बद्रिकाश्रम-प्राचीन शिवभूमि,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-2

बद्रिकाश्रम-प्राचीन शिवभूमि
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
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श्री बद्रीविशाल मन्दिर में तप्तकुण्ड के बाईं ओर भगवान आदि केदारेश्वर का मन्दिर है। बद्रिकाश्रम में आदिकेदारनाथ का मन्दिर होने के संबंध में पौराणिक कथा है। स्कंध पुराण के केदारखण्ड नामक भाग में बद्रिकाश्रम को शिवजी का प्राचीन निवास कहा गया है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण श्री बद्रीधाम के समीप श्री आदिकेदार के मन्दिर का होना है।
श्री तत्र केदाररूपेण ममलिंग प्रतिष्ठितम्। 
केदार दर्शनात् स्पर्श दर्शनात् भक्तिभावतः।। 
कोटि जन्मकृतंपापं भस्मी भवति तत्क्षणात्। 
कलामात्रेण तिष्ठामि तत्र क्षेत्रे विशेषतः।।
(स्क.पु.व. 2 अ. 13-14 श्लोक)
 जब भगवान नारायण तप करने का निश्चय कर यहाँ आये तो उन्होंने देखा कि यहाँ शिवजी का आधिपत्य है। वे देवी पार्वती के साथ यहाँ निवास करते हैं। भगवान समझ गये कि यह शिवजी का निवास स्थल है और वे सरलता से यह स्थल नहीं देंगे। अतः उन्होंने युक्ति से काम लिया और वे नन्हें शिशु का रूप धारण करके शिवजी के द्वार पर हाथ-पैर मारकर रोने लगे, उस समय शिवजी देवी पार्वती के साथ तप्तकुण्ड में स्नान करने जा रहे थे। जब वे अपने भवन से बाहर निकले तो देखा द्वार पर नन्हा शिशु व्याकुल होकर रो रहा है। नन्हें शिशु को रोता देखकर देवी पार्वती का वात्सल्य जागा, ममतामय दया और प्रेम से परिपूर्ण होकर उन्होंने शिशु को उठा लिया, परन्तु शिवजी समझ गए कि यह बालक साधारण नहीं है। उन्होंने देवी पार्वती को शिशु को गोद में लेने से मना किया। वे उपेक्षा से बोले- "हे देवी! तुम इस बालक को न उठाओ, तुम्हें इन झंझटों से क्या मतलब? यह तो संसार है, कोई हँसता है तो कोई रोता है। यह शिशु जिसका पुत्र होगा वह इसे ले जाएगा। आओ हम चलें, स्नान में विलम्ब हो रहा है।" । परन्तु दया से परिपूर्ण हृदय वाली मां, जननी भला कब मानने वाली थी। उन्होंने बड़ी दीनता से कहा- "हाय ! नाथ ! क्या आपमें थोड़ी भी दया नहीं? देखिए तो, कैसा सुन्दर शिशु है, यह ठण्ड से व्याकुल है। क्या संसार के आश्रयदाता आप इसे आश्रय न देंगे ?" पार्वती के उलाहना से भरे दया मिश्रित स्वर को सुनकर शिवजी हंसकर बोले- "हे देवी ! यह नन्हा शिशु बहुत चमत्कारी है। अगर तुम इसे लोगी तो सब दया भूल जाओगी। यह सब जगह कब्जा कर लेगा। तुम इसके चक्कर में न फंसो।" पर भला पार्वती जी कहाँ मानने वाली थीं। वे बोलीं- 'नहीं भगवन् ! चाहे जो हो मैं तो इस शिशु. को आश्रय अवश्य दूंगी।' उनकी बात सुनकर शिवजी मुस्कराये और सोचने लगे ईश्वर की इच्छा को कौन मिटा सकता है और देवी पार्वती से बोले- 'तुम्हारी मर्जी। उठा लो, किन्तु बाद में तुम्हें पछताना पड़ेगा।'
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श्री बद्रीनाथ जी की कथा
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शिवजी के मना करने पर भी पार्वती जी नहीं मानीं। वे शिशु को अपने भवन में सुला आयीं और शिवजी के साथ स्नान करने तप्तकुण्ड चली गयीं। उनके जाते ही भगवान नारायण ने किवाड़ अन्दर से बन्द कर दिये। जब शिव-पार्वती जी लौटकर आये तो देखा किवाड़ अन्दर से बन्द हैं। उन्होंने किवाड़ खोलने की चेष्टा की, परन्तु किसी प्रकार भी किवाड़ खोलने में असमर्थ होने पर शिवजी मुस्कराते हुए देवी पार्वती से बोले- 'क्यों देवी ! देखी इस नन्हें बालक की चतुराई। शिशु का रूप धारण करके यहाँ आने वाले और कोई नहीं स्वयं भगवान नारायण हैं। अच्छा, अब वे यहीं रहें, हम किसी अन्य स्थान पर रहेंगे।' तब शिव-पार्वती जी ने यहाँ से लगभग ढाई योजन की दूरी पर दूसरे पर्वत को अपना निवास स्थान बनाया। वहाँ शिवजी 'श्रीकेदारनाथ' नाम से विख्यात हुए। उधर बद्रीक्षेत्र में भगवान नारायण योग ध्यान मुद्रा लेकर तपस्या में लीन हो गये। भगवान नारायण जगत के पालनकर्ता हैं। वे देवर्षि नारद को भविष्य के कार्यों के बारे में बताते रहते हैं और देवर्षि नारद उन्हें कार्य रूप देते रहते हैं। लीलाधिपति भगवान नारायण की मायानुसार जब देवर्षि नारद बद्रीक्षेत्र में पहुंचे तो उन्होंने भगवान को तपस्या में लीन देखा। भगवान को तपस्या में रत देखकर नारद जी उनसे पूछते हैं- 'हे त्रिलोकीनाथ ! आप जगतपति ईश्वर है। सम्पूर्ण संसार का पालन करने वाले हैं। हे ध्यान मूर्ति प्रभु ! आप किसका ध्यान करते हैं। इस पर भगवान ने हंसकर कहा- 'वत्स नारद ! इस जगत में आत्मा परमतत्व है। हम उस आत्मस्वरूप अपने आपका ही ध्यान करते हैं। संसार के समस्त प्राणी नियमानुसार अपने कार्यों में लगे रहे इसके लिए हम तप कर रहे हैं। यह सनकर नारद जी अत्यन्त प्रसन्न हुए और वहीं रहकर भगवान नारायण की पूजा अर्चना करने लगे। नारद जी इस क्षेत्र के प्रधान अर्चक हैं।
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श्री बद्रीनाथ जी की कथा
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नारद जी की उपरोक्त कथा ब्रह्मवैवर्त पुराणान्तर्गत आती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के चार खण्ड बताये जाते हैं। ब्रह्म खण्ड, प्रकृति खण्ड, गणेश खण्ड एवं श्रीकृष्ण जन्म खण्ड। ब्रह्मखण्ड के 29वें अध्याय से 30वें अध्याय तक श्री नारायण जी से संबंधित कथा है। नारद पुराण के उत्तरार्द्ध में श्री बद्रीनाथ जी के महात्म्य का मनोरम वर्णन मिलता है। नारद जी भगवान नारायण के प्रधान उपासक या पुजारी हैं। वे भगवान से प्रार्थना करते हैं- 'हे प्रभु ! आप मुझे वह पूजा-पद्धति बताइये, जिससे आपकी प्राप्ति हो सके।' तब भगवान नारायण नारद जी को पंचरात्रि पूजा पद्धति बताते हैं। वाराह पुराण में 66 तथा 68वें अध्यायों में नारद जी को पंचरात्र तन्त्र की प्राप्ति का वर्णन है।
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