motivation thought hindi mai

motivation hindi thought

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जब हाथी खुल जाता है, तब वह वृक्षों और झाड़ियों को उखाड़ कर फेंक देता है | लेकिन महावत जब उसके मस्तक पर अंकुश की मार देता है तो वह तुरंत ही शांत हो जाता है | यही हाल अनियंत्रित मन का है , जब आप उसे स्वक्षन्द छोड़ देते हैं, तब वह आमोद प्रमोद के निस्सार विचारों में दौड़ने लगता है , लेकिन विवेक रूपी अंकुश की मार से जब आप उसे रोकते हैं , तो वह शांत हो जाता है |
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चित्त को एकाग्र करने के लिए तालियां बजाकर हरि का नाम जोर - जोर से लेना चाहिये | जिस प्रकार वृक्ष के नीचे तालियां बजाने से उस पर बैठे हुए पक्षी इधर-उधर उड़ जाते हैं, उसी प्रकार तालियां बजा बजाकर हरी( ईश्वर ) का नाम लेने से कुत्सित विचार मन ने भाग जाते हैं |
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जब तक हरि ( ईश्वर ) का नाम लेते ही आनंदाश्रु ना बहने लगे, तब तक उपासना की आवश्यकता है | ईश्वर का नाम लेते ही जिसकी आंखों से अश्रु धारा बहने लगती है ,उसे उपासना की आवश्यकता नहीं है |
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एक लकड़हारा जंगल की लकड़ी बेच बेचकर बड़े ही कष्टपूर्वक अपना जीवन यापन कर रहा था |अकस्मात से उस मार्ग से एक सन्यासी जा रहे थे उन्होंने लकड़हारे के दुख को देखकर उससे कहा--  बेटा जंगल में और आगे बढ़ो तुमको लाभ होने वाला है , लकड़हारा आगे बढ़ा, तब एक चंदन का वृक्ष मिला तो उसने बहुत सी लकड़ियां काट ली और उसे ले जाकर बाजार में बेचा इससे उसको बहुत लाभ हुआ | उसने सोचा सन्यासी ने चंदन के वृक्ष का नाम क्यों नहीं लिया, इतना ही क्यों कहा कि और आगे बढ़ो ?  दूसरे दिन जंगल में और आगे बढ़ा तब उसे ताँबे की एक खान मिली , उसने मनमाना ताँबा निकाला और बाजार में बेचकर रुपया प्राप्त किया | तीसरे दिन वह और आगे बढ़ा और उसे चांदी की खान मिली उसने उस खान से मनमानी चाँदी निकाली और बाजार में बेचकर और अधिक रुपया प्राप्त किया | वह और आगें बढ़ा , उसे सोने और हीरे की खानें मिलीं | अन्तमें वह बड़ा धनवान हो गया | ऐसा ही हाल लोगों का है, जिन्हें ज्ञान प्राप्त करने की अभिलाषा होती है | थोड़ी सी सिद्धि प्राप्त करने पर वे रुकते नहीं बढ़ते जाते हैं | अंत में लकड़हारे की तरह ज्ञान का कोष पाकर आध्यात्मिक क्षेत्र में वे धनवान हो जाते हैं |
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एक छोटे पौधे की रक्षा उसके चारों ओर तार बांधकर करनी पड़ती है | नहीं तो बकरे, गाय और छोटे बच्चे उसे नष्ट कर डालते हैं | किंतु जब वह एक बड़ा वृक्ष बन जाता है, तब अनेकों बकरियां और गाय स्वच्छंदता के साथ उसी के नीचे विश्राम करते हैं और उसकी पत्तियां खाती हैं | उसी प्रकार जब तक तुममें थोड़ी भक्ति है, तब तक बुरी संगति और संसार के प्रपंच से उसकी रक्षा करनी चाहिए | लेकिन जब उसमें दृढता आ गई , तब फिर तुम्हारे सामने कुवासनाओं की आने की हिम्मत ना होगी और अनेकों दुर्जन तुम्हारे पवित्र सहवास से सज्जन बन जाएंगे |
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चकमक पत्थर चाहे सैकड़ों वर्ष पानी में पढ़ा रहे पर उससे उसकी अग्नि उत्पादक शक्ति नष्ट नहीं होती , जब आपका जी चाहे तभी उसे लोहे से रगड़िये वह आग उगलने लगेगा | ऐसा ही हाल दृढ़ भक्ति रखने वाले भक्तों का भी है | वे इस संसार के बुरे से बुरे प्राणियों के बीच भले ही रह लें, लेकिन उनकी भक्ति कभी नष्ट नहीं हो सकती | ज्यों ही वे ईश्वर का नाम सुनते हैं, त्यों ही उनका हृदय प्रफुल्लित होने लगता है |
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एक मनुष्य ने कुआं खोदना शुरू किया बीस हाथ खोदने पर जब उसे पानी नहीं मिला, तब उसने उसे छोड़ दिया और दूसरी जगह कुआं खोदने लगा | वहां उसने कुछ अधिक गहराई तक खोदा फिर भी पानी नहीं निकला | उसने फिर तीसरी जगह कुआं खोदना शुरू किया इसको उसने और अधिक गहराई तक खोदा | किंतु यहां भी पानी ना निकला तीनों कुआं की खुदाई सौ हाथ से कुछ हि कम हुई होगी | यदि पहले ही कुएँ को केवल वह पच्चास हाथ खोदता तो उसे पानी अवश्य मिल जाता | यही हाल उन लोगों का है जो बराबर अपनी श्रद्धा बदलते रहते हैं , सफलता प्राप्त करने के लिए सब ओर से चित्त हटाकर केवल एक ही ओर अपनी श्रद्धा लगानी चाहिए और उसकी सफलता पर विश्वास करना चाहिए|
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पानी में पत्थर सैकड़ों वर्ष पढ़ा रहे लेकिन पानी उसके भीतर नहीं हो सकता , इसके विपरीत चिकनी मिट्टी पानी के स्पर्श से हि घुलने लगती है | इसी प्रकार भक्तों का दृढ़ हृदय कठिन से कठिन दुख पड़ने पर भी कभी निराश नहीं होता | लेकिन दुर्बल श्रद्धा रखने वाले पुरुषों का ह्रदय  छोटी-छोटी बातों से हताश होकर घबराने लगता है |
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ईश्वर पर पूर्ण निर्भर रहने वाले का स्वरूप क्या है ?  यह आनंद कि वह दशा है , जिसका अनुभव एक पुरुष दिनभर परिश्रम के पश्चात सायं काल को तकिए के सहारे लेट कर आराम करते समय करता है | चिंताओं और दुखों का रुक जाना ही | ईश्वर पर पूर्ण निर्भर रहने का सच्चा स्वरूप है |
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जिस प्रकार हवा सूखी पत्तियों को इधर-उधर उड़ा ले जाती है | उनको इधर-उधर उड़ने के लिए ना तो अपनी बुद्धि खर्च करने की आवश्यकता पड़ती है और ना परिश्रम ही करना पड़ता है | उसी प्रकार ईश्वर के भक्त ईश्वर की इच्छा से सब काम करते रहते हैं, वे अपनी अकल खर्च नहीं करते और न स्वयं श्रम ही करते |
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बहुतों ने बर्फ का केवल नाम सुना है लेकिन उसे देखा नहीं है | उसी प्रकार बहुत से धर्मोंपदेशों नें  ईश्वर के गुणों को धर्म ग्रंथों में पढ़ा है , लेकिन अपने जीवन में उनका अनुभव नहीं किया | बहुतों ने बर्फ को देखा है लेकिन उसका स्वाद नहीं लिया, उसी प्रकार बहुत से धर्मोंपदेशकों को ईश्वर के तेज की एक बूंद मिल गई है लेकिन उन्होंने उसके तत्व को नहीं समझा | जिन्होंने बर्फ को खाया है वही उसका स्वाद बदला सकते हैं, उसी प्रकार जिन्होंने ईश्वर की संगति का लाभ भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में उठाया है, कभी ईश्वर का सेवक बनकर, कभी मित्र बनकर , कभी भक्त बन कर और कभी एकदम उसी में लीन होकर |वे इतना ही बतला सकते हैं कि परमेश्वर के गुण क्या हैं और उनकी संगति के प्रेम रस को आस्वादन करने में कैसा लगता है |
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