हिंदी कहानियां
माधव द्वारा भगवान को रजायी उड़ाना,
एक भक्त थे उनका नाम था माधव -यथा नाम तथा गुण नाम के अनुरूप कार्य उनका बड़े भगवत भक्त थे, भगवान में उनकी इतनी श्रद्धा थी कि परमात्मा माधव से बातें किया करते थे और वह परमात्मा का भक्त माधव भी भगवान की आरती एवं आठोयाम सेवा करता था |एक दिन की बात है सर्दियों के दिन थे और माधव भगवान को रजाई उड़ाना भूल गए और रात में भगवान को ठंड लगी तो उन्होंने पुकारना प्रारंभ किया--
अरे वो माधव उठ मुझे रजाई उड़ा मुझे ठंड लग रही है |
माधव की थोड़ी नींद खुली तो मगर वे आलस के कारण सो गए |
इस बार परमात्मा ने और जोर से आवाज लगाई अरे वो माधव सुन तो मुझे ठंडी लग रही है ! तू तो रजाई ओढ़ के सो रहा है |
अब माधव दास जी उठे उनको तनिक क्रोध सा आ गया और उनके मुख से अनायास ही निकल गया कि हे प्रभु आप भी अंधेर करते हो ,अनंत कोटि ब्रह्मांड का संचालन करते हो और आप के बगल में रजाई रखी हुई है अपने से लेकर ओझ नहीं सकते थे ? मुझे उठाना जरूरी था !
मैं अच्छा खासा नींद में था, जैसे ही माधव की बात भगवान ने सुनी उनके नेत्रों से आंसुओं की धारा बह चली |
कहने लगे माधव तुम सही कह रहे हो जब मैं संसार को चलाता हूं तो रजाई भी ओड़ सकता हूं और माधव रजाई बस नहीं मैं मंदिर का सारा काम स्वयं कर लूंगा तुम्हारी जरूरत नहीं |
अरे तुम्हारा भाव था कि मुझे भी ठंडी लगती होगी तो लगने लगी ! नहीं मेरे लिए सब ऋतुयें बराबर हैं, मेरे ऊपर किसी का प्रभाव नहीं |
लेकिन माधव मैं भाव का भूखा हूं- भक्तों का जो भाव होता है ना उसी प्रकार बन जाता हूं !
माधव भगवान के चरणों में गिर गए क्षमा मांगने लगे प्रभु मुझसे गलती हो गई अब नहीं होगी |परमात्मा प्रसन्न होकर अपने भक्त माधव को गले से लगा लिए |
इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हम अपने सेवा और तप से चाहे जितनी बड़ी स्थिति को प्राप्त कर लें, लेकिन मन में कभी भी हमें अभिमान या आलस्य नहीं लाना चाहिए |