विष्णु ध्यान श्लोक संस्कृत हिंदी अर्थ सहित vishnu dhyan shlok sanskrit Hindi lyrics

भगवान् विष्णुका ध्यान 
विष्णु ध्यान श्लोक संस्कृत हिंदी अर्थ सहित vishnu dhyan shlok sanskrit Hindi lyrics
विष्णु ध्यान श्लोक संस्कृत हिंदी अर्थ सहित vishnu dhyan shlok sanskrit Hindi lyrics

प्रसन्नवदनाम्भोज पद्मगर्भारुणेक्षणम् ।
नीलोत्पलदलश्यामं शङ्खचक्रगदाधरम् ॥ १॥ 
लसत्पङ्कजकिअल्कपीतकोशेयवाससम् । 
श्रीवत्सवक्षसं भ्राजत्कौस्तुभामुक्तकन्धरम् ॥ २ ॥
मत्तद्विरेफकलया परीतं वनमालया । 
पराय॑हारवलयकिरीटाङ्गदनूपुरम् ॥३॥ 
काञ्चीगुणोल्लसच्छोणि हृदयाम्भोजनिष्टरम् । 
दर्शनीयतमं शान्तं मनोनयनवर्धनम् ॥ ४॥
अपीच्यदर्शनं शश्वत्सर्वलोकनमस्कृतम् । 
सन्तं वयसि कैशोरे ,त्यानुग्रहकातरम् ॥ ५॥ 
कीर्तन्यतीर्थयशसं पुण्यश्लोकयशस्करम् । 
ध्यायेद्देवं समग्राङ्गं यावन्न च्यवते मनः ॥ ६॥ 
स्थितं व्रजन्तमासीनं शयानं वा गुहाशयम् । 
प्रेक्षणीयेहितं ध्यायेच्छुद्धभावेन चेतसा ॥ ७ 
तस्मिँल्लब्धपदं चित्तं सर्वावयवसंस्थितम् ।
विलक्ष्यैकत्र संयुज्यादङ्गे भगवतो मुनिः ॥ ८

संचिन्तयेद्भगवतश्चरणारविन्दं वज्राङ्कुशध्वजसरोरुहलाञ्छनाढ्यम् । उत्तुङ्गरक्तविलसन्नखचक्रवालज्योत्स्नाभिराहतमहधृदयान्धकारम् ॥९॥ 

यच्छौचनिःसृतसरित्प्रवरोदकेन तीर्थन मूर्त्यधिकृतेन शिवः शिवोऽभूत् ।
ध्यातुर्मन शमलशैलनिसृष्टवजं ध्यायेच्चिरं भगवतश्चरणारविन्दम् ॥१०॥

जानुद्वयं जलजलोचनया जनन्या लक्ष्म्याखिलस्य सुरवन्दितया विधातुः। 
ऊर्वोर्निधाय करपल्लवरोचिषा यत् संलालितं हृदि विभोरभवस्य कुर्यात् ॥११॥

ऊरू सुपर्णभुजयोरधिशोभमानावोजोनिधी अतसिकाकुसुमावभासौ।
व्यालम्बिपीतवरवाससि वर्तमानकाञ्चीकलापपरिरम्भि नितम्बबिम्बम् ॥१२॥ 

नाभिहदं भुवनकोशगुहोदरस्थं यत्रात्मयोनिधिषणाखिललोकपद्मम् । 
व्यूढं हरिन्मणिवृषस्तनयोरमुष्य ध्यायेद् द्वयं विशदहारमयूखगौरम् ॥१३॥

वक्षोऽधिवासमृषभस्य महाविभूतेः पुंसां मनोनयननिर्वृतिमादधानम् ।
कण्ठं च कौस्तुभमणेरधिभूषणार्थ कुर्यान्मनस्यखिललोकनमस्कृतस्य ॥१४॥ 

बाहूंश्च मन्दगिरेः परिवर्तनेन निर्णितबाहुवलयानधिलोकपालान् ।
संचिन्तयेद्दशशतारमसह्यतेजः शङ्ख च तत्करसरोरुहराजहंसम् ॥१५॥ 

कौमोदकी भगवतो दयितां स्मरेत दिग्धामरातिभटशोणितकदमेन । 
मालां मधुव्रतवरूथगिरोपघुष्टां चैत्यस्य तत्त्वममलं मणिमस्य कण्ठे ॥१६॥ 

भृत्यानुकम्पितधियेह गृहीतमूर्तेः संचिन्तयेद्भगवतो वदनारविन्दम् । 
यद्विस्फुरन्मकरकुण्डलवल्गितेन विद्योतितामलकपोलमुदारनासम् ॥१७॥

यच्छ्रीनिकेतमलिभिः परिसेव्यमानं भूत्या स्वया कुटिलकुन्तलवृन्दजुष्टम् । 
मीनद्वयाश्रयमधिक्षिपदब्जनेत्रं ध्यायेन्मनोमयमतन्द्रित उल्लसद्धृ ॥१८॥ 

तस्यावलोकमधिकं कृपयातिघोर तापत्रयोपशमनाय निसृष्टमक्ष्णोः । 
स्निग्धस्मितानुगुणितं विपुलप्रसादं ध्यायेच्चिरं विपुलभावनया गुहायाम् ॥१९॥ 

हासं हरेरवनताखिललोकतीव्र शोकाश्रुसागरविशोषणमत्युदारम् । 
सम्मोहनाय रचितं निजमाययास्य भूमण्डलं मुनिकृते मकरध्वजस्य ॥२०॥

ध्यानायनं प्रहसितं बहुलाधरोष्ठभासारुणायित तनुद्विजकुन्दपङक्ति । 
ध्यायेत्स्वदेहकुहरेऽवसितस्य विष्णोर्भक्त्याऽऽद्रयार्पितमना न पृथग्दिदृक्षेत्॥२१॥

( श्रीमद्भागवत ३ । २८ । १३ )
विष्णु ध्यान श्लोक संस्कृत हिंदी अर्थ सहित 
vishnu dhyan shlok sanskrit Hindi lyrics

भगवान्का मुखकमल आनन्दसे प्रफुल्ल है, नेत्र कमलकोशके समान रतनारे हैं, शरीर नीलकमलदलके समान श्याम है। हाथोंमें शङ्ख, चक्र और गदा (पद्म) धारण किये हैं ॥१॥

कमलकी केसरके समान पीला रेशमी वस्त्र लहरा रहा है, वक्षःस्थलमें श्रीवत्सचिह्न है और गलेमें कौस्तुभमणि झिलमिला रही है ॥ २॥

वनमाला चरणोंतक लटकी हुई है, जिसके चारों ओर भ्रमर सुगन्धसे मतवाले होकर मधुर गुंजार कर रहे हैं। अङ्ग-प्रत्यङ्गमें महामूल्य हार, कङ्कण, किरीट, भुजबन्ध और नूपुर आदि आभूषण विराजमान हैं ॥३॥

कमरमें करधनीकी लड़ियाँ उसकी शोभा बढ़ा रही हैं। भक्तोंके हृदयकमल ही उनके आसन हैं, उनका दर्शनीय श्यामसुन्दर स्वरूप अत्यन्त शान्त एवं मन और नयनोंको आनन्दित करनेवाला है।॥ ४ ॥

उनकी अति सुन्दर किशोर अवस्था है, वे भक्तोंपर कृपा करनेके लिये आतुर हो रहे हैं। बड़ी मनोहर झाँकी है । भगवान् सदा सम्पूर्ण लोकोंसे वन्दित हैं ॥ ५ ॥

उनका पवित्र यश परम कीर्तनीय है और वे राजा बलि आदि परम यशस्वियोंके भी यशको बढ़ानेवाले हैं। इस प्रकार श्रीनारायणदेवका सम्पूर्ण अङ्गोंके सहित तबतक ध्यान करे, जबतक चित्त वहाँसे हटे नहीं ॥६॥

भगवान्की लीलाएँ बड़ी दर्शनीय हैं; अतः अपनी रुचिके अनुसार खड़े हुए, चलते हुए, बैठे हुए, पौढ़े हुए अथवा अन्तर्यामीरूपमें स्थित हुए उनके स्वरूपका विशुद्ध भावयुक्त चित्तसे चिन्तन करे ॥ ७ ॥

इस प्रकार योगी जब यह अच्छी तरह देख ले कि भगवद्विग्रहमें चित्तकी स्थिति हो गयी, तब वह उनके समस्त अङ्गोंमें लगे हुए चित्तको विशेष रूपसे एक-एक अङ्गमें लगावे ॥ ८॥

भगवान्के चरणकमलोंका ध्यान करना चाहिये । वे वज्र, अङ्कश, ध्वजा और कमलके मङ्गलमय चिह्नोंसे युक्त है तथा अपने उभरे हुए लाल-लाल शोभामय नखचन्द्रमण्डलकी चन्द्रिकासे ध्यान करनेवालोंके हृदयके अज्ञानरूप घोर अन्धकारको दूर कर देते हैं ॥ ९॥

इन्हींकी धोवनसे नदियोंमें श्रेष्ठ श्रीगङ्गाजी प्रकट हुई थीं, जिनके पवित्र जलको मस्तकपर धारण करनेके कारण स्वयं मङ्गलरूप श्रीमहादेवजी
और भी अधिक मङ्गलमय हो गये । ये अपना ध्यान करनेवालोंके पापरूप पर्वतोपर छोड़े हुए इन्द्रके वज्रके समान हैं। भगवान्के इन चरण कमलोंका चिरकालतक चिन्तन करे ॥ १०॥

भवभयहारी अजन्मा श्रीहरिकी दोनों पिंडलियों एवं घुटनोंका ध्यान करे, जिनको विश्वविधाता ब्रह्माजीकी माता सुरवन्दिता कमललोचना लक्ष्मीजी अपनी जाँघोंपर रखकर अपने कान्तिमान् कर-किसलयोंकी कान्तिसे लाड़ लड़ाती रहती हैं ॥ ११ ॥

भगवान्की जाँघोंका ध्यान करे, जो अलसीके फूलके समान नीलवर्ण और बलकी निधि हैं तथा गरुड़जीकी पीठपर शोभायमान हैं। भगवान्के नितम्बबिम्बका ध्यान करे, जो एड़ीतक लटके हुए पीताम्बरसे ढका हुआ है और उस पीताम्बरके ऊपर पहनी हुई सुवर्णमयी करधनीकी लड़ियोंको आलिङ्गन कर रहा है ॥१२॥

सम्पूर्ण लोकोंके आश्रयस्थान भगवान्के उदरदेशमें स्थित नाभिसरोवरका ध्यान करे, इसीमेसे ब्रह्माजीका आधारभूत सर्वलोकमय कमल प्रकट हुआ है । फिर प्रभुके श्रेष्ठ मरकतमणिसदृश दोनों स्तनोंका चिन्तन करे, जो वक्षःस्थलपर पड़े हुए शुभ्र हारोंकी किरणोंसे गौरवर्ण जान पड़ते हैं ॥ १३ ॥

इसके पश्चात् पुरुषोत्तम भगवान्के वक्षःस्थलका ध्यान करे, जो महालक्ष्मीका निवासस्थान और लोगोंके मन एवं नेत्रोंको आनन्द देनेवाला है। फिर सम्पूर्ण लोकोंके वन्दनीय भगवान्के गलेका चिन्तन करे, जो मानो कौस्तुभमणिको भी सुशोभित करनेके लिये ही उसे धारण करता है ॥ १४ ।।

समस्त लोकपालोंकी आश्रयभूता भगवान्की चारों भुजाओंका ध्यान करे, जिनमें धारण किये हुए कङ्कणादि आभूषण समुद्रमन्थनके समय मन्दराचलकी रगड़से और भी उजले हो गये हैं। इसी प्रकार जिसके तेजको सहन नहीं किया जा सकता, उस सहस्र धारोंवाले सुदर्शनचक्रका तथा उनके कर-कमलमें राजहंसके समान विराजमान शङ्कका चिन्तन करे ॥ १५ ॥

फिर विपक्षी वीरोंके रुधिरसे सनी हुई प्रभुकी प्यारी कौमोदकी गदाका, भौंरोंके शब्दसे गुंजायमान वनमालाका और उनके कण्ठमें सुशोभित सम्पूर्ण जीवोंके निर्मलतत्त्वरूप कौस्तुभमणिका ध्यान करे* ॥ १६ ॥

भक्तोंपर कृपा करनेके लिये ही यहाँ साकार रूप धारण करनेवाले श्रीहरिके मुखकमलका ध्यान करे, जो सुघड़ नासिकासे सुशोभित है और झिलमिलाते हुए मकराकृत कुण्डलोंके हिलनेसे अतिशय प्रकाशमान स्वच्छ कपोलोंके कारण बड़ा ही मनोहर जान पड़ता है ॥ १७ ॥

कालीकाली धुंघराली अलकावलीसे मण्डित भगवान्का मुखमण्डल अपनी छबिके द्वारा भ्रमरोंसे सेवित कमलकोशका भी तिरस्कार कर रहा है और उनके कमलसदृश विशाल एवं चञ्चल नेत्र उस कमलकोशपर उछलते हुए मछलियोंके जोड़ेकी शोभाको मात कर रहे हैं । उन्नत भ्रलताओंसे सुशोभित भगवान्के ऐसे मनोहर मुखारविन्दकी मनमें धारणा करके आलस्यरहित हो उसीका ध्यान करे ॥ १८॥

- हृदयगुहामें चिरकालतक भक्तिभावसे भगवान्के नेत्रोंकी चितवनका ध्यान करना चाहिये-जो कृपासे और प्रेमभरी मुसकानसे क्षण-क्षण अधिकाधिक बढ़ती रहती है, विपुल प्रसादकी वर्षा करती रहती है और भक्तजनोंके अत्यन्त घोर तीनों तापोंको शान्त करनेके लिये ही प्रकट हुई है ॥ १९ ॥

श्रीहरिका हास्य प्रणतजनोंके तीव-से-तीव्र शोकके अश्रुसागरको सुखा देता है और अत्यन्त उदार है। मुनियोंके हितके लिये कामदेवको मोहित करनेके लिये ही अपनी मायासे श्रीहरिने अपने भ्रमण्डलको बनाया है उनका ध्यान करना चाहिये ॥ २० ॥

अत्यन्त प्रेमार्द्रभावसे अपने हृदयमें विराजमान श्रीहरिके खिलखिलाकर हँसनेका ध्यान करे, जो वस्तुतः ध्यानके ही योग्य है तथा जिसमें ऊपर और नीचेके दोनों होठोंकी अत्यधिक अरुण कान्तिके कारण उनके कुन्दकलीके समान शुभ्र छोटे-छोटे दाँतोपर लालिमा-सी प्रतीत होने लगी है । इस प्रकार ध्यानमें तन्मय होकर उनके सिवा किसी अन्य पदार्थको देखनेकी इच्छा न करे ॥ २१ ॥
विष्णु ध्यान श्लोक संस्कृत हिंदी अर्थ सहित
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