
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath