ध्यान में भगवान् तक पहुँचे कैसे?
धर्म के तीन स्तम्भ, यथा- कर्म योग, भक्ति योग( ध्यान योग) तथा ज्ञान योग हैं। इसमें ध्यान योग ही भक्ति का मुख्य आधार है। सद्गुरुदेव जी की कृपा से ध्यान करने की युक्ति मिल जाए और मन में ध्यान करने की योग्यता प्राप्त हो जाए तो भक्ति भी ठीक होती है। तत्पश्चात् भक्ति के द्वारा ज्ञान भी प्राप्त हो जाता है। जबतक ध्यान, चिंतन व मन को एकाग्र करने की युक्ति नहीं मिलती, तबतक मन संसार में भटकता रहता है।
भटकते मन में ध्यान होना संभव नहीं।
यदि धर्म के रास्ते में चिंतन करें और चिंतन करते हुए सत्य को समझने की कोशिश करें तो सत्य रूप से ही जो तत्व परमेश्वर भगवान् अपने अंदर बैठा है, वहांँ तक पहुंँचा जा सकता है। इसका सुख अपने आप में इतना सहज व स्वभाविक है कि एक बार यह परमानन्द मिलने पर पुनः उसका कभी वियोग नहीं होता
* ध्यान करने का पहला रास्ता*
विवेक जागृत करके साधक अपने अंदर अकेला, एकान्त में जागता रहे, तो यही ध्यान का पहला रास्ता है। मन को बारंबार भगवान् में लगाने से स्वतः संसार से वैराग्य हो जायेगा और इसी अभ्यास और वैराग्य से मन स्थिर होता है। सत्य का ज्ञान उपजाकर अपने आप को सही मार्ग पर रखने का यत्न करें।
इन सब सांसारिक सुखों का परिणाम अंत में भयंकर दुःखों में परिणत होना है,
ऐसा समझकर उन भौतिक सुखों से अपने मन को दूर रखने का यत्न करें तथा भाव रखें, यही वैराग्य का स्वरूप है। इस प्रकार विचार करते हुए अपने मन को भौतिक संसार से उठाकर परमात्मा में ही बार-बार लगाने का प्रयास करता रहे। इस प्रकार ध्यान-अभ्यास करने वाला साधक,भक्त ध्यान की उच्चतम अवस्था तथा सीमा को प्राप्त कर सकता है। बार-बार मन को परमात्मा में लगाने का नाम ही अभ्यास है। ध्यान दें, वैराग्य और अभ्यास करने में दूसरों की पराधीनता तो बिल्कुल नहीं है। इसको तप कहा है, क्योंकि तप की क्रिया भी यही है मन को किसी भी प्रकार भगवान् में लगाना। यदि आप ध्यान की विद्या पाना चाहते हो,
तो ध्यान द्वारा भगवान् की भक्ति करनी होगी।
ध्यान द्वारा परमात्मा को पहचानना है और भक्ति द्वारा सारे विश्व में एक आत्मा का साक्षात्कार करना है। इसके लिए अपना ध्यानमय जीवन बनाएँ।।