शेषशायी भगवान विष्णु का ध्यान bhagwan vishnu ka dhyan mantra

शेषशायी भगवान विष्णु का ध्यान 
bhagwan vishnu ka dhyan mantra
शेषशायी भगवान विष्णु का ध्यान   bhagwan vishnu ka dhyan mantra

उस प्रलय कालीन जल में शेष जी के कमल नाल सदृश्य और विशाल विग्रह की शैया पर पुरुषोत्तम भगवान अकेले ही लेटे हुए हैं | शेष जी के दस हजार फण छत्र के समान फैले हुए हैं |

उनके मस्तकों पर किरीट शोभायमान हैं, उनमें जो मणियां जड़ी हुई हैं उनकी कांति से चारों ओर का अंधकार दूर हो गया है |१

वे अपने श्याम शरीर की आभा से मरकत मणि के पर्वत शोभा को लज्जित कर रहे हैं, उनकी कमर का पीत पट पर्वत के प्रांत देश में छाए हुए सायं काल पीले-पीले चमकीले मेघोंकी आभाको मलिन कर रहा है, सिरपर सुशोभित सुवर्णमुकुट सुवर्णमय शिखरोंका मान मर्दन कर रहा है ।

उनकी वनमाला पर्वतके रत्न, जलप्रपात, ओषधि
और पुष्पोंकी शोभाको परास्त कर रही है तथा उनके भुजदण्ड वेणुदण्डका और चरण वृक्षोंका तिरस्कार करते हैं ॥ २ ॥

उनका वह श्रीविग्रह अपने परिमाणसे लंबाई-चौड़ाईमें त्रिलोकीका संग्रह किये हुए है। वह अपनी शोभासे विचित्र एवं दिव्य वस्त्राभूषणोंकी शोभाको सुशोभित करनेवाला होनेपर भी पीताम्बर आदि अपनी वेष-भूषासे सुसजित है ॥३

अपनी-अपनी अभिलाषाकी पूर्तिके लिये भिन्न-भिन्न मार्गोंसे पूजा करनेवाले भक्तजनोंको कृपापूर्वक अपने भक्तवाञ्छाकल्पतरु चरणकमलोंका दर्शन दे रहे हैं, जिनके सुन्दर अंगुलिदल नखचन्द्रकी चन्द्रिकासे अलग-अलग स्पष्ट चमकते रहते हैं ॥ ४ ॥

सुन्दर नासिका, अनुग्रहवर्षी भौंहे, कानों में झिलमिलाते हुए कुण्डलोंकी शोभा, बिम्बाफलके समान लाल-लाल अधरोंकी कान्ति एवं लोकार्तिहारी मुसकानसे युक्त मुखारविन्दके द्वारा वे अपने उपासकोंका सम्मान-अभिनन्दन कर रहे हैं ॥ ५ ॥

वत्स ! उनके नितम्बदेशमें कदम्बकुसुम की केसरके समान पीतवस्त्र और सुवर्णमयी मेखला सुशोभित है तथा वक्षःस्थलमें अमूल्य हार और सुनहरी रेखावाले श्रीवत्सचिह्नकी अपूर्व शोभा हो रही है ॥ ६ ॥

वे अव्यक्तमूल चन्दनवृक्षके समान हैं। महामूल्य केयूर और उत्तम-उत्तम मणियोंसे सुशोभित उनके विशाल भुजदण्ड ही मानो उसकी सहस्रों शाखाएँ हैं और चन्दनके वृक्षोंमें जैसे बड़े-बड़े साँप लिपटे रहते हैं, उसी प्रकार उनके कंधोंको शेषजीके फणोंने लपेट रक्खा है ॥ ७ ॥

वे नागराज अनन्तके बन्धु श्रीनारायण ऐसे जान पड़ते हैं, मानो कोई जलसे घिरे हुए पर्वतराज ही हों। पर्वतपर जैसे अनेकों जीव रहते हैं, उसी प्रकार वे सम्पूर्ण चराचरके आश्रय हैं; शेषजीके फणोंपर जो सहस्रों मुकुट हैं, वे ही मानो उस पर्वतके सुवर्णमण्डित शिखर हैं तथा वक्षःस्थलमें विराजमान कौस्तुभमणि उसके गर्भसे प्रकट हुआ रत्न है ॥ ८॥

प्रभुके गलेमें वेदरूप भौरोंसे गुञ्जायमान अपनी कीर्तिमयी वनमाला विराज रही है। सूर्य, चन्द्र, वायु और अग्नि आदि देवताओंकी भी आपतक पहुँच नहीं है तथा त्रिभुवनमें बेरोक-टोक विचरण करनेवाले सुदर्शनचक्रादि आयुध भी प्रभुके आसपास ही घूमते रहते हैं, उनके लिये भी आप अत्यन्त दुर्लभ हैं ॥ ९ ॥
शेषशायी भगवान विष्णु का ध्यान 
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