भगवान श्रीरामका ध्यान संस्कृत श्लोक अर्थ सहित ram ji ka dhyan mantra
गुरुवार, 14 मई 2020
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भगवान श्रीरामका ध्यान
ram ji ka dhyan mantra
(भगवान श्री रामचंद्र जी का स्तवन)
इस स्तोत्र के श्रद्धा भक्ति पूर्वक-
रामभद्र महेष्वास रघुवीर नृपोत्तम |
भो दशास्यान्तकास्माकं रक्षां देहि श्रियं च ते ||
इस संपुट के साथ नित्य पाठ से रोगनाश, दारिद्रयनाश, अभाव पूर्ति और निष्काम भाव से करने पर भगवत प्रेम तथा भगवान की प्राप्ति होती है |
लोमश उवाच
अयोध्यानगरे रम्ये चित्रमण्डपशोभिते ।
ध्यायेत् कल्पतरोमले सर्वकामसमृद्धिदम् ॥
महामरकतवर्णनीलरत्नादिशोभितम् ।
सिंहासनं चित्तहरं कान्त्या तामिस्रनाशनम् ॥
तत्रोपरि समासीनं रघुराजं मनोहरम् ।
दूर्वादलश्यामतनुं देवं देवेन्द्रपूजितम् ॥
राकायां पूर्णशीतांशुकान्तिधिकारिवक्त्रिणम् ।
अष्टमीचन्द्रशकलसमभालाधिधारिणम् ॥
नीलकुन्तलशोभाढ्यं किरीटमणिरञ्जितम् ।
मकराकारसौन्दर्यकुण्डलाभ्यां विराजितम् ॥
विद्रुमप्रभसत्कान्तिरदच्छदविराजितम् ।
तारापतिकराकारद्विजराजिसुशोभितम् ॥
जपापुष्पाभया मध्व्या जिह्वया शोभिताननम् ।
यस्यां वसन्ति निगमा गाद्याः शास्त्रसंयुताः॥
कम्बुकान्तिधरग्रीवाशोभया समलंकृतम् ।
सिंहवदुच्चको स्कन्धौ मांसलौ बिभ्रतं वरम् ॥
बाहू दधानं दीर्घाङ्गो केयूरकटकाङ्कितौ ।
मुद्रिकाहारिशोभाभिभूषितौ जानुलम्बिनौ ॥
वक्षो दधानं विपुलं लक्ष्मीवासेन शोभितम् ।
श्रीवत्सादिविचित्राङ्करङ्कितं सुमनोहरम् ॥
महोदरं महानाभिं शुभकट्या विराजितम् ।
काञ्च्यावै मणिमय्या च विशेषेण श्रियान्वितम् ॥
ऊरुभ्यां विमलाभ्यां च जानुभ्यां शोभितं श्रिया ।
चरणाभ्यां वज्ररेखायवाङ्कुशसुरेखया ॥
युताभ्यां योगिध्येयाभ्यां कोमलाभ्यां विराजितम् ।
ध्यात्वा स्मृत्वा च संसारसागरं त्वं तरिष्यसि ॥
तमेव पूजयेन्नित्यं चन्दनादिभिरिच्छया।
प्रामोति परमामृद्धिमैहिकामुष्मिकी पराम् ॥
त्वया पृष्टं महाराज रामस्य ध्यानमुत्तमम् ।
तत् ते कथितमेतद् वै संसारजलधिं तर ॥
(पद्मपुराण पातालखण्ड ३५। ५६-७०)
भगवान श्रीरामका ध्यान
ram ji ka dhyan mantra
महर्षि लोमश आरण्यक मुनिसे कहते हैं-रमणीय अयोध्या नगरी परम चित्र-विचित्र मण्डपोंसे शोभा पा रही है। उसके भीतर एक कल्पवृक्ष है, जिसके मूलभागमें परम मनोहर सिंहासन विराजमान है ।
वह सिंहासन बहुमूल्य मरकतमणि, सुवर्ण तथा नीलमणि आदिसे सुशोभित है और अपनी कान्तिसे गहन अन्धकारका नाश कर रहा है। वह सब प्रकारकी मनोऽभिलषित समृद्धियोंको देनेवाला है। उसके ऊपर भक्तोंका मन मोहनेवाले श्रीरघुनाथजी बैठे हुए हैं। उनका दिव्य विग्रह दूर्वादलके समान श्याम है, जो देवराज इन्द्र के द्वारा पूजित होता है ।
भगवान्का सुन्दर मुख अपनी शोभासे पौर्णमासीके पूर्णचन्द्रकी कमनीय कान्तिको भी तिरस्कृत कर रहा है। उनका तेजस्वी ललाट अष्टमीके अर्धचन्द्रकी सुषमा धारण करता है। मस्तकपर काले-काले धुंघराले केश शोभा पा रहे हैं । मुकुटकी मणियोंसे उनका मुखमण्डल उद्भासित हो रहा है।
कानोंमें पहने हुए मकराकार कुण्डल अपने सौन्दर्यसे भगवान्की शोभा बढ़ा रहे हैं । मूंगेके समान सुन्दर कान्ति धारण करनेवाले लाल-लाल ओठ बड़े मनोहर जान पड़ते हैं।
चन्द्रमाकी किरणोंसे होड़ लगानेवाली दन्त पङ्क्तियों तथा जवाकुसुमके समान रंगवाली जिह्वाके कारण उनके श्रीमुखका सौन्दर्य और भी बढ़ गया है । शंखके आकारवाला कमनीय कण्ठ, जिसमें ऋक आदि चारों वेद तथा सम्पूर्ण शास्त्र निवास करते हैं, उनके श्रीविग्रहको सुशोभित कर रहा है।
श्रीरघुनाथजी सिंहके समान ऊँचे और सुपुष्ट कंधेवाले हैं। वे केयूर एवं कड़ोंसे विभूषित विशाल भुजाएँ धारण किये हुए हैं । अंगूठीमें जड़े हुए हीरेकी शोभासे देदीप्यमान उनकी वे दोनों बाँहें घुटनोंतक लम्बी हैं। विस्तृत वक्षःस्थल लक्ष्मीके निवाससे शोभा पा रहा है।
श्रीवत्स आदि चिह्नोंसे अङ्कित होनेके कारण भगवान् अत्यन्त मनोहर जान पड़ते हैं। महान् उदर, गहरी नाभि तथा सुन्दर कटिभाग उनकी शोभा बढ़ाते हैं । रत्नोंकी बनी हुई करधनी के कारण श्री अंगों की सुषमा बहुत बढ़ गई है निर्मल और सुंदर घुटने भी सौंदर्य वृद्धि में सहायक हो रहे हैं, भगवान के चरण जिनका योगी गण ध्यान करते हैं बड़े कोमल हैं |
उनके तलवे में वज्र अंकुश और यव आदि उत्तम रेखाएं हैं , उन्ही युगल चरणों में श्री रघुनाथ जी के विग्रह की बड़ी शोभा हो रही है इस प्रकार ध्यान और स्मरण करके तुम संसार सागर से तर जाओगे |
जो मनुष्य प्रतिदिन चंदन आदि सामग्रियों से इच्छा अनुसार श्री रामचंद्र जी का पूजन करता है उसे इस लोक और परलोक की उत्तम समृद्धि प्राप्त होती है, तुमने श्रीराम के श्रेष्ठ ध्यान का प्रकार पूछा था सो मैंने बता दिया इसके अनुसार ध्यान करके तुम संसार सागर से पार हो जाओ |
वह सिंहासन बहुमूल्य मरकतमणि, सुवर्ण तथा नीलमणि आदिसे सुशोभित है और अपनी कान्तिसे गहन अन्धकारका नाश कर रहा है। वह सब प्रकारकी मनोऽभिलषित समृद्धियोंको देनेवाला है। उसके ऊपर भक्तोंका मन मोहनेवाले श्रीरघुनाथजी बैठे हुए हैं। उनका दिव्य विग्रह दूर्वादलके समान श्याम है, जो देवराज इन्द्र के द्वारा पूजित होता है ।
भगवान्का सुन्दर मुख अपनी शोभासे पौर्णमासीके पूर्णचन्द्रकी कमनीय कान्तिको भी तिरस्कृत कर रहा है। उनका तेजस्वी ललाट अष्टमीके अर्धचन्द्रकी सुषमा धारण करता है। मस्तकपर काले-काले धुंघराले केश शोभा पा रहे हैं । मुकुटकी मणियोंसे उनका मुखमण्डल उद्भासित हो रहा है।
कानोंमें पहने हुए मकराकार कुण्डल अपने सौन्दर्यसे भगवान्की शोभा बढ़ा रहे हैं । मूंगेके समान सुन्दर कान्ति धारण करनेवाले लाल-लाल ओठ बड़े मनोहर जान पड़ते हैं।
चन्द्रमाकी किरणोंसे होड़ लगानेवाली दन्त पङ्क्तियों तथा जवाकुसुमके समान रंगवाली जिह्वाके कारण उनके श्रीमुखका सौन्दर्य और भी बढ़ गया है । शंखके आकारवाला कमनीय कण्ठ, जिसमें ऋक आदि चारों वेद तथा सम्पूर्ण शास्त्र निवास करते हैं, उनके श्रीविग्रहको सुशोभित कर रहा है।
श्रीरघुनाथजी सिंहके समान ऊँचे और सुपुष्ट कंधेवाले हैं। वे केयूर एवं कड़ोंसे विभूषित विशाल भुजाएँ धारण किये हुए हैं । अंगूठीमें जड़े हुए हीरेकी शोभासे देदीप्यमान उनकी वे दोनों बाँहें घुटनोंतक लम्बी हैं। विस्तृत वक्षःस्थल लक्ष्मीके निवाससे शोभा पा रहा है।
श्रीवत्स आदि चिह्नोंसे अङ्कित होनेके कारण भगवान् अत्यन्त मनोहर जान पड़ते हैं। महान् उदर, गहरी नाभि तथा सुन्दर कटिभाग उनकी शोभा बढ़ाते हैं । रत्नोंकी बनी हुई करधनी के कारण श्री अंगों की सुषमा बहुत बढ़ गई है निर्मल और सुंदर घुटने भी सौंदर्य वृद्धि में सहायक हो रहे हैं, भगवान के चरण जिनका योगी गण ध्यान करते हैं बड़े कोमल हैं |
उनके तलवे में वज्र अंकुश और यव आदि उत्तम रेखाएं हैं , उन्ही युगल चरणों में श्री रघुनाथ जी के विग्रह की बड़ी शोभा हो रही है इस प्रकार ध्यान और स्मरण करके तुम संसार सागर से तर जाओगे |
जो मनुष्य प्रतिदिन चंदन आदि सामग्रियों से इच्छा अनुसार श्री रामचंद्र जी का पूजन करता है उसे इस लोक और परलोक की उत्तम समृद्धि प्राप्त होती है, तुमने श्रीराम के श्रेष्ठ ध्यान का प्रकार पूछा था सो मैंने बता दिया इसके अनुसार ध्यान करके तुम संसार सागर से पार हो जाओ |
भगवान श्रीरामका ध्यान
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