F धार्मिक कहानियां, dharmik kahaniyan- गोपी भाव में स्थित संत का यमुना के रेत में इत्र फेंकना - bhagwat kathanak
धार्मिक कहानियां, dharmik kahaniyan- गोपी भाव में स्थित संत का यमुना के रेत में इत्र फेंकना

bhagwat katha sikhe

धार्मिक कहानियां, dharmik kahaniyan- गोपी भाव में स्थित संत का यमुना के रेत में इत्र फेंकना

धार्मिक कहानियां, dharmik kahaniyan- गोपी भाव में स्थित संत का यमुना के रेत में इत्र फेंकना
धार्मिक कहानियां
dharmik kahaniyan
गोपी भाव में स्थित संत का यमुना के रेत में इत्र फेंकना 
एक रसिक संत थे बड़े भजनानंदी महात्मा ऐसी तपस्या थी उनकी कि उनके दर्शन मात्र से प्राणियों को शांति और प्रसन्नता की प्राप्ति होती थी, वह संत वृंदावन में यमुना के किनारे रहते थे वही तपस्या करते थे |

उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी उन्हीं का एक भक्त जो इत्र का बहुत बड़ा व्यापारी था महात्मा के लिए दुर्लभ इत्र बनवाया जो बहुत कीमती था और कहीं मिलने वाला नहीं था वह भक्त वृंदावन आया और यमुना के किनारे उन महात्मा जी के पास पहुंचा |

वे महात्मा ध्यान समाधि में थे उनके अंदर सुंदर होली का महोत्सव चल रहा था एक तरफ भगवान श्री कृष्ण और उनके शखा हैं दूसरी तरफ राजराजेश्वरी श्री राधा रानी और उनकी सखियां कन्हैया राधा रानी को अकेले पाकर रंग से भरी पिचकारी मारते हैं तो राधा जी की नई चुनर एकदम रंग से रंग गई |

इसी बीच भक्त ने महात्मा जी के हाथों में उस दुर्लभ इत्र की शीशी पकड़ा दी , महात्मा जी ने देखा कि हमारी राधा रानी कमजोर पड़ रही है तो महात्मा जी राधा जी की तरफ से भगवान को भर के रंग पिचकारी मारी और हाथ में वह इत्र की शीशी थी सारा का सारा इत्र रेत में गिर गया और महात्मा तो उस इत्र की शीशी को रंग समझकर भगवान श्रीकृष्ण को डाला था पर वह सब उनके समाधि के लिए लीला थी ,संसारी प्राणी के समझ से परे थी |

उस इत्र के व्यापारी ने जब महात्मा जी का यह कार्य देखा मन में महात्मा के प्रति बुरे भाव आने लगे , कि यह कैसा पागल बाबा है जो इत्र की शीशी का सारा इत्र रेत में गिरा दिया, कुछ नहीं है इसके अंदर भक्ति वक्ति पागल बना रहा है इस संसार को |

वह महात्मा को बिना प्रणाम किए ही लौट आया विचार आया जब यहां तक आया हूं तो बांके बिहारी के दर्शन करता चलूं, आज जैसे ही वह इत्र का व्यापारी बिहारी जी के मंदिर के अंदर पहुंचा उसके आश्चर्य की सीमा न रही, उसके नेत्रों से आंसुओं की धारा बह चली उसने देखा कि जो दुर्लभ इत्र महात्माजी रेत पर फेंका था वही इत्र से बिहारी जी भीगे हुए हैं और पूरा मंदिर परिसर उस इत्र की खुशबू से सना हुआ है |
धार्मिक कहानियां
dharmik kahaniyan
उस भक्त ने बिहारी जी को प्रणाम बाद में किया और पहले भागता भागता यमुना के तट में आया महात्मा जी के चरणों में गिरकर रोने लगा महाराज मुझ पापी को क्षमा करो महात्मा प्रसन्न हो गए उस भक्त को अपना प्रिय शिष्य बना लिया सुंदर ज्ञान का उपदेश दिया जिससे उसका जीवन कृतार्थ हो गया |

इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है जो महापुरुष होते हैं और भले ही हमारी दृष्टि में लगे कि यह अपराध कर रहे हैं , लेकिन याद रखना  वह जो करते हैं अच्छा ही करते हैं उन पर विश्वास हमें बनाए रखना चाहिए |
dharmik kahaniyan

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3